Thursday, July 17, 2025
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सच्चाई के पक्ष में खड़ी कविताएं

Ravivani 33


ROHIT KAUSHIKआज कविता लिखने में जिस तरह की जल्दबाजी दिखाई जा रही है, वह कविता को एक अजीब सी प्रतिस्पर्धा में धकेल रही है। इस प्रक्रिया के कारण कविता में तात्कालिकता हावी है। निश्चित रूप से कविताओं में तात्कालिक मुद्दे भी दर्ज होेने चाहिए। लेकिन यदि सिर्फ तात्कालिक मुद्दों पर शाम तक ही कविताएं लिख दी जाएंगी तो वे वैचारिक रूप से कितनी परिपक्व होंगी, कहा नहीं जा सकता। यही कारण है कि इस दौर में सतही कविताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। इससे अंतत: कविता का ही नुकसान हो रहा है। इस माहौल में धैर्य से कविता लिखने वाले कवि कम रह गए हैं। कल्लोल चक्रवर्ती ठहरकर कविताएं लिखते हैं। उनकी कविताएं भी ठहरकर पढ़े जाने वाली कविताएं हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि उनकी कविताओं में कोई घुमाव है, कहने का तात्पर्य यह है कि उनकी कविताएं बड़े फलक पर गंभीर विश्लेषण की मांग करती हैं। ‘कतार में अन्तिम’ कल्लोल चक्रवर्ती का हाल ही में प्रकाशित कविता संग्रह है। इस संग्रह की कविताएं बदलते समय को बहुत ही जिम्मेदारी और सलीके के साथ दर्ज करती हैं। इन कविताओं में न तो बनावटी भाषा है और न ही बनावटी चिंता। हम ज्यों-ज्यों संग्रह की कविताओं से गुजरते जाते हैं, त्यों-त्यों कवि के हृदय में प्रवेश करते चले जाते हैं। हमें अहसास होने लगता है कि जिस तरह कवि का हृदय निर्मल है, वह वैसी ही निर्मल दुनिया बनाना चाहता है। एक ऐसी पाक दुनिया जहां कोई छल, क्रूरता और गैरबराबरी न हो।

करोड़ों अभावग्रस्त आंखों की पुतलियों में आग और पानी की तरह उपस्थित रहने की इच्छा रखने वाला यह कवि बड़ी इच्छाएं नहीं पालता है। वह हर हाल में आम आदमी बनकर आम आदमी के पक्ष में खड़ा रहना चाहता है। निश्चित रूप से एक सच्चा कवि बड़ी इच्छाओं के चक्रव्यूह में कभी नहीं फंसना चाहेगा। बड़ी भौतिक इच्छाएं हमें संवेदनहीन बनाती हैं। यही कारण है कि कवि इस अंधेरे समय में रोशनी के एक कतरे के लिए लंबा संघर्ष करने के लिए तैयार है। संग्रह में जिंदगी के विभिन्न पहलुओं को समेटे एक से बढ़कर एक मार्मिक कविताएं मौजूद हैं जो पाठकों को गहरे प्रभावित करती हैं। कुछ कविताएँ इस संग्रह का एक अलग स्थान निर्धारित करती हैं और इसे सच्चे अर्थों में समृद्ध भी करती हैं। पत्रकारिता के स्याह पहलुओं पर बहुत कम कविताएं दिखाई देती हैं।

इस दौर की पत्रकारिता कई तरह के दबाव झेल रही है। आज बहुत कम पत्रकारों को पत्रकारिता की गरिमा बचाने की चिंता है। यही कारण है पत्रकारिता पर विश्वसनीयता का संकट बढ़ता जा रहा है। कल्लोल लंबे समय से पत्रकारिता से जुड़े हैं। इसलिए उन्होंने ‘चौथा खम्बा’ और ‘चौथा खम्बा दरक रहा है..’ जैसी धारदार और सच्ची कविताएं लिखकर एक सच्चा कवि होने का धर्म निभाया है। इस दौर में जबकि पाकिस्तान भेज दिए जाने की धमकी को एक नारा बना दिया गया है, कवि सवाल उठाता है कि हम खुद पाकिस्तान क्यों बनते जा रहे हैं। दरअसल कट्टरपंथी राष्ट्रवादी उस दूसरे पाकिस्तान का जिक्र बिल्कुल नहीं करते हैं जिसकी स्वरलहरियां हमें सुकून की बारिश में भिगो देती हैं। वे जानबूझकर उसी पाकिस्तान का जिक्र करते हैं जिसकी कट्टरवादी सोच उनकी कट्टरवादी सोच से मिलती है। इस दौर में ऐसी कविता लिखने वाले निडर कवि कम ही मिलते हैं।

कवि ने कोरोना काल के दर्द को बहुत ही मार्मिकता के साथ अपनी कविताओं में दर्ज किया है। कोरोना के समय मजबूरी में गांव जाना हो, गांव में कोई विकल्प न होने के कारण गांव से शहर आना हो, अपने परिचितों को न बचा पाने की बेबसी हो या मुसीबत में हाथ बढ़ाने वाले लोगों का सहारा हो, कवि ने विभिन्न कोणों से उस समय को याद करते हुए अपनी रचनात्मक संवेदनशीलता प्रस्तुत की है। कोरोना काल में सैकड़ों किलोमीटर पैदल चलकर अपने गांव जाते हुए लोग और दहशत के बीच चीख-पुकार के दृश्यों को यादकर हम आज भी सिहर उठते हैं। इस दौर में कुछ कवि चिकनी-चुपड़ी भाषा की चाशनी में लिपटी रचनाओं के माध्यम से यथार्थ से मुंह चुराते हुए नजर आते हैं। इसके विपरीत कल्लोल चक्रवर्ती यथार्थ से लगातार मुठभेड़ करते हुए दिखाई देते हैं। कुल मिलाकर कतार के अन्तिम व्यक्ति के अनगिनत दु:खों को विभिन्न स्तरों पर समझने का प्रयास करती ये कविताएं हमारे चेतना तंतुओं को झंकृत तो करती ही हैं, निडरता के साथ सच्चाई के पक्ष में भी खड़ी नजर आती हैं।

कविता संग्रह: कतार में अन्तिम, कवि: कल्लोल चक्रवर्ती, प्रकाशक: अनन्य प्रकाशन, दिल्ली, मूल्य: 175 रुपये


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