Wednesday, July 16, 2025
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खेती, किसान, विकास और पूंजीपति

KHETIBADI


सिद्धार्थ ताबिश |

1997 में जब रिलायंस की जामनगर रिफाइनरी से निकलता प्रदूषण एक गंभीर समस्या बन गया, तब सरकार के कई नोटिस के बाद रिलायंस ने इसके लिए कुछ ठोस करने का सोचा। रिलायंस ने 600 एकड़ में आम के पेड़ लगाने की ठानी। लगभग 200 किस्मों के एक लाख तीस हजार आम के पेड़ लगाए गए। ये इतनी बड़ी तादाद में लगाये गए कि इनको पानी देना और खाद देना भी एक बड़ी चुनौती बन गया। उसके लिए रिलायंस ने समुद्र के पानी को वाष्पीकृत करके ड्रिप एरिगेशन तकनीक का इस्तेमाल किया। यह इतने बड़े पैमाने पर हुआ कि आम का ये बाग एक मिसाल बन गया।

इस बाग से रिलायंस इस समय दुनिया के सबसे बड़े आम निर्यातकों में से एक बन गया और अब वो 127 किस्म के आम का उत्पादन करता है। अब रिलायंस अपने उस बाग में किसानों को बुला कर ट्रेनिंग देता है और उन्हें उन्नत तकनीक से बाग लगाना सिखाता है और हर वर्ष वो किसानों को एक लाख आम के पौधे मुफ्त देता है। रिलायंस ने इस 600 एकड़ बाग से प्रदूषण तो खत्म कर ही दिया, न जाने कितनों को रोजगार भी दिया।

जो काम रिलायंस ने किया, यही कोई किसान करता तो हम उसे अन्नदाता, आमदाता, दशहरीदाता वगैरह बोलकर जाने कितनी उपाधियों से नवाज देते मगर रिलायंस या इस जैसी कोई भी कंपनी या उद्योगपति को हम सिर्फ गाली निकालते हैं बस। क्या आप जानते हैं कि किसान फसल बेचने के लिए लगाता है न कि गरीबों में बांटने के लिए?

पहले के जमाने में किसानी सबसे स?पन्न उद्योग था इसलिए ज्यादातर लोग किसान बनते थे। बड़ी बड़ी जमीनें और ढेर सारे पशु, ये सब उसके कंपनी एसेट होते थे। बड़ा किसान एक कंपनी होता था, जहां जाने कितने बंधुआ मजदूर दिन रात उसकी कारगुजारी करते थे। वो अन्नदाता नहीं होता था। वो अपने मुनाफे के लिए अन्न बोता था और आज भी बोता है। जैसे जैसे मुनाफा घटने लगा, किसानों ने किसानी छोड़ दी। हर धंधे में लगा व्यक्ति सालों तक अपने धंधे में अच्छे मुनाफे का इंतजार करता है। कोई आमदनी कम होने पर एकदम से दुकान नहीं बंद कर देता है। इंतजार करता है। वही किसानों ने किया और कर रहे हैं।

किसान पर्यावरण में कोई योगदान देने के लिए किसानी नहीं करता और न ही बाग लगाता है। न ही वो गरीबों को बांटने के लिए अन्न उगाता है। वो भी प्रकृति और उसके संसाधनों का दोहन ही करता है, जो जिस हैसियत का होता है वो प्रकृति का उतना दोहन करता है, चाहे किसान हो या रिलायंस।

अगर किसान फसल नहीं लगाएगा तो टाटा लगाएगा, अंबानी लगाएगा कल। वो थोड़ा महंगा बेचेगा और क्या। मगर सरकार उसके कान ऐंठ कर उस को पर्यावरण और प्रकृति को सुधारने के लिए निर्देश भी दे सकेगी। किसान पराली जला के धुआं धुआं कर दे तब सब सरकार कुछ नहीं कर पाती है। यही अंबानी कर रहा होता तो आज उसके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे होते और सरकार के पर्यावरण विभाग ने उसकी किसानी बन्द कर दी होती।

कितने पेड़ किसानों ने लगाए जनता के लिए? कितने बाग उन्होंने जनता और पशु पक्षियों के लिए लगाए? एक भी नहीं। सारा गुडगांव बेच डाला इन अन्नदाताओं ने और आज आडी और बीएमडब्ल्यू से चल रहे हैं और यही पहले अमीरों को गाली देते थे। मौका मिला तो अपनी जमीनें बेचकर दो दो सौ, चार चार सौ करोड़ के मालिक बन गए और तब न इन अन्नदाताओं ने पर्यावरण का सोचा और न किसी गरीब का।


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