Wednesday, May 7, 2025
- Advertisement -

संजीवनी साबित होंगे राहुल?

Samvad


rituparnजहां राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा खत्म होते ही नई सियासत भी शुरू हो गई। हां, राहुल की व्यक्तिगत छवि में निश्चित रूप से काफी सुधार आया है। लेकिन कांग्रेस को कितना फायदा होगा, कहना जल्दबाजी होगी? उनकी जहां गंभीर छवि दिखी, वहीं भावुक और संवेदनशील तस्वीरों, वीडियो ने सबका ध्यान खींचा। कड़ाके की ठंड में केवल एक टी शर्ट में उनकी यात्रा ने सभी का ध्यान खींचा। हो सकता है कि संयोग हो जो ठंड के पहले वो भी दक्षिण से शुरू यात्रा में टी शर्ट वहां अनुकूल रहा हो। लेकिन प्रतिकूल मौसम आने पर इतना उछला या उछाला जो मजबूरी कहें या जिद, जुनून बन गया। जिससे पूरी यात्रा टी शर्ट में ही काट एक अलग उदाहरण पेश हुआ। बीते बरस 7 सितंबर को कन्याकुमारी से हुई केरल, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, उत्तर प्रदेश होते हुए जम्मू-कश्मीर पहुंच समाप्त हुई। इसी दौरान गुजरात और हिमाचल में चुनाव के बावजूद वहां न पहुंचने पर यात्रा का उद्देश्य राजनीतिक प्रचार के बजाय सांस्कृतिक और सामाजिक जागरूकता फैलाना कह सवाल उठाने वालों को जवाब दिया गया।

लेकिन अब क्या होना है, सब जानते हैं। 145 दिनों में 12 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से होकर करीब 4080 किलोमीटर की दूरी तय कर यात्रा जब जम्मू-कश्मीर पहुंची तो जबरदस्त बर्फबारी के बीच पहले से तय 30 जनवरी को राहुल ने अपने समापन भाषण से फिर अपनी गंभीर छवि दिखाने में जरा सी भी चूक नहीं की। कन्याकुमारी से जारी अपनी यात्रा को अलग तथा सत्ता-सरकार चलाने वालों को चुनौती देते हुए खुद को कश्मीर से जोड़ते हुए उत्तर प्रदेश तक ले जाने का प्रयास आगे कितना कारगर होगा यह वक्त बताएगा? लेकिन राहुल का आत्मविश्वास बेहद बढ़ा हुआ है। अब कांग्रेस कितना फायदा ले पाएगी, यह कयास लगाना भी थोड़ी जल्दबाजी होगी।

राहुल गांधी की पहली यात्रा तो समाप्त हो गई। लेकिन जुलाई से दूसरी यात्रा की तैयारियां भाजपा के लिए कैसी चुनौती बनेगी अभी नहीं समझ आ रहा है। यह यात्रा गुजरात से पूर्वोत्तर यानी सोमनाथ से शिलॉन्ग तक जाएगी। नई यात्रा कितने दिन की होगी, कहां-कहां से गुजरेगी अभी ज्यादा साफ नहीं है।

इधर 2023 में मध्य प्रदेश, कर्नाटक त्रिपुरा में भाजपा तो राजस्थान, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस, तेलंगाना में तेलंगाना राष्ट्र समिति यानी टीआरएस, मेघालय में मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस यानी एमडीए, नागालैंड में अनोखी बिना विपक्ष की सरकार तो मिजोरम में मिजो नेशनल फ्रंट की सरकारें है। ऐसे में जहां दलों को स्पष्ट बहुमत है वहां चुनौती बड़ी है लेकिन जहां गठबंधन की सरकारें हैं, वहां और भी बड़ी चुनौती होगी।

भारत में ऐसी राजनीतिक यात्राओं का महत्व पहले कई मौकों पर दिख चुका है। देश में यूं तो स्वतंत्रता खातिर कई यादगार यात्राओं ने फिजा बदली। लेकिन मौजूदा राजनीतिक घटनाक्रम के मद्देनजर बीते तीन दशकों की यात्राएं अलग थीं। 1990 में लाल कृष्ण आडवाणी की रथयात्रा सभी को याद है।

गुजरात के सोमनाथ मंदिर से शुरू हुई आडवाणी जी की रथयात्रा भले ही अपने पड़ाव तक नहीं पहुंची और बिहार के समस्तीपुर में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू यादव ने गिरफ्तार करवा लिया। इससे यात्रा तो रुकी लेकिन भाजपा को जबरदस्त ताकत मिली और राम मंदिर आंदोलन भी उफान पर आ गया। दोबारा आडवाणी ने 2004 में फिर एक यात्रा निकाली और इंडिया शाइनिंग का नारा दिया। लेकिन पहले के मुकाबले कामयाब नहीं रही। वहीं मुरली मनोहर जोशी की 1991 की यात्रा और 1992 में लाल चौक में झंडा फहराना भी ज्यादा प्रभावी नहीं रहा।

हालांकि ऐसी राजनीतिक यात्राओं के शुरुआत का श्रेय चन्द्रशेखर को जाता है जिन्होंने 1983 में कन्याकुमारी से यात्रा शुरू की और 6 महीने बाद दिल्ली पहुंचे। लेकिन तब इन्दिरा गांधी की हत्या के चलते बदले माहौल से उन्हें वो फायदा नहीं मिला जिसकी उम्मीद थी। 1985 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने मुंबई से कांग्रेस की सद्भावना यात्रा निकलवाई जो 3 महीने बाद दिल्ली पहुंची। लेकिन यह भी वो प्रभाव नहीं दिखा पाई जिसकी उम्मीद थी।

यात्राओं के इतिहास में आंध्रप्रदेश के वाईएस राजशेखर रेड्डी की दक्षिण की झुलसाने वाली प्रचंड गर्मी में निकली यात्रा कैसे भुलाई जा सकती है। यह चुनाव से पहले शुरू हुई और जिसने साल भर बाद हुए चुनाव में जबरदस्त सफलता दिलाई। उनके बेटे वाईएस जगनमोहन रेड्डी की 2017 की यात्रा ने उन्हें मुख्यमंत्री बनवा दिया।

इसी तरह मप्र में दिग्विजय सिंह की नर्मदा यात्रा भी जबरदस्त चर्चाओं में रही जिसके बाद कांग्रेस की वापसी तो हुई लेकिन अंर्तकलह से बहुमत के बावजूद कैसे सत्ता से बेदखल हुई सबने देखा। 15 अगस्त 2021 से 28 अगस्त 2021 तक 14 दिन चली भाजपा की जन आशीर्वाद यात्रा ने भी 24 हजार किमी की दूरी तय की और जन-जन तक जन कल्याण एवं विकास के प्रति समर्पण और प्रतिबध्दता का संदेश पहुंचाया। निश्चित रूप से यात्राओं का अपना एक महत्व व प्रभाव तो है जो जनता पर काफी असर छोड़ता है।

राहुल की यात्रा में देश के कई नामी-गिरामी हस्तियों ने भी भाग लेकर जरूर खलबली मचाई। ऐक्टिविस्ट, राजनीतिज्ञ, खेल, फिल्म, कला जगत की तमाम बड़ी हस्तियों ने साथ देकर बड़ा संदेश दिया। जहां तुषार गांधी, मेधा पाटकर, अमोल पालेकर, पूजा भट्ट, स्वरा भास्कर, आनंद पटवर्धन, रश्मि देसाई, ऋतु शिवपुरी, सुनिधि चौहान, उर्मिला मातोंडकर, मो. अजहरुद्दीन, कैप्टन बाना सिंह जैसे नामचीन शामिल हुए।

वहीं दूसरे दलों राजनीतिक दलों से तेजस्वी यादव, संजय राउत, फारुख अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती की मौजूदगी ने बाकी विपक्ष को सोचने पर मजबूर किया होगा। अब सबकी निगाहें लंबी यात्रा के बाद राहुल गांधी की होने वाली राजनीतिक रैलियों व बिखरे विपक्ष के कर्णधारों पर है। राहुल की मंशा और विपक्ष की आशंका बीच सभी किसी नए राजनीतिक समीकरण के इंतजार में हैं, जो जल्द दिख सकता है। सच है कि यात्रा जहां-जहां से गुजरी वहां युवाओं, महिलाओं की भारी भीड़ जुटी जो केवल राहुल को देखने आई।

संगठन की दृष्टि से बेहद मजबूत भाजपा से मुकाबले के लिए बड़ा यक्ष प्रश्न खुद राहुल और कांग्रेस के सामने है कि नई ऊर्जा से भरपूर होने के बावजूद युवा भारत को आकर्षित कर पाएंगे? जहां-तहां बिखरे कांग्रेस संगठन में आपसी गुटबाजी खत्म करा पाएंगे? विपक्ष को एकजुट करने व मजबूत पुराने सहयोगियों को घर वापसी करा पाएंगे? और क्या राहुल बिखरे विपक्ष के लिए करिश्माई चेहरा बन पाएंगे?


janwani address 221

spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Operation Sindoor: ऑपरेशन सिंदूर, जानिए क्यों पीएम मोदी ने इस सैन्य अभियान को दिया ये नाम?

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Opration Sindoor पर PM Modi ने की सुरक्षाबलों की सराहना, Cabinet Meeting में लिया ये फैसला

जनवाणी ब्यूरो |नई दिल्ली: भारत द्वारा पाकिस्तान और पाकिस्तान...
spot_imgspot_img