Friday, December 27, 2024
- Advertisement -

दफन रहे तबाही के दस्तावेज

Samvad 52


PANKAJ CHATURVEDIजिस हिमाचल प्रदेश में अभी एक महीने पहले तक गर्मी से बचने के लिए मौज मस्ती करने वालों की भीड़ थी, आज वहां मौत का सन्नाटा है। उन पर्यटकों की सुख सुविधा के लिए जो सड़कें बनार्इं गर्इं थी, उन्होंने ही राज्य की तबाही की इबारत लिख दी। आज राज्य में दो राष्ट्रीय राजमार्ग सहित कोई 1220 सड़कें ठप्प हैं। कई सौ बिजली ट्रांसफार्मर नष्ट हो गए तो अंधेरा है। लगभग 285 गांव तक गए नलों के पाइप अब सूखे हैं। 330 लोग मारे जा चुके हैं। 38 लापता हैं। एक अनुमान है कि अभी तक लगभग 7500 करोड़ का नुकसान हो चुका है। राजधानी शिमला की प्रमुख सड़कें वीरान हैं और हर एक बहुमंजिला इमारत इस आशंका एक साथ खड़ी है कि कहीं अगले पल ही यह जमींदोज न हो जाए। प्रकृति कभी भी अचानक अपना रौद्र रूप दिखाती नहीं। शिमला और हिमाचल में बीते कुछ सालों से कायनात खुद के साथ हो रही नाइंसाफी के लिए विरोध जताती रही लेकिन विकास के जिस मॉडल से दमकते पोस्टर और विज्ञापन गौरव गाथा कहते थे, वही तबाही की बड़ी इबारत में बदल गए।

कालका-शिमला राष्ट्रीय राजमार्ग-5 पर चक्की मोड़ के करीब पहाड़ किसी भी दिन ढह सकता है। यहां बड़ी और गहरी दरारें दिख रही हैं। यहां से महज 500 मीटर दूरी पर रेलवे की हेरिटेज लाइन है। अभी पिछले साल ही इसी लाइन पर चलने वाली खिलौना रेल चार अगस्त 2022 को बाल बाल बची थी। सोलन जिले के कुमरहट्टी के पास पट्टा मोड़ में भारी बारिश के कारण भूस्खलन में कालका-शिमला यूनेस्को विश्व धरोहर ट्रैक कुछ घंटों के लिए अवरुद्ध हो गया।

टॉय ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्री बाल-बाल बच गए, क्योंकि भूस्खलन के कारण रेल की पटरी पर भारी पत्थर गिर गए थे। वह एक बड़ी चेतावनी थी। यदि सन 2020 से 22 के दो साल के आंकड़े ही देखें तो पता चलेगा की हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य में भूस्खलन की घटनाओं में सात गुना बढ़ोतरी हुई। सन 2022 में जहां यह आंकड़ा 16 था, दो साल बाद 117 हो गया।

कुछ साल पहले नीति आयोग ने पहाड़ों में पर्यावरण के अनुकूल और प्रभावी लागत पर्यटन के विकास के अध्ययन की योजना बनाई थी। यह काम इंडियन हिमालयन सेंट्रल यूनिवर्सिटी कंसोर्टियम द्वारा किया जाना था। इस अध्ययन के पांच प्रमुख बिंदुओं में पहाड़ से पलायन को रोकने के लिए आजीविका के अवसर, जल संरक्षण और संचयन रणनीतियों को भी शामिल किया गया था।

ऐसे रिपोर्ट्स आमतौर पर लाल बस्ते में दहाड़ा करती हैं और जमीन पर पहाड़ दरक कर कोहराम मचाते रहते हैं। जून2022 में गोविंद बल्लभ पंत राष्ट्रीय हिमालयी पर्यावरण संस्थान (जीबीएनआईएचई) द्वारा जारी रिपोर्ट ‘एनवायर्नमेंटल एस्सेसमेन्ट आॅफ टूरिज्म इन द इंडियन हिमालयन रीजन’ में कड़े शब्दों मे कहा गया था कि हिमालयी क्षेत्र में बढ़ते पर्यटन के चलते हिल स्टेशनों पर दबाव बढ़ रहा है।

इसके साथ ही पर्यटन के लिए जिस तरह से इस क्षेत्र में भूमि उपयोग में बदलाव आ रहा है वो अपने आप में एक बड़ी समस्या है। जंगलों का बढ़ता विनाश भी इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर व्यापक असर डाल रहा है। यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) के आदेश पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफ और सीसी) को भेजी गई थी।

इस रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश में पर्यटकों के वाहनों और इसके लिए बन रही सड़कों के कारण वन्यजीवों के आवास नष्ट होने और जैवविविधता पर विपरीत असर की बात भी कही गई थी। मनाली, हिमाचल प्रदेश में किए एक अध्ययन से पता चला है कि 1989 में वहां जो 4.7 फीसदी निर्मित क्षेत्र था वो 2012 में बढ़कर 15.7 फीसदी हो गया है। आज यह आंकड़ा 25 फीसदी पार है।

इसी तरह 1980 से 2023 के बीच वहां पर्यटकों की संख्या में 5600 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। जिसका सीधा असर इस क्षेत्र के इकोसिस्टम पर पड़ रहा है। इतने लोगों के लिए होटलों की संख्या भी बढ़ी तो पानी की मांग और गंदे पानी के निस्तार का वजन भी बढ़ा, आज मनाली भी धंसने की कगार पर है-कारण वही जोशीमठ वाला-धरती पर अत्यधिक दबाव और पानी के कारण भूगर्भ में कटाव।

नेशनल रिमोट सेंसिंग एजेंसी, इसरो द्वारा तैयार देश के भूस्खलन नक्शे में हिमाचल प्रदेश के सभी 12 जिलों को बेहद संवेदनशील की श्रेणी में रखा गया है। देश के कुल 147 ऐसे जिलों में संवेदनशीलता की दृष्टि से मंडी को 16वें स्थान पर रखा गया है। यह आंकड़ा और चेतावनी फाइल में सिसकती रही और इस बार मंडी में तबाही का भयावह मंजर सामने आ गया।

ठीक यही हाल शिमला का हुआ, जिसका स्थान इस सूची में 61वें नंबर पर दर्ज है। प्रदेश में 17,120 स्थान भूस्खलन संभावित क्षेत्र अंकित हैं, जिनमें से 675 बेहद संवेदनशील मूलभूत सुविधाओं और घनी आबादी के करीब हैं। इनम सर्वाधिक स्थान 133 चंबा जिले में, मंडी (110), कांगड़ा (102), लाहुल-स्पीती (91), उना (63), कुल्लू (55), शिमला (50), सोलन (44), आदि हैं। यहां भूस्खलन की दृष्टि से किन्नौर जिला को सबसे खतरनाक माना जाता है।

बीते साल भी किन्नौर के बटसेरी और न्यूगलसरी में दो हादसों में ही 38 से ज्यादा लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद किन्नौर जिला में भूस्खलन को लेकर भारतीय भूगर्भ सर्वेक्षण के विशेषज्ञों के साथ साथ आईआईटी, मंडी व रुड़की के विशेषज्ञों ने अध्ययन किया है। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने विभिन्न एजेंसियों के माध्यम से सर्वेक्षण कर भूस्खलन संभावित 675 स्थल चिन्हित किए हैं।

चेतावनी के बाद भी किन्नोर में, एक हजार मेगा वाट की करचम और 300 मेगा वाट की बासपा परियोजनाओं पर काम चल रहा है। वर्तमान में बारिश का तरीका बदल रहा है और गर्मियों में तापमान सामान्य से कहीं अधिक पर पहुंच रहा है। ऐसे में मेगा जलविद्युत परियोजनाओं को बढ़ावा देने की राज्य की नीति को एक नाजुक और पर्यावरण के प्रति संवेदनशील क्षेत्र में लागू किया जा रहा है।

जलवायु परिवर्तन के कारण अचानक तेज बारिश, बादल फटने, के साथ-साथ सड़क निर्माण और चौड़ीकरण के लिए पहाड़ों की कटाई, सुरंगें बनाने के लिए किए जा रहे विस्फोट और खनन, साल दर साल भयानक हो रहे भूस्खलन के प्रमुख कारक हैं। हिमाचल प्रदेश में भले ही बरसात के दिन कम हो रहे हैं, लेकिन इसकी तीव्रता और कम समय में धुआंधार बरसात बढ़ रही है।

उत्तराखंड में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान विभाग के वाईपी सुंदरियाल के अनुसार, उच्च हिमालयी क्षेत्र जलवायु और पारिस्थितिक रूप से अत्यधिक संवेदनशील हैं। ऐसे में इन क्षेत्रों में मेगा हाइड्रो-प्रोजेक्ट्स के निर्माण से बचा जाना चाहिए या फिर उनकी क्षमता कम होनी चाहिए। हिमालयी क्षेत्रों में सड़कों का निर्माण भी वैज्ञानिक तकनीकों से किया जाना चाहिए। इनमें अच्छा ढलान, रिटेनिंग वॉल और रॉक बोल्टिंग प्रमुख है, लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।


janwani address 7

What’s your Reaction?
+1
0
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

करुणाहीन ममता: बच्ची को ईख के खेत में छोड़ गई बेरहम मां

जन्म देते ही कलियुगी मां दिल पर पत्थर...

भाजपा नेता के रिश्तेदार की अपहरण के बाद निर्मम हत्या

धारदार हथियारों से काटने के बाद शव गंगनहर...

उम्रकैद कराने में बुलंदशहर से मेरठ पीछे

एक साल में मेरठ में 38 मामलों में...

मोबाइल लेने से मना करने पर छात्र ने की आत्महत्या

चलती ट्रेन के आगे कूदकर दी जान, परिवार...
spot_imgspot_img