Monday, August 18, 2025
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धीमी गति से घट रही तंबाकू की लत


विश्व स्वास्थ्य संगठन के ताजा आंकड़े शुभ संकेत की ओर इशारा कर रहे हैं। बताते हैं कि बीते दो दशकों के दौरान दुनिया भर में तंबाकू का सेवन घटा है। साल 2000 में हर तीन में से एक वयस्क तंबाकू का सेवन करता था, जो 2022 में घटता- घटता पांच में से एक हो गया है। संगठन की रिपोर्ट में बताया गया है कि दुनिया के 150 देश तंबाकू के इस्तेमाल को घटाने में कामयाब हुए हैं। भारत भी इन खुशकिस्मत देशों में शामिल है। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अगाह किया है कि तंबाकू से जुड़ी मौतों में फिलहाल गिरावट की गुंजाइश नहीं लगती। क्योंकि 2010 से 2025 के बीच 30 फीसदी तंबाकू के इस्तेमाल में कटौती का लक्ष्य फिलहाल पूरा नहीं हो सका है। रिपोर्ट के मुताबिक तंबाकू के सेवन की लत से आज भी सालाना 80 लाख लोगों की अकाल मौत हो जाती है। इनमें 13 लाख ऐसे लोग भी शामिल हैं, जो खुद तो तंबाकू का सेवन नहीं करते, लेकिन सिगरेट पीने वालों के आसपास रहते हैं। दक्षिण- पूरब एशियाई देशों में दुनिया के सबसे ज्यादा 26.5 फीसदी लोग तंबाकू का सेवन करते हैं। हालांकि सिंगापुर जैसे इन देशों में सख्ती का आलम यह है कि वहां उतरने से पहले ही हवाई जहाज में घोषणा की जाती है कि बाहर से सिगरेट, च्वइंगम और नशीले पदार्थ लाने पर सख्त रोक है। लेकिन सिंगापुर समेत इन देशों में भी सिगरेट बिकते हैं और कहीं-कहीं पीने की छूट भी है। हैं बेशक बहुत मंहगे- एक पैकेट करीब 1,000 रुपये से ऊपर का। ओरचिड रोड जैसी पॉश शॉपिंग स्ट्रीटस की फुटपाथ पर जगह-जगह कूड़ेदान और उन पर ऐश- ट्रे लगी हैं। ऐश- ट्रे के इर्द-गिर्द खड़े हो कर सिगरेट पी सकते हैं। माल्स में भी सिगरेट पीना मना है। अगर कोई तय ऐश ट्रे जगहों से परे सिगरेट पीता पकड़ा जाए, तो 1000 सिंगापुर डॉलर यानी करीब 65,000 रुपये जुर्माना लगता है।

यूरोपीय देश भी ज्यादा पीछे नहीं हैं। यूरोप में 25.3 फीसदी तंबाकू की लत से ग्रस्त हैं। उम्मीद जताई जा रही है कि 2030 आते- आते यूरोप में तंबाकू सेवन की लत की शिकार आबादी का तादाद गिर कर 23 फीसदी रह जाएगी, और एशिया के देशों में 20 फीसदी पहुंच सकती है। साल दर साल धीरे- धीरे तंबाकू सेवन करने वालों की तादाद घटते- घटते अगले साल 2025 तक 25 फीसदी तक गिरने की प्रबल सम्भावना है। जबकि 2010 में अगले 15 सालों के लिए गिरावट का लक्ष्य 30 फीसदी तय किया गया था। केवल 56 देश इस लक्ष्य को हासिल करने की ओर बढ़ रहे हैं। अपने देश के वैश्विक व्यस्क तंबाकू सर्वे के आंकड़ों से भी जाहिर होता है कि 2009-10 के मुकाबले 2016-17 में धुआं रहित तंबाकू सामंत्री के उपयोग में 4.5 फीसदी की गिरावट आई है। यह खपत 25.9 फीसदी से घट कर 21.4 फीसदी हो गई है। जबकि धूम्रपान की लत में 3.3 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई है। यानी 14.0 फीसदी गिर कर 10.7 फीसदी पर आ गई है। धूम्रपान में गिरावट इसलिए आई है क्योंकि पहले से ज्यादा लोग सिगरेट पीने से जुड़े सेहत के खतरों की बाबत चेतावनियों पर तवज्जो देने लगे हैं। और फिर, सार्वजनिक स्थलों के अलावा रेल, हवाई जहाज वगैरह में सिगरेट पीने पर सख़्त प्रतिबंध लगे हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन का सभी देशों से आग्रह है कि तंबाकू सेवन पर नियंत्रण करने के कायदे- नियमों की मुहिम को प्रभावी ढंग से जारी रखें। क्योंकि कई देशों में तो 13 से 15 साल की उम्र के बच्चे और किशोर तक तंबाकू और निकोटीन के शिकंजे में फंसते जा रहे हैं। इसी के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने आगामी 31 मई को 2024 का ह्यवर्ल्ड नो तम्बाकू डेह्ण को बच्चों को तंबाकू से बचाने के रूप में मनाने की तैयारियां की हैं। इसके लिए नियंत्रण प्रणाली को किशोरों के लिए बाजार में उतर रहे नए धुआं रहित तंबाकू सामग्री पर शिकंजा कसना जरूरी होगा। क्योंकि डब्लू एच ओ की रिपोर्ट बताती है कि दुनिया भर के 13 से 15 साल के आयु वर्ग के किशोरों में से कम से कम 10 फीसदी किसी न किसी प्रकार का तंबाकू सेवन करते हैं। इन बच्चों- किशोरों की आबादी पौने 4 करोड़ से ऊपर है। इनमें से करीब सवा करोड़ बच्चे गुटखे, मसाले जैसे धुआं रहित तंबाकू भी इस्तेमाल करते हैं।

चिंताजनक है कि जब लगता है कि तंबाकू के इस्तेमाल पर काबू पाने लगे हैं, तब तंबाकू उत्पादक सरकारों से सांठगांठ कर स्वास्थ्य योजनाओं में फेरबदल कराने में कामयाब हो जाते हैं। इस तरह सेहत और जान की कीमत पर तंबाकू बेचने के रास्ते निकाल लिए जाते हैं। जब तक यह सिलसिला रुकेगा नहीं, तब तक लक्ष्य तक पहुंचना मुमकिन नहीं है। सरकारों को भी समझना चाहिए कि जो धनराशि आज सरकार को तम्बाकू की बिक्री से मिल रही है, बीसेक साल बाद उससे दुगुनी रकम सिगरेट, बीड़ी और अन्य नशा सम्बन्धी बीमारियों के उपचार और रोकथाम करने में खर्च करनी पड़ेगी।


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