Saturday, August 16, 2025
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बच्चों में एनीमिया न होने दें


शिखा चौधरी |

कुछ बीमारियां ऐसी होती है जिनका पता ही नहीं चलता और वे बच्चों में पैर पसार जाती हैं। उनके लक्षण ही इतने सामान्य होते हैं कि कोई अंदाजा ही नहीं लगा पाता कि क्या बीमारी है लेकिन यदि ये बीमारियां लंबे समय तक किसी को रहती हैं तो खतरनाक हो सकती हैं।

इसी तरह की एक बीमारी है एनीमिया। आप अक्सर कई माताओं की बात सुनती रहती होंगी। वे यही कहती रहती हैं कि आजकल मेरा बेटा काफी चिड़चिड़ा हो गया है। न कहीं खेलता है, न ही कुछ खाता पीता है। ये सामान्य से ही लक्षण हैं और इनके पता लगने से ही यह नहीं कहा जा सकता कि बच्चे को एनीमिया है लेकिन एनीमिक बच्चे के यही लक्षण होते हैं, इसलिए ऐसे लक्षण दिखाई देने पर ब्लड की जांच की जाती है तभी एनीमिया का पता चलता है।

हमारे खून को लाल रंग देता है हीमोग्लोबिन। यह खून का सबसे महत्त्वपूर्ण भाग है। खून में यदि हीमोग्लोबिन की मात्र में कमी हो जाती है तो इसका अर्थ है कि एनीमिया की बीमारी हो गई। इसमें खून में लाल रक्त कणिकाओं की कमी हो जाती है। इसका पता खून की जांच करके ही लगाया जा सकता है। ब्लड टेस्ट के माध्यम से हमें खून में हीमोग्लोबिन की मात्र का पता चलता है। बच्चों में हीमोग्लोबिन की मात्र उनकी उम्र के स्तर के अनुसार ही होती है। जन्म के तुरंत बाद यह बच्चों में 16 मिलीग्रा. होती है। कुछ बड़े होने पर यह 12-14 मिलीग्रा. होती है। 12 मिलीग्रा. से कम हीमोग्लोबिन होने पर एनीमिया कहा जाता है।

एनीमिया किस बच्चे को है, यह किसी भी बच्चे को उसके लक्षणों के आधार पर बताया जा सकता है। सामान्तया: सभी बच्चे एक जैसे एक जैसी हरकतें करने वाले होते हैं किन्तु फिर भी थोड़ा ध्यान दें तो हम एनीमिक बच्चों को चुन सकते हैं। चिड़चिड़ापन, हर काम में सुस्त रहना, हर वक्त लापरवाह रहना, किसी भी काम को दिल से न करना, रंग पीला पड़ना, ये सब एनीमिया के ही लक्षण हैं जिन पर ज्यादा ध्यान दिया जाये, तभी पता लगाया जा सकता है। इन सब कारणों के कारण बच्चा बेहद कमजोर हो जाता है। वह पढ़ाई से भी जी चुराने लगता है। उसके अंदर रोगों से लड़ने की ताकत कमजोर होती चली जाती है। वह किसी भी संक्रामक रोग का शिकार हो सकता है।

बच्चों में एनीमिया होने के कई कारण होते हैं। कुछ बच्चों में तो यह जन्म से ही होता है। उनके शरीर में कम खून बनता है। कम हीमोग्लोबिन बनता है या फिर लाल रक्त कणिकाएं ज्यादा टूटने लगती हैं। कोई भी कारण उनमें एनीमिया की वजह बन सकता है। बड़े बच्चों में आयरन की कमी, थैलेसीमिया, लेड पॉयजनिंग आदि कई कारण होते हैं एनीमिया होने के। इसके अलावा यदि आपका बच्चा मिट्टी खाता है या उसे भूख कम लगती है तो समझ लें कि उसे एनीमिया हो सकता है। यह एनीमिया के ही लक्षण हैं।

एक बार एनीमिया हो जाये तो उसे ठीक होने में बहुत समय लगता है, इसलिए जब भी अपने बच्चे में एनीमिया के लक्षण देखें, उसे तुरंत डॉक्टर के पास ले जायें क्योंकि इसे ठीक होने के लिए कम से कम तीन महीने का समय चाहिए। तीन महीने में हीमोग्लोबिन अपनी सामान्य मात्र में आ पाता है लेकिन इसके बाद तुरंत ही इलाज बंद नहीं कर देना चाहिए। जब भी इलाज बंद करें, डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।

कई बार इस तरह के इलाज में शुरू में बच्चे को परेशानियां आ जाती हैं। डर की वजह से मां अपने बच्चे का इलाज बंद कर देती है जबकि बच्चे का इलाज बंद करने के बजाय डॉक्टर के सामने अपनी सारी समस्याएं रख देनी चाहिए। वही आपकी समस्याओं का निदान करेंगे।

इसके अलावा बच्चों को एनीमिया न हो, इस परेशानी से बचने के लिए उसके खान-पान पर विशेष ध्यान दें। बच्चे को खाने में सब कुछ दें। यह नहीं सोचें कि उसके लिए सिर्फ दूध ही पर्याप्त है। दूध में आयरन नहीं होता। इससे तो बच्चे में आयरन की कमी होने का डर रहता है। छ: महीने बाद तो बच्चे को ठोस आहार भी देना शुरू कर देना चाहिए।

बच्चे को आयरन की पूर्ति के लिए हरी सब्जियों का सूप व जूस भी दिया जाना चाहिए। बच्चे को सभी चीजें खिलानी चाहिए। उसके भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडे, बीन्स, अनाज, गुड़ आदि सभी रोजाना शामिल किए जाने चाहिए।


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