आज भी कंप्यूटर से दूर ग्रामीण किशोरियां

 

Ravivani 23

bhavna

‘आज का समय कंप्यूटर का है। हमें हर छोटे बड़े हर काम के लिए कंप्यूटर की दुकान पर जाना पड़ता है। फोन से हम सब काम कर सकते हैं। लेकिन परीक्षा का फार्म भरना हो या उससे संबंधित जानकारियां प्राप्त करनी हो, तो उसके लिए शहर के कंप्यूटर सेंटर पर जाना पड़ता है। जो गांव से 16-17 किमी दूर है। ऐसा कभी नहीं हुआ है कि एक बार जाने से ही हमारा काम हो गया हो। एक तो आने जाने का खर्च और दूसरा कंप्यूटर सेंटर वाले की मनमानी फीस अदा करना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता है। हमारे माता पिता की आमदनी इतनी नहीं है कि हम बार बार शहर जा सके। यदि गांव में ही कंप्यूटर सेंटर होता तो बार बार शहर जाकर पैसे खर्च नहीं करने पड़ते।’ यह कहना है उत्तराखंड के पिंगलो गांव की 21 वर्षीय गुंजन का, जो स्नातक की छात्रा है और पढ़ाई के साथ साथ प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी भी कर रही है।

गुंजन की तरह पिंगलो गांव की अन्य किशोरियों को भी इन्हीं समस्याओं से गुजरना पड़ रहा है। हरे भरे और सुंदर पहाड़ों के बीच बसा यह गांव उत्तराखंड के बागेश्वर जिला से 48 किमी और गरुड़ ब्लॉक से 27 किमी दूर स्थित है। ब्लॉक आॅफिस में उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार इस गांव की जनसंख्या लगभग 1,152 है। ओबीसी बहुल इस गांव में 25 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय भी निवास करता है। 2011 की जनगणना के अनुसार यहां की साक्षरता दर करीब 80 प्रतिशत से अधिक है। हालांकि महिला साक्षरता दर मात्र 45 प्रतिशत दर्ज की गई है। गांव के किशोर-किशोरियां शिक्षा के साथ साथ एंड्रॉयड फोन के माध्यम से सोशल मीडिया पर भी सक्रिय हैं। लेकिन कंप्यूटर तक उनकी सुलभ पहुंच नहीं होने के कारण वह कई अर्थों में पीछे रह जाती हैं। इस संबंध में गांव की 17 वर्षीय किशोरी नमन कहती है कि हमारे गांव में कंप्यूटर की सुविधा न होने के कारण हम बहुत सी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाती हैं। फोन के माध्यम से आॅनलाइन फॉर्म आसानी से भर सकते हैं। लेकिन इस दौरान बहुत से डाक्यूमेंट्स भी अपलोड करने होते हैं। जो फोन से संभव नहीं हो पाता है। ऐसे में हमें कंप्यूटर सेंटर की आवश्यकता होती है। लेकिन पिंगलो गांव में इसकी सुविधा नहीं है। इसके लिए बागेश्वर या बैजनाथ शहर जाना पड़ता है। जो काफी खचीर्ला साबित होता है।

इसी गांव की 22 वर्षीय अंशिका बताती है कि वह स्नातक अंतिम वर्ष की छात्रा है। पढ़ाई के साथ साथ वह कई प्रतियोगिता परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं। जिसके लिए आॅनलाइन फॉर्म भरने की जरूरत पड़ती रहती है। लेकिन गांव में कंप्यूटर सेंटर की सुविधा नहीं होने के कारण वह हल्द्वानी में गर्ल्स हॉस्टल में रहती है ताकि इन प्रतियोगिता परीक्षाओं में फॉर्म भरने में उसे किसी प्रकार की कठिनाइयां न आए। वह कहती है कि आजकल सब कुछ कम्पूटराइज हो चुका है। चाहे कॉलेज का फॉर्म भरना हो या प्रतियोगिता परीक्षा का अथवा किसी स्कॉलरशिप के लिए अप्लाई करनी हो, सभी आॅनलाइन हो चुके हैं। इसके लिए फॉर्म भरने के साथ साथ फोटो, एजुकेशन सर्टिफिकेट और अन्य दस्तावेज भी अटैच करने होते हैं, जो कई बार फोन से संभव नहीं हो पाता है। इसके लिए कंप्यूटर या लैपटॉप की जरूरत होती है। हमारे गांव में कोई भी आर्थिक रूप से इतना सशक्त नहीं है कि वह निजी रूप से लैपटॉप खरीद सके। अगर गांव में कंप्यूटर सेंटर खुल जाए तो सभी के लिए अच्छा होगा, विशेषकर लड़कियों को बहुत लाभ मिलेगा।

गांव में कंप्यूटर सेंटर होने की आवश्यकता केवल किशोरियों ही नहीं, बल्कि उनके अभिभावक भी महसूस करने लगे हैं। टेक्नोलॉजी के बढ़ते प्रभाव और इसकी आवश्यकता को देखते हुए अब वह भी चाहते हैं कि गांव में कंप्यूटर सेंटर खुल जाए। इस संबंध में 34 वर्षीय उषा देवी कहती हैं कि “मेरी दो बेटियां हैं जो 8वीं और 10वीं की छात्रा हैं। मैं चाहती हूं कि अभी से वह दोनों कंप्यूटर चलाना सीखे, ताकि भविष्य में उन्हें किसी प्रकार का फॉर्म भरने में कोई कठिनाइयां न आए। लेकिन पूरे पिंगलो गांव में कोई कंप्यूटर सेंटर नहीं है। मैं उन्हें 17 किमी दूर केवल फॉर्म भरने नहीं भेज सकती हूं। वह कहती हैं कि हमारी आर्थिक स्थिति इतनी अच्छी नहीं है कि हम उन्हें शहर के हॉस्टल में रखें। अगर हमारे गांव में ही कंप्यूटर सेंटर खुल जाए तो सभी लड़कियों के लिए आसान हो जाएगा। वहीं एक अन्य अभिभावक 54 वर्षीय कलावती देवी कहती हैं कि “हमने तो अपना जीवन अभाव में जैसे तैसे गुजार लिया है। लेकिन अब हमें अपने बच्चों का भविष्य संवारना है। जिसके लिए स्कूल और कॉलेज की शिक्षा के साथ साथ कंप्यूटर की शिक्षा भी बहुत जरूरी है। इसके बिना गांव की नई पीढ़ी विकास के दौड़ में पिछड़ जाएगी।

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