Sunday, January 5, 2025
- Advertisement -

दीयों से मने दीवाली, मिट्टी के दीये जलाएं

PRIYANKA SAURABH

आधुनिकता के दौर में दीपोत्सव पर मिट्टी की दीये जलाने की परंपरा विलुप्त हो रही है। इससे सामाजिक रूप से व पर्यावरण पर गलत प्रभाव पड़ने की आशंका को नकारा नहीं जा सकता है। पर्यावरण को बचाने के लिए जरूरी है आमजन दीपावली पर मिट्टी के दीये जलाने व पटाखे नहीं चलाने का संकल्प लें। इस दीपावली मिट्टी के दीये जलाएं, तभी पर्यावरण बचाने में हम सफ ल हो पाएंगे।

आज की भागती दौड़ती जिन्दगी में लोग अपनी परंपरा को भूलते जा रहे हैं। इसका परिणाम है कि आज देश में पर्यावरण संकट के साथ-साथ कई तरह की समस्या उत्पन्न हो रही है। जिसके चलते सभी लोग और जीव-जंतु के जीवन पर संकट है। इस परंपरा में एक दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना भी है। जिसको आज लोग भूलते जा रहे हैं और उसकी जगह पर इलेक्ट्रानिक लाइटों का उपयोग कर रहे हैं। लेकिन जो सुंदरता मिट्टी के दीये जलने पर दिखती है वह इलेक्ट्रानिक लाइटों के जलने से नहीं। इस बात को स्वयं लोग भी स्वीकार कर रहे हैं और इस परंपरा को लोगों के भूलने पर चिंता भी व्यक्त कर रहे हैं। मिट्टी के दीये जलाना परंपरा के साथ हमारी संस्कृति है। अपनी संस्कृति को कोई कैसे भूल सकता है। इसका सभी लोगों को ध्यान रखना चाहिए। मिट्टी के दीये जलाने के कई लाभ है। जिसका उल्लेख कई जगहों पर देखने और सुनने को मिलता है। इसलिए सभी लोग मिट्टी के दीयें जलाएं।

दीपावली का त्यौहार मिट्टी के दीये से जुड़ा हुआ है। यह हमारी संस्कृति में रचा-बसा हुआ है। दीया जलाने की परंपरा आदि काल से रही है। भगवान राम की अयोध्या वापसी की खुशी में अयोध्यावासियों ने घर-घर दीप जलाया था, तब से ही कार्तिक महीने में दीपों का यह त्यौहार मनाये जाने की परंपरा रही है। पिछले दो दशक के दौरान कृत्रिम लाइटों का क्रेज बढ़ा है। आधुनिकता की आंधी में हम अपनी पौराणिक परंपरा को छोड़कर दीपावली पर बिजली की लाइटिंग के साथ तेज ध्वनि वाले पटाखे चलाने लगे हैं। इससे एक तरफ मिट्टी के कारोबार से जुड़े कुम्हारों के घरों में अंधेरा रहने लगा, तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलानेवाले पटाखों को अपना कर अपनी सांसों को ही खतरे में डाल दिया। अपनी परंपराओं से दूर होने की वजह से ही कुम्हार समाज अपने पुश्तैनी धंधे से दूर होता जा रहा है। दूसरे रोजगार पर निर्भर होने लगे हैं।एक समय था जब दीपावली पर्व को लेकर लोग मिट्टी के दीये खरीदने के लिए पहले ही कुम्हार को आर्डर कर देते थे। तब गांव या अन्य किसी गांव के कुम्हार के घर के सभी सदस्य काम में व्यस्त होते थे।

लोग मिट्टी के दीये जलाएं। इससे प्रदूषण भी नहीं होगा और परंपरा भी जीवंत रहेगी। दीपावली पर्व पर मिट्टी के दीये जलाना पूर्वजों के द्वारा बनाई गई परंपरा है। इसे हम सभी लोगों को बरकरार रखना चाहिए। दिवाली में मिट्टी के दीये जलाना हमारी संस्कृति और प्रकृति से जुड़ने का बहुत ही सुगम साधन है। यह भारतीय संस्कृति में बहुत ही शुभ और पवित्र माना जाता है। मिट्टी के दीये प्रेम, समरसता और ज्ञान के प्रतीक हैं। सामाजिक व आर्थिक आधार पर भी दीयों की खूबसूरती जगजाहिर है। इस बार दीपावली के दिन मिट्टी के दीये जलाने का संकल्प लेकर संस्कृति का बचाव करना है। सभी लोग मिट्टी के दिये ही जलाएँ। आज की युवा पीढ़ी इलेक्ट्रानिक लाइटों के प्रति अधिक रुचि रख रही है। घरों को सजाने से लेकर दीये जलाने में इलेक्ट्रानिक लाइटों का ही उपयोग कर रही है। जबकि यह सोचना चाहिए कि हमारी संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करना युवाओं के कंधे पर ही है। गाँव या किसी शहर में जो कुम्हार है वह आज भी मिट्टी के दीये बनाते हैं। इसमें उन्हें सिर्फ़ आमदनी का लालच नहीं होता बल्कि उनमें अपनी संस्कृति और परंपरा को बरकरार रखने का उत्साह होता है। लेकिन लोग इसे भूलते जा रहे हैं।

janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

Kiara Advani: कियारा की टीम ने जारी किया हेल्थ अपडेट, इस वजह से बिगड़ी थी तबियत

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...

Lohri 2025: अगर शादी के बाद आपकी भी है पहली लोहड़ी, तो इन बातों का रखें खास ध्यान

नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत...
spot_imgspot_img