उपेंद्र शंकर
जलवायु संकट से उत्पन्न गंभीर चुनौतियों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए शनिवार (16 नवंबर 2024) को केरल के वझाचल से अथिरापिल्ली तक, पांच किलोमीटर के क्षेत्र में, ‘जलवायु मार्च 2024’ का आयोजन किया गया। ‘पीपुल्स क्लाइमेट एक्शन, केरल’ और ‘चालाकुडी रिवर प्रोटेक्शन फोरम’ के संयुक्त नेतृत्व में इस जलवायु मार्च का आयोजन किया गया था। 16 नवंबर को ‘रिवर रिसर्च सेंटर’ के संस्थापक और प्रेरक व्यक्तित्व डॉ. लता अनंथा का स्मृति-दिवस भी है। वैज्ञानिक डॉ. लता का, जिन्होंने मुक्त प्रवाह वाली नदियों के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया, 2017 में एक साल से अधिक समय तक कैंसर से जूझने के बाद निधन हो गया। उनकी उज्ज्वल यादों को श्रद्धांजलि देते हुए, डॉ. लता की 7वीं पुण्यतिथि पर ही इस ‘जलवायु मार्च’ का आयोजन किया गया था।
केरल में पहला ‘जलवायु मार्च’ 2015 में आयोजित किया गया था, जब लोगों ने वझाचल से अथिराप्पिल्ली तक मार्च किया था। मार्च के महासचिव रवि ने बताया यह चालक्कुडी ‘नदी बेसिन की सुरक्षा के लिए अथिराप्पिल्ली आंदोलन की पृष्ठभूमि में आयोजित किया गया था।’ ‘वर्ष 2016 से केरल नियमित रूप से चरम जलवायु घटनाओं का सामना कर रहा है। 2016 में, हमारे पास सूखा था, उसके बाद 2018 और 2019 में बाढ़ आई और फिर बड़े पैमाने पर भूस्खलन हुआ। हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं जहां तत्काल और पर्याप्त जलवायु कार्रवाई की आवश्यकता है। इसी संदर्भ में हमने डॉ. लता की सातवीं पुण्यतिथि को जलवायु मार्च के रूप में आयोजित करने के बारे में सोचा।’
सरकार जलवायु संकट पर हर चीज को दोष देती है, लेकिन शमन के लिए कुछ नहीं करती है। रवि ने कहा, ‘सभी आपदाएं अत्यधिक वर्षा या चरम जलवायु घटनाओं के कारण नहीं होती हैं। इन आपदाओं में भूमि उपयोग परिवर्तनों की प्रमुख भूमिका होती है, लेकिन इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है।’ वर्ष 2018 की विनाशकारी बाढ़ कई कारणों से आई थी, जिसमें पश्चिमी घाट में भूमि उपयोग में बदलाव और मध्यभूमि में धान की खेती शामिल है। बांधों ने भी इसमें भूमिका निभाई और आपदा प्रबंधन तंत्र की विफलता भी हुई। रवि ने कहा, ‘इन सभी का सम्मिलित प्रभाव बड़े पैमाने पर बाढ़ था, जिसने आपदा की भयावहता को कई गुना बढ़ा दिया। इन सभी पर ध्यान देने की आवश्यकता है। पश्चिमी घाट सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है।’
पश्चिमी घाट क्षेत्र में तापमान वृद्धि मध्यभूमि से अधिक बताई जाती है और तापमान या वर्षा पैटर्न में एक छोटा सा बदलाव भी जैव-विविधता को बडे स्तर पर प्रभावित कर सकता है। रवि ने कहा, ‘केरल पश्चिमी घाट के संरक्षण में है, इसके बिना केरल, जैसा कि हम जानते हैं, अस्तित्व में नहीं रह सकता, लेकिन दुर्भाग्य से पश्चिमी घाट के इस महत्वपूर्ण महत्व को स्वीकार नहीं किया जाता है।’
तटीय क्षेत्र में कई स्थानों पर लगातार तूफानी लहरें और ज्वारीय बाढ़ देखी जा रही है। ‘उच्च जनसंख्या घनत्व वाला पूरा तटीय क्षेत्र बेहद संवेदनशील हो गया है और हम नहीं जानते कि कब कोई बड़ी आपदा आ जाएगी।’ केरल में जलवायु कार्यकर्ता चाहते हैं कि उन क्षेत्रों को विशेष महत्व दिया जाए जहां अधिक कार्रवाई की आवश्यकता है। वे यह भी सुनिश्चित करना चाहते हैं कि स्थानीय स्वशासन स्तर से लेकर सभी सरकारी परियोजनाओं की जलवायु संकट के संबंध में जांच की जाए।’
शमन और लचीलापन निर्माण के लिए विशिष्ट गतिविधियों की आवश्यकता है, यह अस्पष्ट नहीं हो सकता और केवल राज्य-स्तरीय कार्य योजना रखने की बजाय, हमें इसे स्थानीय स्तर पर विभाजित करना पड़ सकता है। ‘केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान’ (ङकछअ) ग्राम पंचायतों के लिए जलवायु पर लचीली योजनाएँ विकसित कर रहा है, लेकिन पता नहीं कि इसका कितना हिस्सा जमीनी स्तर पर पहुंचा है,’ रवि ने कहा।
स्थानीय निकाय, समुदाय के स्तर पर भागीदारी और युवाओं की भागीदारी इस दृष्टिकोण के लिए बुनियादी हैं। रवि के मुताबिक, ‘अभी कई जगहों पर मानसून की बारिश की निगरानी हो रही है, जिसे राज्य की कार्ययोजना में शामिल किया जाना चाहिए और कार्रवाई करते समय इस पर विचार किया जाना चाहिए। युवाओं को इसमें सबसे आगे रहना होगा। इन चीजों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। जिस तरह से इसे पढ़ाया जा रहा है, वह ज्यादातर सतही है। हमेशा की तरह चलने वाला परिदृश्य अब संभव नहीं है।’
वर्ष 2022 में केरल ने जलवायु परिवर्तन पर राज्य कार्य योजना को संशोधित किया था, जिसमें ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से अपने कमजोर भौगोलिक क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए कार्रवाई की पहचान की गई थी, लेकिन जलवायु कार्यकतार्ओं को लगता है कि जमीन पर पर्याप्त काम नहीं किया जा रहा है।
जलवायु संकट पर जागरूकता पैदा करने और कार्रवाई को गति देने के लिए ‘जलवायु मार्च 2024’ के आयोजक कम-से-कम 10 वर्षों की अवधि के लिए पूरे राज्य में एक अभियान विकसित करने की योजना बना रहे हैं। यह कार्यक्रम 29 वें ‘संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन’ (‘कॉप29’) के साथ भी मेल खाता है, जो इन दिनों (11से 22 नवंबर2024 तक) अजरबैजान के बाकू में चल रहा है।