शिखा चौधरी
अपने बच्चों को मां जैसी आदत डालेगी, वे वैसे ही बनेंगे। सुबह उठकर कुल्ला करने और मुंह धोने के बाद ही उन्हें चाय लेने की आदत डालें। सवेरे ही टूथब्रश करके अच्छे साबुन से नहाने की आदत डालें। रात को सोने से पहले ब्रश करने की आदत भी मां ही डाले। ब्रश महीना भर बाद बदलते रहें। इससे आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी बनेगा। वह अपने ब्रश, टावेल आदि के पुराने होने पर आपसे खुद व खुद शिकायत करेगा। बच्चे यदि स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होंगे तो आपकी चिंताएं भी कम होंगी।
दीपा की शादी हुई और वह ससुराल आ गई। धीरे-धीरे उसने घर के सभी कामों में अपनी सास का हाथ बंटाना शुरू कर दिया। वह रसोई, कपड़े धोने आदि सभी काम करने लगी। वह सब्जी बगैर धोए ही काट देती। चावल वगैरह चम्मचों से डालने के बजाय हाथ से ही प्लेट में डाल देती। गैस साफ करने वाले कपड़े से ही बरतन पोंछकर खाना परोस देती है। एक दिन वह कूड़ेदान में कूड़ा डालने के बाद आकर रसोई में रोटियां बेलने लगी। उसकी सास ने तुरंत टोक दिया। दीपा ने कहा कि ऐसा करने की ही आदत है। उसकी मां भी हमेशा ऐसा ही करती रही है। जब रोटियां सिकेंगी तो अपने आप ही कीटाणु मर जाएंगे। हर समय हाथ धोने की क्या जरूरत?
जिन हाथों से वह बर्तन साफ करती, उन हाथों से ही पीने का पानी भरकर दे देती। खाने-पीने की चीजों को ढक कर नहीं रखती। खाना इतना बना देती कि वह दूसरे समय भी सबको खाना पड़ता था। उसकी लापरवाही का असर परिवार के स्वास्थ्य पर पड?े लगा। अक्सर पढ़ी-लिखी महिलाएं जब स्वच्छता एवं सफाई के प्रति इतनी लापरवाही दिखाती हैं तो बड़ा सोचनीय लगता है किंतु ऐसी महिलाओं की हमारे समाज में कमी नहीं है। वे साफ-सफाई के महत्त्व को जानते हुए भी उसे अपने जीवन में अपनाती नहीं हैं।
दरअसल जब बच्चा छोटा होता है तो वह अपने माता पिता एवं बड़ों के अनुकरण से ही सीखना शुरू करता है। किसी भी बच्चे पर उसके मां के संस्कारों का सबसे ज्यादा प्रभाव होता है। उसी से बच्चे काफी कुछ सीखते हैं। परिवार के बाकी सदस्य भी साफ सफाई के तौर तरीके उनसे सीख लेते हैं। बस जरूरी है घर में साफ सफाई के प्रति सभी को जागरूक बनाने की।
संध्या जब शादी करके नई नई ससुराल आई तो वह अपने पति की आदतों से बड़ी दुखी हुई। उसका पति महीनों एक ही टावेल का इस्तेमाल करते। बिस्तर, चादर कुछ भी महीनों तक नहीं बदलते। सास बर्तनों को साबुन लगाने से पहले धोती नहीं थी बल्कि जूठे गंदे बर्तनों में ऐसे ही साबुन मार देती। बर्तन पोंछने वाले कपड़े से ही गैस स्टोव पोंछ देती। संध्या को बहुत बुरा लगता। उसने अपने मायके में हर काम में सफाई सीखी थी। उसने सीखा था कि टावेल प्रत्येक दिन धुलना चाहिए। बिछौने एवं ओढ़ने के कपड़े भी प्रत्येक सप्ताह धुलने चाहिएं। आखिर उसने साफ सफाई के प्रति अपने बच्चों को तो जागरूक बना ही दिया। देखा देखी परिवार के बाकी सदस्य भी सफाई के प्रति जागरूक हो गए।
उसकी दस साल की बेटी बाजार से आई सभी सब्जियों को धोकर फ्रिज में रख देती है तो बेटा कूड़ा कूड़ेदान में डालकर साबुन से हाथ धोता है। घर में पहनने की चप्पल और हैं और टायलट में पहनने के लिए अलग चप्पल हैं। रसोईघर में कोई चप्पल लेकर नहीं घुसता। बच्चे खाना प्लेट में उतना ही लेते हैं जितना कि उन्हें खाना है। प्लेट में जूठन छोड?ा सख्त मना है। किचन की सिंक में प्लेट साफ करके रखते हैं जिससे नाली न रूके और काकरोच वगैरह न पनपें।
अपने बच्चों को मां जैसी आदत डालेगी, वे वैसे ही बनेंगे। सुबह उठकर कुल्ला करने और मुंह धोने के बाद ही उन्हें चाय लेने की आदत डालें। सवेरे ही टूथब्रश करके अच्छे साबुन से नहाने की आदत डालें। रात को सोने से पहले ब्रश करने की आदत भी मां ही डाले।
ब्रश महीना भर बाद बदलते रहें। इससे आपका बच्चा स्वस्थ रहेगा और स्वास्थ्य के प्रति जागरूक भी बनेगा। वह अपने ब्रश, टावेल आदि के पुराने होने पर आपसे खुद व खुद शिकायत करेगा। बच्चे यदि स्वयं अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक होंगे तो आपकी चिंताएं भी कम होंगी।