नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉटकॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनंदन है। रंग पंचमी भारतीय संस्कृति का एक उल्लासपूर्ण और जीवंत पर्व है, जो विशेष रूप से रंगों के माध्यम से खुशी और भाईचारे का संदेश देता है। इसे फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि को मनाने की परंपरा है, जो होली के बाद आता है। यह त्योहार न केवल रंगों का उत्सव है, बल्कि इसके पीछे गहरी आध्यात्मिक और धार्मिक मान्यताएं भी हैं।
रंग पंचमी का महत्व
रंग पंचमी का सीधा संबंध सात्त्विक ऊर्जा और दैवीय शक्ति से जुड़ा हुआ है। इस दिन वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा की वृद्धि होती है और बुरी शक्तियां निष्क्रिय हो जाती हैं। मान्यता है कि यह पर्व पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) के संतुलन को बनाए रखने में सहायक होता है। श्रीकृष्ण और राधा जी की लीलाओं का स्मरण कर इस दिन रंगों से खेला जाता है। मान्यता है कि वृंदावन में भगवान श्रीकृष्ण ने गोपियों और ग्वालों के साथ होली खेलकर प्रेम और आनंद का संदेश दिया था, जिसे रंग पंचमी के रूप में भी मनाया जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान श्रीकृष्ण, राधा जी, भगवान शिव और कामदेव की पूजा करने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि, प्रेम और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
पूजा विधि
रंग पंचमी के दिन प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके पश्चात घर के मंदिर में भगवान श्रीकृष्ण और राधा जी की मूर्ति या चित्र स्थापित कर गुलाल और पुष्प अर्पित करें। भगवान शिव की पूजा कर शिवलिंग पर जल, दूध, बेलपत्र और चंदन अर्पित करें। मान्यता है कि इस दिन भगवान कामदेव और उनकी पत्नी रति की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द बना रहता है। इसलिए इस दिन विशेष रूप से शिव-पार्वती और कामदेव-रति की पूजा का महत्व बताया गया है।
पौराणिक कथा
रंग पंचमी का संबंध भगवान शिव और कामदेव से विशेष रूप से जुड़ा हुआ है। कथा के अनुसार, जब माता पार्वती भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए घोर तपस्या कर रही थीं, तब शिव ध्यान में लीन थे। देवताओं को तारकासुर नामक असुर के वध के लिए शिव-पार्वती के विवाह की आवश्यकता थी। लेकिन भगवान शिव की कठोर तपस्या को भंग करने के लिए देवताओं ने कामदेव को भेजा। कामदेव ने जब पुष्प बाण चलाया, तो भगवान शिव का ध्यान भंग हो गया और क्रोध में आकर उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी। इससे कामदेव भस्म हो गए। बाद में, देवी रति के विलाप और प्रार्थना से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने वरदान दिया कि कामदेव बिना शरीर के (अनंग रूप में) पुनः जीवित होंगे और सृष्टि में प्रेम और सौंदर्य का संचार करेंगे। जब कामदेव को अनंग रूप में पुनर्जीवित किया गया, तो देवताओं और ऋषियों ने इसे रंगों के साथ उत्सव के रूप में मनाया। तभी से रंग पंचमी का त्योहार मनाने की परंपरा चली आ रही है।