Wednesday, January 22, 2025
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कानूनों के विरोध का मुद्दा एक, रालोद व भाकियू की राह रहीं जुदा

नरेशपाल सिंह तोमर |

बड़ौत: बामनौली गांव में इस बार तोमर वंश के सम्राट सलक्षणपाल तोमर की जयंती मनाई गई। इस जयंती के अवसर पर किसानों के दो खेमे स्पष्ट बंटे हुए दिखे। यज्ञ के अवसर पर सुबह के समय भारतीय किसान यूनियन के काफी संख्या में लोग दिखे थे। लेकिन बाद में हुई पंचायत में भारतीय किसान यूनियन के चेहरे गायब रहे। हालांकि यहां भाकियू व रालोद की ताकत किसान ही है।

इस कार्यक्रम के लिए बामनौली गांव के लोग चार-पांच दिन से तैयारियों में लगे हुए थे। जयंती के कार्यक्रम को लेकर कुछ लोगों की ओर से भाकियू के प्रवक्ता राकेश टिकैत का प्रोग्राम लेकर आ गए थे। लेकिन कुछ किसान इससे संतुष्ट नहीं दिखे तो वह चौधरी अजित सिंह का प्रोग्राम लेकर आए थे।

दोनों के एक मंच को साझा करने के लिए मामला गड़बड़ दिखा। चूंकि भाकियू के आंदोलन के दौरान किसी राजनीतिक व्यक्ति को किसान नेताओं ने अपना मंच नहीं दिया। तब ऐसे में राकेश टिकैत और चौधरी अजित सिंह को एक मंच पर कैसे बैठाया जाए? इस मुद्दे पर दो दिन तक चर्चा चली। अंत में देशखाप चौधरी सुरेन्द्र सिंह ने अपने बड़ौत स्थित आवास पर मामले को स्पष्ट किया। उन्होंने राकेश टिकैत को यज्ञ अवसर पर आमंत्रित करना बताया।

वहीं किसान पंचायत के लिए चौधरी अजित सिंह की मौजूदगी की जानकारी दी। चूंकि बिजनौर में कुछ दिन पहले इसी तरह की एक पंचायत हुई थी। पंचायत का आयोजन भाकियू की ओर से किया गया था। वहां रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी समेत कई नेताओं को आमंत्रित किया था। लेकिन भाकियू के मंच पर उन्हें नहीं बैठाया गया था। तब वहां थोड़ी गर्माहट भी हुई थी।

हालांकि रालोद के कार्यकर्ताआें ने जयंत चौधरी को जबरन मंच पर चढ़ाकर वहीं से उनका भाषण कराया था। तब से भाकियू के लोग इस तरह के मंच से दूरी बनाए हुए हैं। वह नहीं चाहते कि सरकार उन पर आक्षेप लगाए कि वह राजनीतिक दलों के लोगों के साथ आंदोलन कर रहे हैं। वहीं रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह हो या जयंत चौधरी या फिर प्रियंका गांधी हो। सभी किसान आंदोलन को लेकर रैलियां कर रहे हैं। इन रैलियों से सरकार का ही विरोध हो रहा है। कृषि कानूनों के खिलाफ ही वह रैलियों में बोल रहे हैं।

बामनौली की किसान पंचायत की बात करें तो यहां से भाकियू के लोग नदारद थे। जबकि सुबह के समय हुए यज्ञ से रालोद के स्थानीय नेता गायब थे। यानि कि मुद्दा एक ही है, लेकिन उनकी राहें अलग-अलग हैं। अब जिस तरह से चौधरी अजित सिंह किसानों से कह गए हैं कि इस सरकार को नष्ट कर दो नहीं तो यह उन्हें बर्बाद कर देगी, वाले बयान से रालोद सीधे सरकार का विरोध कर रहा है। विरोध तो भाकियू भी कर रही है। लेकिन भाकियू राजनैतिक भाषा बोलने से परहेज कर रही है।

भाकियू नेताओं के केवल विरोध करने और सरकार में बैठी पार्टी की आलोचना न करना ही दोनों के बीच अंतर पैदा कर रहा है। हालांकि भाकियू के विरोध से निकलने वाले सुर राजनैतिक दलों को ही फायदा पहुंचा रहे हैं। इसलिए ही शायद राकेश टिकैत ने किसान पंचायत में शामिल होने की अनुमति नहीं दी थी। हालांकि यज्ञ में आए राकेश टिकैत ने लोगों से कहा कि वह अपना प्रोगाम करें और बहुत ही अच्छे तरीके से करें।

गांव के कुछ लोग बता भी रहे हैं कि यदि वह यहां किसान पंचायत में शामिल होते तो तब उन पर राजनीति करने के आरोप लगाए जाने लगते। वहीं रालोद के कुछ लोग बता रहे हैं कि यहां भाकियू का आदमी हो या रालोद का एक ही बात है। बात सिर्फ किसान की है। किसान के हक की बात जो करेगा वह किसान का होगा।

बड़े मंच पर नहीं चढ़े राकेश

राहें जुदा भी हैं और मुद्दा भी एक है, लेकिन मंच भी अलग-अलग है। जयंती के लिए बकायदा यहां बड़ा मंच तैयार किया गया था और रागिनी कलाकारों के बीच साइड में एक छोटा मंच भी तैयार किया था। राकेश टिकैत बड़े मंच पर चढ़ने की बजाय छोटे मंच पर चढ़कर अपना संबोधन देकर चले गए। वह बड़े मंच पर नहीं चढेÞ। इसके बाद तमाम सवाल भी हैं और अलग-अलग राहें होने की तस्वीर भी हैं।

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