Saturday, July 27, 2024
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भय के माहौल को चित्रित करता उपन्यास!

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Ravivani 26


सुधांशु गुप्त |

फ्रांसीसी उपन्यासकार पैट्रिक मोदिआनो को 2014 में जब साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार की घोषणा हुई तो नोबेल समिति की ओर से कहा गया कि यह पुरस्कार उन्हें अपनी स्मृति कला के लिए दिया जा रहा है। इसी स्मृतिकला के इस्तेमाल से उन्होंने मानव जीवन की मायावी नियति को उजागर किया। एक इंटरव्यू में मोदिआनो ने स्वयं कहा था कि वह हमेशा एक ही किताब लिखते रहते हैं। और ऐसा इसलिए है क्योंकि उनका अधिकतर लेखन स्मृतियों पर ही केन्द्रित है। उनकी स्मृतियाँ विस्थापन की स्मृतियाँ नहीं हैं, ना ही ये प्रेमी या प्रेमिका से अलग होने की स्मृतियाँ हैं। वास्तव में ये स्मृतियाँ जर्मन के कब्जे वाले पेरिस शहर में व्याप्त उस भ? की हैं, जो नाजियों के अमानवीय कृत्यों, फौजों के खौफ से पेरिस की गलियों में फैला था। नाजियों के कब्जे वाले पेरिस की बहुत सी दुखद स्मृतियाँ मोदिआनो के जेहन में बसी रहीं। 30 जुलाई 1945 को पेरिस में पैदा हुआ मोदिआनो के पिता यहूदी-इतालवी मूल के थे। उन्होंने यहूदियों के लिए पीला बिल्ला पहनने का नाजी इंतजामिया नियम मानने से इंकार कर दिया था। मोदिआनो दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पेरिस से लापता हुई एक यहूदी लड़की की तलाश में हैं। मोदिआनो ने पूरा उपन्यास इसी तलाश पर लिखा है। पैट्रिक मोदिआनो का उपन्यास ‘एक यहूदी लड़की की तलाश’ (अनुवाद-युगांक धीर, प्रकाशक-राजकमल पेपरबैक्स) अंग्रेजी में ‘डोरा ब्रूडर’ के नाम से प्रकाशित हुआ। उपन्यास की शुरूआत ‘पारी स्वार’ अखबार की एक बहुत पुरानी प्रति के पृष्ठ तीन के एक शीर्षक ने अचानक लेखक का ध्यान अपनी तरफ खींचा। 31 दिसंबर 1941 की तारीख के इस अखबार में दिन प्रतिदिन नामक कॉलम में कुछ इस प्रकार एक खबर छपी थी:

पेरिस
लापता-डोरा ब्रूडर नाम की एक लड़की, उम्र 15 वर्ष, कद 1.55 मीटर अण्डाकार चेहरा, सलेटी भूरी आँखें, भूरे रंग की स्पोर्टस जैकेट, मैरून रंग का पुलओवर, नेवी ब्लू स्कर्ट और हैट, और भूरे रंग के स्पोर्ट्स शूज। कोई भी जानकारी होने पर मोन्स्योर और मदाम ब्रूडर, 41 आॅनीर्नो पथ, पेरिस, पेरिस के पते पर देने/भेजने की कृपा करें।

पैट्रिक मोदिआनो के जेहन में पता नहीं उस समय क्या रहा होगा। संभव है वह पेरिस के उस डरावने माहौल का दोबारा जीवित करना चाहता हो (अपने लेखन में), यह भी मुमकिन है कि पैट्रिक के भीतर नाजियों द्वारा पैदा किया गया वह डर अब अपनी जगह बनाए हो। लेखक के बचपन के भी बहुत से ऐसे अनुभव थे जो इस डर को मरने नहीं दे रहे थे। लेखक यह देखना चाहता रहा होगा कि किन परिस्थितियों में डोरा गायब हुई, वह कहाँ-कहाँ गई। उस समय उन गलियों में क्या माहौल था और नाजियों का कितना डर था। नाजियों और पेरिस को लेकर और भी बहुत से सवाल रहे होंगे पैट्रिक के जेहन में। उन सब सवालों से रूबरू होने के लिए ही लेखक ने 15 साल की यहूदी लड़की डोरा ब्रूडर की तलाश शुरू की। पता नहीं लेखक के मन में लड़की के मिल जाने या खोज लिए जाने की कितनी संभावना रही होगी। यह भी संभव है कि लेखक यह जानते रहे हों कि पाँच दशक बाद पेरिस पर जर्मन कब्जे के बचे खुचे दस्तावेजों में डोरा ब्रूडर का मिलना मुश्किल ही है। बावजूद इसके वह लड़की की तलाश शुरू करते हैं। उन सड़कों पर, गलियों में, उन रेस्तराओं में जो उस वक्त मौजूद थे, उन घरों में जो उस वक्त थे और जिनमें लोग रहते थे, आॅनार्नो चौराहे के कैफे में, आसपास के होटलों में और उन तमाम संभावित जगहों पर जो उस समय रही होगी और जहां-जहां डोरा की जाने की संभावना रही होगी। यहां तक कि लेखक अपनी कल्पनाशीलता से यह भी सोचते हैं कि हो सकता है कि डोरा स्कूल से अपने किसी ब्वॉय फ्रेंड के साथ कहीं चली गई हो। लेखक डोरा के माता पिता का पता लगा लेता है और डोरा की बहन के विषय में भी उसे पता चलता है। वह यह भी पता कर लेता है कि डोरा बहुत गुस्से वाली, विद्रोहिणी स्वभाव की लड़की थी। कड़ी से कड़ी जुड़ती चली जाती है और बार-बार यह लगता है कि अब डोरा के बारे में कोई निश्चित जानकारी मिल जाएगी। लेकिन जैसा कि स्वयं मोदिआनो लिखते है: जो मिट चुका हो, उसे प्रकट होने में समय लगता है. रजिस्टरों में कुछ निशान बचे रहते हैं. किसी को पता नहीं होता कि ये रजिस्टर कहाँ छिपाए गए हैं और किसके संरक्षण में हैं, इनके संरक्षक आपको इनमें झाँकने भी देंगे या नहीं. या शायद वे भूल ही चुके होते हैं कि ऐसे रजिस्टरों का कोई अस्तित्व भी है। इसके लिए थोड़े धैर्य की जरूरत होती है।

धैर्य और तलाश की इस लंबी यात्रा में लेखक को कुछ निशान, कुछ तस्वीरें अवश्य मिलती हैं। लेकिन डोरा की तलाश में लेखक अपनी ही जिÞन्दगी के तमाम ऐसे पड़ावों से गुजरते हैं, जहाँ डोरा की आहट सुनाई देती हैं-सिर्फ आहट। पैट्रिप मोदिआनो प्राप्त ब्यौरों से यह भी पता लगा लेते हैं कि डोरा अपने माँ बाप के साथ रहती होगी और कान्वेंट आॅफ द होली हार्ट आॅफ मैरी के बोर्डिंग स्कूल में पढ़ती होगी। पैट्रिक ने बोर्डिंग स्कूल के पूरे माहौल को पुनर्जीवित किया है, जहाँ के सख्त अनुशासन और अँधेरों में उसने अपनी जिंदगी का थोड़ा सा समय बिताया होगा। जहाँ के रजिस्टर में उसके जाने की तारीख और कारण के कालम में यह लिखा हुआ था-14 दिसंबर, 1941, शिष्या भाग गई है।

यूं देखा जाए को डोरा उपन्यास की मुख्य पात्र है, लेकिन वह सजीव कहीं भी उपस्थित नहीं है। लगता है कि लेखक डोरा ब्रूडर के बहाने जर्मन द्वारा पेरिस पर कब्जे बाद पैदा हुए माहौल को चित्रित करना चाहता है। और जिसे लेखक ने बेहद संजीदगी और कौशल के साथ पुन:सृजित किया है। यह एक ऐसा दौर था जब बहुत से लोगों के लिए न सूरज के पास रोशनी बची थी, न आकाश के पास हवा, न घर उन्हें छिपा पाते थे, न सड़कें कहीं पहुँचा पाती थी। उन्हें कहीं भी कभी भी पकड़ा जा सकता था, उनके लिए नियम बन गए थे, जो उन्हें उनके ही जैसे मनुष्यों के बीच कम मनुष्य बनाते थे। उन्हें निर्धारित समय पर निकलना था, निर्धारित इलाकों में रहना था, निर्धारित बसों में चलना था और हर समय अपनी पहचान को जाहिर करना था। संभवत: यह पहला ऐसा उपन्यास है जिसमें किरदारों (बल्कि किरदार तो हैं ही नहीं) से ज्यादा महत्वपूर्ण नाजियों की भयपूर्ण और अमानवीय दुनिया दर्ज है। लेखक डोरा ब्रूडर की तलाश अंत तक पहुँचती है और लेखक पाता है कि स्कूल से निकलने के बाद डोरा जर्मनों की पकड़ में आ गई होगी और आखिरकार उसे आउशवित्ज भेज दिया गया होगा। ऐसा लगता है कि लेखक डोरा ब्रूडर के जरिये उसे रूट को चित्रित कर रहा है जो आउशवित्ज तक जाता है। इस उपन्यास को पढ़ते हुए पाठक चौंक जाता है और उसे अपने आसपास के डर दिखाई देने लगते हैं।


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