Sunday, January 19, 2025
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सपने, संघर्ष और प्रतिबद्धता की दास्तान!

RAVIWANI


SUDHANSHU GUPTजिन्दगी की तुलना जिन्दगी के अलावा किसी से नहीं की जा सकती…यह सच है। हर व्यक्ति की जिन्दगी अलग होती है…पीयूष मिश्रा ही अगर अपनी गुजर चुकी जिन्दगी की तुलना वर्तमान जिन्दगी से करना चाहें तो उनके लिए आसान नहीं होगा…एक ऐसी शख्स जिसे जंगली…जाहिल…शराबी…वूमैनाइजर, डिफिकल्ट टू वर्क विद…अपने में लिप्त एक जानवरनुमा बन्दा…जैसे विशेषणों से संबोधित किया गया। पीयूष मिश्रा, जो एक्टिंग के आर्ट को माइक्रो लेवल तक पहुँचाना चाहता था, जिसके सपने और महत्वाकांक्षाएं व्यावसायिक नहीं थी, जो रंगमंच पैसे के लिए नहीं करना चाहता था, बॉलीवुड में अभिनय करना जिसकी प्राथमिकता नहीं था, जो इनडिसिप्लिन में डिसिप्लिन देखता रहा, जिसे हिन्दुस्तानी थियेटर का चेग्वारा कहा गया…जो पूरे सिस्टम को बदलने के सपने देखता था….जिसने अपने जीवन से जाना कि नैतिकता सहूलियत की चीज है…अपने गीत, संगीत, गायन, अभिनय और पेंटिंग्स से जिसने रंगमंच और मीडिया में धूम मचा दी थी। उसी पीयूष मिश्रा की पुस्तक प्रकाशित हुई है ‘तुम्हारी औकात क्या ही पीयूष मिश्रा’ (राजकमल पेपरबैक्स)। इसे आत्मकथात्मक उपन्यास कहा गया है।

पुस्तक के समपर्ण में उन्होंने लिखा है-उन सबके नाम जिनको धोखा देकर मैंने जाना कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था…उन सबके नाम जिनसे मिले धोखे ने मुझे माफी देने के गुण से परिचित कराया। जाहिर है उन्होंने धोखे दिये भी और खाये भी। यही जीवन है। इस आत्मकथात्मक उपन्यास का नायक संताप त्रिवेदी उर्फ हैमलेट उर्फ पीयूष मिश्रा है। वाया ग्वालियर संताप राष्ट्रीय नाट्य पहुंचे। संताप ने दूसरे साल ‘हैमलेट’ का मंचन किया था। अचम्भित निगाहें, पागलपन भरा उन्माद और तालियों का शोर संताप के हिस्से आया।

मेकअप के शिक्षक सुधीर कुलकर्णी ने कहा था, जॉनी, संताप तो गया काम से। क्लासिकल कैरेकटर्स को इस खूबी से अभिनीत कर जाना वो भी 22 की उम्र में। मतलब अब संताप तो अपनी बाकी जिन्दगी में हैमलेट की तरह घूमेगा, हैमलेट की तरह हगेगा और हैमलेट की तरह मूतेगा। इस नाटक को देखने के लिए हैमलेट के पिता भी ग्वालियर से दिल्ली आए थे।

उन्होंने बेटे का हाथ पकड़कर कहा था, बहुत बढ़िया यार। बहुत ही बढ़िया। लेकिन इस बहुत बढ़िया तक पहुँचने के लिए पीयूष मिश्रा को बहुत पापड़ बेलने पड़े। ग्वालियर में उनका जन्म हुआ। यहीं उनकी स्कूली शिक्षा शुरू हुई। बचपन में ही उन्होंने पराग, चम्पक, चंदामामा और इन्द्रजाल कॉमिक्स, बैताल रैक्स, बाबा मौज, टॉम टॉम, जादूगर मैंड्रिक, होजो, डायना पामर और बहुत कुछ पढ़ लिया था। इसने उनकी मानसिकता बनाने में एक जरूरी भूमिका निभाई होगी।

लेकिन जिन्दगी किताबों सी नहीं होती। संताप ने पहले अपनी छोटी बहन पिन्नी की मृत्यु देखी। इसके बाद विधवा संतो चाची ने उनसे जबरदस्ती यौन संबंध बनाए। उस समय संताप सिर्फ सातवीं कक्षा में पढ़ता था। उसके पिता उसे डॉक्टर बनाना चाहते थे। लेकिन वह डॉक्टर नहीं बनना चाहता था और नहीं ही बना। यही वह समय था जब संताप ने हिन्दू-मुसलमान का भेद जाना। जिन्दगी के मैदान में उतरने से पहले संताप के अपनी स्कूल टीचर से प्रेम संबंध बन गए।

जो ग्वालियर की गलियों से होते हुए उनके पिता तक पहुंच गए। पिता से उनका विवाद और बढ़ गया। लेकिन वह अपने जीवन को अपनी हीतरह जी रहे थे। टेंथ ग्रेड में ही उन्होंने अपनी टीचर का पहला चुम्बन लिया। लेकिन इस सबके बावजूद संताप स्कूलों में भी प्ले करता रहा और उसके भीतर का अभिनेता निखरता रहा। साथ ही उनके गाये गानों को भी छात्र और टीचर पसंद करते।

यह दिलचस्प बात है कि संताप को पेशेवर कलाकार बनने का कोई शौक नहीं था। लेकिन भीतर के अभिनेता ने उन्हें एनएसडी पहुंचा दिया। दिल्ली में संताप के लिए नये-नये दरवाजे खुले। अभिनय के भी और जिन्दगी के भी और दोस्तों के भी। यहीं संताप ने पहली बार शराब का सेवन किया।

दिल्ली में रंगमंच के साथ-साथ संताप बेहद सरसरी तौर पर उस दौर की राजनीति पर भी बात करते हैं। वह बताते हैं, उन दिनों बियर की बोतल 12 रुपए की, गोल्ड फ्लैक किंग साइज का पैकेट छह रुपए का और निरोध 35 पैसे का था। पंजाब सुलग रहा था। कश्मीर सुलग रहा था। बाकी हिन्दुस्तान की हालत भी कम बदतर नहीं थी।

भारतीय जनता पार्टी अपनी भ्रूणावस्था में थी। राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय में स्टूडेंट यूनियन खुल चुकी थी। छात्रों की पढ़ाई के अलावा और सब कामों में रुचि बढ़ गई थी। लेकिन संताप अपनी ही तरह से जिन्दगी जी रहे थे। संताप ने मशरिकी हूर का म्यूजिक तैयार किया। संताप के लिए अभिनय, संगीत, आवारगी प्राथमिकता बने रहे। यहाँ उन्हें फिर एक प्रेमिका मिली। हरजीत। इसके साथ संताप ने पहला संभोग किया।

‘फूजियामा’ और ‘मैन इक्वल्स मैन’ में संताप का अभिनय चर्चा का विषय बना रहा। फ्रिट्ज तक हैमलेट के दिवाने हो गए। उन्होंने कहा, व्हाट एन एक्टर! इन प्रशंसाओं के साथ एनएसडी के तीन साल पूरे हो गये और संताप की रेपर्टरी में हो गई। संताप की ख्याति मुंबई तक फैल चुकी थी। मुंबई से संताप को बुलावे आने लगे थे। गुलजार से उनकी मुलाकात हो गई थी। लेकिन संताप शायद मुंबई जाना ही नहीं चाहते थे।

थियेटर, प्रेम और देह से उनके रिश्ते बनते बिगड़ते रहे। इस बीच संताप ने जिया से विवाह कर लिया। दिल्ली में संताप अकेला पड़ने लगा था। उसके संगी साथी मुंबई जाकर काम कर रहे थे। अंतत: 2001 को संताप मुंबई पहुच गए। मुंबई की दुनिया उसकी प्रतीक्षा कर रही थी। उन्हें एक फिल्म मिल गई। संताप वह फिल्म लिख रहे थे।

प्री इंडिपेंडेंस पर लव स्टोरी। प्रोफेशनल कहे जाने वाले इस शहर में उन्हें पहला धोखा उस समय मिला जब फिल्म की स्क्रिप्ट में किसी और का नाम दिये जाने की बात संताप को पता चली। इसने कई और बड़े बॉलीवुड के चेहरों की पोल खोल दी। विरोधी और जिद्दी संताप ने डायरेक्टर के आफिस की मेज पर पेट्रोल डालकर आग लगा दी। यह कांड फिल्म इंडस्ट्री के प्रसिद्ध या कुप्रसिद्ध पेट्रोल काण्ड के नाम से याद किया जाता है।

इसके बाद नये रास्ते बनते गए। संताप उर्फ पीयूष मिश्रा के गाने लोकप्रिय होने लगे। उनका लिखा और गाया यह गीत बेहद पसंद किया गया:

इक बगल में चांद होगा, इक बगल में रोटियां
इक बगल में नींद होगी, इक बगल में लोरियां
हम चांद पे, हम चांद पे, रोटी की चादर डाल कर सो जाएंगे
और नींद से, और नींद से कह देंगे
लोरी कल सुनाने आएंगे।

आज संताप उर्फ पीयूष मिश्रा गीत लिख रहे हैं, फिल्में कर रहे हैं। दरअसल यह उनकी अपने स्वयं की ही खोज है। ग्वालियर से निकला एक बच्चा चरण दर चरण अपने भीतर छुपी असाधरणताओं को पहचानता है और बचपन के डरो पर विजय पाता है। इसे आत्मकथा कहा जाए या उपन्यास लेकिन सब जानते हैं कि ‘तुम्हारी औकात क्या है पीयूष मिश्रा’ वास्तव में पीयूष मिश्रा की जीवन यात्रा ही है, जिसमें संघर्ष, प्रतिबद्धता, जुनून, प्रेम और रंगमंच सब कुछ है। इसे पढ़ना थियेटर की दुनिया के सच जानना भी है। अच्छी बात यह भी है कि पीयूष ने बेहद ईमानदारी से इसे लिखा है।


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