Tuesday, July 15, 2025
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हादसा एक, प्रश्न अनेक

SAMVAAD 1


KUMAR PRASHANTदिसंबर के दूसरे हफ्ते में हुए उस हेलीकॉप्टर हादसे ने देश की सेना समेत आम नागरिकों को भी बेचैन कर दिया था, जिसमें भारतीय सेना के सर्वोच्च अधिकारी जनरल बिपिन रावत अपनी करीबी टीम के साथ शहीद हो गए थे। अब उस दुर्घटना की विस्तार से जांच करके वजहें पता की जा रही हैं, लेकिन क्या दुर्घटना पर आम नागरिकों के सहज सवालों का कोई जबाव मिल पाएगा? जब सारा देश 2021 को विदा देने की तैयारी में है, हमें शोक से भरी स्मृतियों को विदाई देनी पड़ रही है। आठ दिसंबर के हैलिकॉप्टर हादसे से इतना शोक छाया और इतना शोक रचा गया कि इस हादसे की समीक्षा हो ही नहीं सकी। जिस फौजी जांच की बात कही गई है, उसमें तकनीकी पहलू आएंगे और किसी फाइल में बंद कर दिए जाएंगे, लेकिन जिस दुर्भाग्यपूर्ण हादसे में भारतीय सेना के 13 बहादुरों का खात्मा हुआ, जिनमें भारतीय सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी एक थे, क्या उसकी खुली समीक्षा नहीं होनी चाहिए? जो घटित हुआ वह तो हो गया अब यह समीक्षा ही हमारे बस में बची है, इसलिए शोक से निकल कर हमें कई सवाल पूछने चाहिए, कई जवाब मांगने चाहिए।
सारा देश इस दुर्घटना से विचलित हुआ है। इतने सारे वरिष्ठ सैन्य अधिकारी जब एक साथ मारे जाते हैं तो ऐसा लगता है जैसे अचानक ही आसमान खाली हो गया। इससे देश की सुरक्षा में सेंध लगती है। वैसे तो हर जान कीमती होती है, लेकिन ऐसी विशेषज्ञता के धनी, अनुभव संपन्न फौजी अधिकारियों का इस तरह जाना, ऐसा अहसास जगाता है जैसे किसी ने चौक-चौराहे पर लूट लिया हो। उनके परिवारों का निजी दुख राष्ट्रीय दुख में बदल जाता है।

डॉक्टरों, इंजीनियरों, वैज्ञानिकों आदि को तैयार करने में ही नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े ऐसे सैनिक, पुलिस के जवान व विशेषज्ञ फौजी अधिकारियों को तैयार करने में भी राष्ट्र को बहुत निवेश करना पड़ता है। जब वे उस मुकाम पर पहुंचते हैं कि राष्ट्र भरोसे से उनकी तरफ देख सके, तभी किसी चूक से हम उन्हें खो देते हैं और निजी नुकसान राष्ट्रीय नुकसान में बदल जाता है। शोक की लहर का अपना मतलब होता ही है, लेकिन विवेक सम्मत सवालों के जवाब से आगे की दिशा खुलती है।

आज और अभी ही यह सवाल पूछना जरूरी हो जाता है कि एक साथ, एक ही जहाज से इतने सारे उच्चाधिकारियों का सफर करना कैसे संभव हुआ? सामान्य निर्देश है कि दो से अधिक उच्चाधिकारी एक ही विमान से सफर नहीं करेंगे, फिर जनरल विपिन रावत के साथ इतने सारे फौजियों को सफर करने की इजाजत कैसे मिली और किसने दी? क्या जनरल रावत ने खुद ही ऐसे निर्देशों की अवहेलना करने का निर्देश दिया था? कहीं से, किसी ने तो इस हेलिकॉप्टर उड़ान की योजना बनाई होगी, किसी ने तो इसे जांचा होगा और सफर की इजाजत दी होगी। वह कौन है, वह पूरा दस्तावेज कहां है जिसमें यह पूरी प्रक्रिया दर्ज है। यह पता तो चले कि अपने अनुशासन और आदेश के पालन के लिए जानी जाने वाली फौज में यह सब कैसे चलता है और कौन है जो यह सब चलने से रोक देता है? क्या जनरल रावत जैसे किसी उच्चाधिकारी को ऐसा अधिकार है कि वह सुरक्षा के सामान्य निर्देशों की अवहेलना का आदेश दे सके और सारी फौजी व्यवस्था चूं तक न कर सके?

भारतीय वायु सेना का हैलिकॉप्टर एमआई-17वी5 एक सुरक्षित व विश्वसनीय मशीन मानी जाती है। यह रूसी हैलिकॉप्टर हमारी सेना की शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है, लेकिन यह पहली बार नहीं है कि यह मशीन खतरों में पड़ी है और इसने हमें खतरे में डाला है। इसलिए नहीं कि यह मशीन खराब या कमजोर है, बल्कि इसलिए कि यह मशीन ही तो है। मशीनों के साथ मानवीय सावधानी व कुशलता का मेल हो तभी वह अपनी सर्वोत्तम क्षमता से काम करती है। तब क्या यह सवाल नहीं उठता कि इस उड़ने वाली मशीन पर कितना बोझ डालना इसे अत्यंत बोझिल बनाना नहीं है, यह बात सार्वजनिक की जाए? क्या यह सावधानी जरूरी नहीं है कि मशीन पर उसकी क्षमता से कुछ कम ही बोझ डाला जाए, खासकर तब, जब वह एक साथ अपने इतने बेशकीमती फौजी उच्चाधिकारियों को लेकर उड़ने वाली हो? यदि इसका ध्यान नहीं रखा गया तो यह गैर-जिम्मेदारी का अक्षम्य नमूना नहीं माना जाना चाहिए?

यह भी माना जाता है कि फौजी उच्चाधिकारियों के ऐसे सफर में जो युद्ध के लिए नहीं है, संरक्षक टुकड़ी भी साथ होती है। क्या ऐसी कोई व्यवस्था इस सफर के साथ होती तो दुर्घटना के बाद जले अधिकारियों को बचाने, पानी पिलाने तथा इलाज तक ले जाने की व्यवस्था तुरंत बन ही सकती थी। यह न पूछे कोई कि उससे क्या होता, बल्कि यह बताए कि सावधानियां पूरी रखी गई थीं, इससे देश का भरोसा बनता है या नहीं? वैसे देखें तो यह कोई फौजी अभियान नहीं था जिस पर जनरल रावत जा रहे थे। यह सामान्य फौजी समारोह था, फिर इतने सारे उच्चाधिकारी वहां क्यों जा रहे थे?

मैं नहीं समझता हूं कि यह फौजी पिकनिक का सरकारी आयोजन होगा। तो क्या राजनेताओं का भारी-भरकम लवाजमे से राजनीतिक औकात नापने का पैमाना फौज में भी लागू होने लगा है? हमारी फौज का जिस तरह का राजनीतिकरण पिछले दिनों में हुआ है, जनरल रावत जिस तरह के राजनीतिक बयान देते रहे हैं, उससे किसी स्वस्थ्य लोकतंत्र की खुशबू तो नहीं आती है। इसलिए यह हादसा हमें कई प्रकार से सावधान करता है। तमिलनाडु का कुन्नूर लैंडिंग के लिए कभी भी आसान नहीं माना जाता है। यदि यह कोई नाजुक फौजी अभियान नहीं था तो कुन्नूर को टालने की कोशिश क्यों नहीं की गई? अफसोस व पश्चाताप से भरे राष्ट्र के मन में सवाल-ही-सवाल हैं। इन्हें प्रायोजित शोक की चादर से ढकने की कोशिश आत्मघाती होगी।


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