Wednesday, July 3, 2024
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अडाणी को ‘इंडिया’ होने का गुमान

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30 5भारत में 21वीं सदी के सबसे बड़े कथित घोटाले, ठगी और बेईमानी पर दुनिया भर में भारत की सरकार और उसके कॉरपोरेट की भद्द पिटी पड़ी है। बाजार अपने निर्णय सुना रहा है, मगर जिन्हें बोलना था वे न बोल रहे हैं ना ही संसद तक में बोलने दे रहे हैं। बहरहाल यहां प्रसंग अरबों डॉलर की उठापटक नहीं है ब्लकि एक घोटालेबाज का खुद को देश का पर्याय बताना, जलियांवालाबाग से लेकर राष्ट्रीय ध्वज तक को अपने बचाव में इस्तेमाल करना, भारतीय लोकतंत्र का अडानी इज इंडिया तक जा पहुंचना सिर्फ एक दिलचस्प यात्रा नहीं है बल्कि यह भारतीय राजनीति और समाज के गुणात्मक कायांतरण की गाथा है। जिसकी एक क्रोनोलॉजी है। इसलिए इसे सिर्फ एक कठघरे में घिरे अभियुक्त की घबराहट में कही गयी बात तक सीमित रखकर नहीं देखा जा सकता।

एक प्रतिष्ठित स्वतंत्र एजेंसी की रिपोर्ट में अपने घोटाले, धोखाधड़ी और आदि इत्यादि का भंडाफोड़ होने पर जब गौतम अडानी ने खुद को इंडिया बताने वाला जुमला उछाला तो बरुआ जी की याद आई। साल 1974 में जब कांग्रेस के नेतृत्व में कुछ चीजें बहुत चर्चित हुई । जिसमें एक चमचागिरी उरूज पर थी तब वे अपनी तात्कालिक नेता से इतने अभिभूत हुए कि उनकी शान में ‘इंदिरा इज इंडिया-इंडिया इज इंदिरा’ (इंदिरा ही भारत हैं; भारत ही इंदिरा हैं) का जुमला उछाल कर भारत के लोकतंत्र में ऐसा करारा चीरा लगाया था कि साल भर में वह पूरी तरह उधड़ कर खूंटी पर टंग गया। बरुआ जी की याद उस दौर के भी कम ही लोगों को होगी। जिन्हें याद हैं उन्हें भी वे अपने इस आपत्ति-वचन की वजह से याद हैं।

कभी भारत की संविधान सभा के सदस्य तक रहे बरुआ जी जब संविधान से ही खेले, उसके लोकतंत्र नाम के मजबूत खम्भे से टकराये तो इतिहास के किसी कोने में ऐसे गुम हुए कि स्मृति से ही लापता हो गए। जैसा कि कफनचोर जुम्मन मियां और उनके वारिस कफन चोरी के बाद कब्र में दफन मुर्दे को भी घर के बाहर रख देने वाले लल्लन मियां के नाम से मशहूर कहानी में है। कुछ लोगों को लल्लन मियां की तुलना में जुम्मन चचा बड़े शरीफ लगने लगे थे। इसी मिसल से मौजूदा चुकन्दरों की तुलना में बरुआ जी बड़े सीधे सादे से लगते हैं।

हिंडनबर्ग रिपोर्ट में प्रयुक्त अंग्रेजी के शब्द कोन-उङ्मल्ल-के शब्दकोष अर्थ के अनुसार दुनिया का सबसे शातिर ठग, तिकडमी, भेदी और चोर। हालांकि हिंडनबर्ग द्वारा सारे खातों और हिसाबों की जांच पड़ताल के बाद जारी चरित्र प्रमाणपत्र से पहले से ही ‘जाने न जाने चौकीदार न जाने पर गांव तो सारा जाने है’ की तर्ज पर पूरा इंडिया दैट इज भारत जानता था कि गौतम अडानी क्या है। एक बड़े परिवार के साथ चॉल में रहने वाले अडानी गुजरात की म्युनिसिपालिटी और ऐसे ही छोटे-मोटे सरकारी ठेकों के बाद 1988 में 5 लाख रुपए की पूंजी से एक छोटी सी कमोडिटी कंपनी शुरू करने वाला एक उद्यमी है। जिसने 2001 में नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री बनने के बाद से ऐसी छलांगें मारी कि उसके प्रधानमंत्री बनने के बाद वह भारत के सभी बड़े पूंजीपति घरानों को पीछे छोड़ते हुए पहले भारत का, फिर एशिया का सबसे धनी व्यक्ति बना।

बाद में दुनिया का तीसरे चौथे नंबर का रईस हो गया। यह कैसे हुआ? इसके लिए कितने कानून बदले गए, कितने गैरकानूनी काम हुए, किस किस तरह की धांधलियां हुर्इं, देश की कौन कौन सी संपत्तियां खुर्दबुर्द की गर्इं? इसे लिखना शुरू करने में मिथकीय महालेखक गणेश जी के भी पसीने छूट जायेंगे। यह सब किसके संरक्षण में हुआ यह पूछते ही देश का हर नागरिक एक ही नाम लेगा। अडानी क्या है? किसकी वजह से है? यह बात पूरी दुनिया जानती थी; हिंडनबर्ग के एंडरसन ने तो बस उसके दस्तावेजी सबूत जमा किए हैं। इसलिए पहली बात तो यह है कि कोई घोटालेबाज, ठग कैसे स्वयं को भारत का प्रतीक और पर्याय बताने की दिलेरी दिखाने तक जा सकता है।

माना कि 1775 में ही अंग्रेजी भाषा के प्रख्यात कवि सैमुएल जॉनसन ने कह दिया था कि ‘राष्ट्रवाद सारे धूर्तों की आखिरी पनाहगाह होता है।’ मगर वे भी राजनीतिक धूर्तों की बात कह रहे थे। उनकी कल्पना में भी नहीं रहा होगा कि एक दिन सचमुच के ठग और चोर, भ्रष्ट और धोखेबाज भी उन्हीं की उक्ति के अनुरूप राष्ट्रवाद को अपने बचाव के लिए आजमाएंगे। दूसरी बात अडानी की इस सरासर बेहूदगी पर सत्ता और उसके भोंपू मीडिया में इतना सन्नाटा क्यों है? हिंदुस्तान की दुनिया भर में डबल बेइज्जती करवाने वाले इस आपत्तिजनक दावे पर किसी के भी मुंह से कोई बोल क्यों नहीं फूट रहा। अक्सर झक्क सफेद कुर्ते की नुमाइश करने वाले आडवाणी जी से लेकर अभी हाल तक बात बात पर बोलने वाले गड़करी तक किसके भय से खामोश हैं? और तो और खुद को सौ टका चरित्र निर्माण करने, राष्ट्र के सम्मान का खुदाई खिदमतगार बताने वाला ब्रह्माण्ड का सबसे बड़ा स्वयं-सेवी संगठन आरएसएस भारत देश के इस अपमान पर काहे सुट्ट मारे बैठा है?

हर्षद मेहता के चवन्नी भर के घोटाले के बाद ऐसे घपलों को रोकने के लिए और ताकतवर बनाई गई स्टॉक एक्सचेंज को नियमित करने वाली सेबी को लकवा सा क्यों मार गया है। परिधानों के रंग और खाना खाने के ढंग पर आकाश पाताल एक कर देने वाले भक्तों में अडानी के भारत का पर्याय बन जाने के दावे पर सुरसुरी तक क्यों नहीं हुई। उल्टे वे जिस जुनून से अपने ब्रह्मा के लिए अखाड़े में कूदते हैं उससे ज्यादा जोश और उन्माद के साथ अडानी के लिए पीले पड़े हैं। जो हिंडनबर्ग का है और शेयर मार्केट का ‘श’ तक नहीं जानते वे मार विश्लेषण किए जा रहे हैं।

यह है वह कायांतरण जो इस बीच, आमतौर से अर्थव्यवस्था के उदारीकरण और खासतौर से राजनीति के मोदीकरण के बाद से हुआ है। यह है, मोदी का असली न्यू इंडिया। पूंजीवाद के परिपक्व होने की बाकायदा घोषणा हो चुकी है। भेड़िया बड़ा हो गया है, उसके दांत और नाखून ठीकठाक उग आए हैं। अब उसे किसी नेता या पार्टी की आड़ नहीं चाहिए। 2014 में एक कंसोर्टियम बनाकर वह अपने पसंदीदा को फर्श से उठाकर अर्श पर लाने का सफल परीक्षण करके देख चुका है। उसे पता है कि अब सब कुछ खरीदा जा सकता है; इसलिए अब पूरा इंडिया उसका है, वही इंडिया है। हिंदुत्ववादी सांप्रदायिकता के साथ गठबंधन कर कुछ ज्यादा ही तेजी से यौवन पाकर महाकाय हुए अडाणी को गुमान हो गया है कि सारा इंडिया उसका है कि अब वही इंडिया है।


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