Thursday, August 14, 2025
- Advertisement -

मृत्यु के बाद


रोज की तरह मंदिर के सामने वाले पीपल के पेड़ की छांव में स्कूल से आते हुए कई बच्चे सुस्ताने से ज्यादा उस बूढ़े की कहानी सुनने के लिए उत्सुक आज भी उस बूढ़े के इर्द-गिर्द बैठ गए और बोले, ‘दादाजी दादा जी आज भूत की कहानी नहीं सुनाओगे?’ बूढ़े ने कहा, ‘नहीं आज मैं तुम्हें इंसानों की कहानी सुनाऊंगा।

वो देखो उस घर के ऊपर जो कौवे मंडरा रहे हैं, आज वहां उस लाचार बूढ़े का श्राद्ध मनाया जा रहा है, जो पैरों से चल नहीं सकता था। पिछले वर्ष उसकी खटिया जलने से मौत हुई थी।

उसकी खाट के पास उसकी बहू ने एक छोटी सी स्टूल पर भगवान की फोटो रखी और कुछ अगरबत्तियां सोते हुए बूढ़े के हाथ में माचिस और एक अगर बत्ती पकड़ा दी और उसके बिछौने के चारों कोनों में आग लगाकर दरवाजा बंद करके कर चली गई।

सुबह आग की लपटों को देख आसपास के लोगों ने बूढ़े को अधजला मृत पाया और बात फैल गई कि पूजा करते हुए बिस्तर में चिंगारी लग गई और ये हादसा हो गया। जीते जी तो इंसानों की कद्र नहीं करते और मरने के बाद देखो कैसा जश्न मना रहे हैं।

देखो, जो आज भोजन की थाली में हलुआ रखा है न उस हलुए के लिए मैं हमेशा तरसता-तरसता चला गया। बच्चों ने, जो अभी तक कौवों को ही देख रहे थे, यह सुनते ही अचानक जो पलट कर देखा, वो बूढ़ा दादा जी गायब था और बच्चे अनसुलझी पहेली को सुलझाने में लगे थे।

जो वाणी बूढ़ा सुना गया था, वह आज आम है। हम अपने बुजुर्गों की जीते जी तो सेवा नहीं करते, लेकिन मरने के बाद कई तरह के आडंबर जरूर करते हैं।


spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

करियर में न करें ये दस गलतियां

पढ़ाई खत्म करते ही नौकरी की टेंशन शुरू हो...

सीबीएसई और आईसीएसई बोर्डों की पढ़ाई का पैटर्न

दोनों बोर्डों का उद्देश्य छात्रों को अपने तरीके से...

अंधविश्वास

एक पर्वतीय प्रदेश का स्थान का राजा एक बार...

न्यू इंडिया में पुरानी चप्पलें

न्यू इंडिया अब सिर चढ़कर बोल रहा है। हर...

विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन जरूरी

उत्तराखंड मानवीय हस्तक्षेप और विकास की अंधी दौड़ के...
spot_imgspot_img