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खनिजों पर अमेरिका की साम्राज्यवादी सोच

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Samvad 48

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नजर अब दुनिया के खनिज संपदा संपन्न देशों की और है। ट्रंप का यह अब यह छिपा एजेंडा भी नहीं रहा क्योंकि यूक्रेन को सहायता के बदले उसकी खनिज संपदा के प्रबंधन का जिम्मा अमेरिका लेने के लिए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की पर लगातार दबाव डाल रहे हैं। यूक्रेन 500 करोड़ अमेरिकी डॉलर की खनिज संपदा को लेकर अमेरिका के साथ समझौता करने को भी लगभग तैयार हो गया पर पिछले दिनों जेलेंस्की की अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रंप और जेलेंस्की में जिस तरह की कड़वाहट भरी नोकझोंक हुई है, उसने इस डील को फिलहाल तो कमजोर कर दिया है। हालांकि यूक्रेन के जेलेंस्की ने यूरोप यात्रा के दौरान राष्ट्रहित में अमेरिका के साथ समझौता करने पर लगभग सहमति वाली बात कही है। उधर रूस नहीं चाहता कि इस तरह का कोई समझौता अमेरिका व रूस के बीच हो, यही कारण है कि रूस ने भी रूस की खनिज संपदा को लेकर अमेरिका से समझौते के लिए खुला निमंत्रण दे दिया है।

दरअसल अमेरिका स्वयं खनिज संपदा संपन्न देश है। इसके साथ ही खनिज संपदा के मामलें में देखा जाए तो अमेरिका दुनिया का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता देश है। इसके साथ ही अमेरिका खनिजों खासतौर से दुर्लभ खनिजों के मामलें में चीन का बर्चस्व चीन पर निर्भरता खत्म या यों कहे कम करना चाहता है। इसी कारण से दुनिया के खनिज संपदा संपन्न देशों पर ट्रंप की ललचाई नजर साफ दिखाई दे रही है। अभी पिछले दिनों ही ट्रम्प ने कनाडा को अमेरिका 51 वां राज्य कहकर संबोधित किया है। उधर कनाडा के राष्ट्रपति जस्टिन ट्रूडो साफ-साफ कह चुके हैं कि अमेरिका की नजर कनाड़ा की खनिज संपदा पर है और वह कनाड़ा को अमेरिका का 51वां राज्य बनने के लिए दबाव बनाए हुए हैं।

जस्टिन ट्रूडो इसको ट्रंप का दिवा स्वप्न ही बता रहे हैं। उधर अमेरिका ऐन केन प्रकारेण अफगानिस्तान में प्रवेश करना चाहता है, जहां की खनिज संपदा को वह हथिया सके। हालांकि तालिबानियों के रहते फिलहाल तो ऐसा संभव नहीं लग रहा है। यह दूसरी बात है कि अमेरिका-रूस के बीच बन रहे नए समीकरणों का भविष्य क्या रहता है? इस पर बहुत कुछ निर्भर करेगा। देखा जाए तो अर्वाचिन काल से ही खनिज संपदा का अपना महत्व रहा है। पर इलेक्ट्रोनिक युग में दुनिया के देशों के लिए खनिज संपदा का महत्व और मांग तेजी से बढ़ गई है। आज विकास की परिकल्पना को खनिजों की उपलब्धता के आधार पर ही साकार किया जा सकता है। नए युग की आवश्यकताओं की पूर्ति इन रेयर खनिजों से ही संभव हो पा रही है। एक समय था जब सोना, चांदी, तांबा आदि की और अधिक ध्यान केंद्रित होता था आज उसका स्थान दुर्लभतम खनिज लेते जा रहे हैं।

इसका कारण भी साफ है। ऊर्जा के क्षेत्र में लगभग 90 प्रतिशत, औद्योगिक क्षेत्र में करीब 80 प्रतिशत, कृषि क्षेत्र में 70 प्रतिषत तक कच्चे माल या सहायक के रूप में भूगर्भ की खनिज संपदा की भागीदारी है। आज दुनिया के 90 प्रतिशत रेयर अर्थ पर चीन की मोनोपोली है। दुनिया में खनिज संपदा के क्षेत्र में चीन शीर्ष पर है। चीन में 4.6 बिलियन टन प्रतिवर्ष, दूसरे नंबर में अमेरिका 2.2 बिलियन टन, तीसरे नंबर पर रूस 1.7 बिलियन टन और चौथे नंबर पर आस्ट्रेलिया 1.4 बिलियन टन सालाना खनिज संपदा का उत्पादन कर रहे हैं। चीन की संपन्नता का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि दूसरे नंबर के अमेरिका की तुलना में चीन में लगभग दो गुणा अधिक खनिज संपदा का उत्पादन हो रहा है। कनाडा और यूक्रेन के प्रति अमेरिकी नीति से यह साफ हो जाता है। अमेरिका यूक्रेन की रेयर अर्थ एलिमेंट संपदा के नियंत्रण के माध्यम से खनिजों के क्षेत्र में चीन को पीछे छोड़कर स्वयं का नियंत्रण बनाना चाहता है। कनाड़ा में भी सोना, चांदी, निकल, तांबा, यूरेनियम, पोटाश, कोबाल्ट, हीरा आदि के प्रचुर भंडार हैं तो यूक्रेन में भी रेयर खनिजों के भंडार धरती के गर्भ में समाये हुए हैं। यूक्रेन में ग्रेफाइट, लिथियम, आदि रेयर अर्थ के भंडार है। लिथियम के 19 मिलियन टन भंडार होने के साथ ही विश्व के प्रमुख पांच ग्रेफाइट उत्पादक देशों में यूक्रेन है। यूक्रेन में आरईई के 17 तत्वों के समूहों वाले खनिजों में से बहुतायत में भंडार हैं। अफगानिस्तान के साथ अमेरिका 2017 में समझौता कर चुका है पर तालिबान के प्रवेश के कारण अमेरिका का सपना अधूरा रह गया। 2021 में भी अफगानिस्तान से समझौते की पहल अमेरिका से कर चुका है। अभी भी अमेरिका की अफगानिस्तान की खनिज संपदा पर पूरी नजर है और अमेरिकी-रूस नजदीकी के प्रयास इस दिशा में आगे बढ़ेंगे।

यह साफ है कि आज रिचार्जेबल बैटरी, मोबाइल, कम्प्यूटर चिप, हवाई जहाज के उपकरणों में उपयोग होने वालों के साथ ही ऊर्जा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपयोग के खनिज भंडार हैं। दुनिया के देश आज कच्चे माल के रूप में चीन पर निर्भर हैं। चीन पर निर्भरता कम करने के साथ ही अमेरिका अपना वर्चस्व बनाने के लिए संभावित सभी देशों पर योजनाबद्ध तरीके से दबाव बना रहा है, ताकि बदलती औद्योगिक सिनेरियों में अमेरिका की तूती और अधिक तेजी से बज सके और अन्य देश अमेरिका पर निर्भर हो सकें। अमेरिका खनिज संपदा का आर्थिक सामाजिक और औद्योगिक विकास का प्रमुख आधार बनाना चाहता है और इस तरह से वह अपना वर्चस्व कायम करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से आगे बढ़ रहा है।

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