Wednesday, January 8, 2025
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अवसाद हठ से ही टूटेगी ये बेड़ी 


श्रीप्रकाश शर्माविश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हाल के सर्वे की मानें तो आज दुनिया में प्राय: 300 मिलियन से भी अधिक लोग अवसाद से ग्रसित हैं। मूल रूप से डिप्रेशन के चक्रव्यूह का जन्म उन बेशुमार बेकार चिंताओं से होता है, जो तनावों को जन्म देती है। लंबी अवधि तक तनावग्रस्त रहने वाला शख्स अवसाद में जीना प्रारंभ कर देता है जिसकी दुर्भाग्यपूर्ण परिणति खुदकुशी की घटनाओं में होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 15-29 वर्ष के लोगों में डिप्रेशन मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार भारत के 15  प्रतिशत युवा किसी-न-किसी मानसिक व्याधि से ग्रस्त हैं और जिनको प्राथमिकता के तौर पर मेडिकल हेल्प की जरूरत है।
प्राचीन रोम की एक कहानी काफी प्रेरणादायी है। एक बार  पड़ोसी राष्ट्र ने रोम पर आक्रमण कर दिया। इसमें वहां के शासक की बुरी तरह से पराजय हुई। सम्राट को बंदी बना कर कारावास में डाल दिया गया और शहर के धनाढ्य लोगों को हथकड़ियों में जकड़ दिया गया। इन बंदियों में एक लुहार भी था, जो बहुत ही धनी था। देश के नियमानुसार जब इन सभी बंदियों को घने जंगल में बर्बर जंगली जानवरों के सामने फेंक देने के लिए ले जाया जाने लगा तो सभी डर के मारे रोने लगे। केवल लुहार ही शांतचित्त बैठा हुआ था। यह देखकर सभी कोई हैरत में पड़ गए। उनमें से किसी ने लुहार से पूछा, ‘तुम्हें डर नहीं लगता है? आखिर तुम इतने धैर्य के साथ कैसे बैठे सकते हो? तुम्हें कुछ पता भी है कि कुछ क्षणों में हम सभी जंगल में वहशी जानवरों के द्वारा शिकार होने के लिए फेंक दिए जाएंगे?’
लुहार ने धैर्यपूर्वक जवाब दिया, ‘मैं जीवन भर हथकड़ियां ही बनाता रहा हूं, यही मेरा पेशा रहा है। आज तक दुनिया की ऐसी कोई हथकड़ी नहीं बनी, जिसे मैं नहीं तोड़ सकता। जब हमारे दुश्मन हम सब को जंगल में छोड़कर वापस लौट जाएंगे तो मैं सबसे पहले अपने हाथ की हथकड़ी काटूंगा और फिर तुम सबकी हथकड़ियां तोड़कर आजाद कर दूंगा।’ दुश्मन सैनिकों के वापस चले जाने के पश्चात लुहार पल भर की देर किए बिना अपने हाथ की हथकड़ी को तोड़ने की कोशिश करने लगा। लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद वह इस कार्य में सफल नहीं हो पाया। थोड़ी देर में ही मृत्यु को करीब जानकर घोर उदासी और हताशा का भाव उसके चेहरे पर साफ नजर आने लगा।
साथी बंदियों के द्वारा उसकी इस विचित्र मनोदशा के बारे में पूछे जाने पर लुहार ने घबराते हुए कहा, ‘इस हथकड़ी पर मेरा नाम लिखा है, अर्थात इसे खुद मैंने बनाया है। मैं दुनिया में किसी भी हथकड़ी को तोड़ सकता हूं किंतु खुद के द्वारा निर्मित हथकड़ी को मैं कदापि नहीं तोड़ सकता। आशय यह है कि अब इस कैद से मुक्ति का कोई भी रास्ता नहीं है। मैंने अपने जीवन में ऐसी कोई कमजोर हथकड़ी नहीं बनाई जो टूट जाए। जीवन में सपने में भी नहीं सोचा था कि जिन हथकड़ियों को मैं बना रहा हूं वही एक दिन मेरी मौत का सबब बन जाएगा। हथकड़ियों के रूप में मैंने खुद के लिए मौत का फंदा तैयार कर लिया।’
उपर्युक्त कहानी के कथ्य पर संजीदिगी से गौर करें तो एक अहम प्रश्न यह उठ खड़ा होता है कि क्या मानव जीवन में हथकड़ियों के रूप में विभिन्न समस्याएं और मुसीबतें खुद हमारे द्वारा ही निर्मित नहीं होती हैं? भय की बेड़ी, अज्ञानता की बेड़ी, अंधकार की बेड़ी, वासना की बेड़ी, लोभ, तृष्णा, अन्याय, हिंसा, पाप की बेड़ियां और न जाने प्रत्यक्ष-और अप्रत्यक्ष खुद के द्वारा निर्मित कितनी ही बेड़ियों से हम बुरी तरह से जकड़े हुए हैं और जिन्हें हम तोड़ने में ताउम्र असफल रहते हैं। अवसाद मॉडर्न लाइफ स्टाइल की एक ऐसी ही बेड़ी है, जिसे तोड़ने में असफल और विवश इंसान अंतत: खुद के जीवन को खत्म कर लेते हैं। इस तरह की तेजी से बढ़ती वारदातों पर आज गहरे आत्ममंथन की आवश्यकता है। इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी और विज्ञान के तेजी से विकास के परिणामस्वरूप हम जहां साल-दर-साल हैरतअंगेज उपलब्धियों और कालजयी प्रगति के इबारत लिख रहे हैं, वहीं दुनिया की एक बड़ी आबादी का अवसाद सरीखे मानसिक समस्याओं से ग्रसित होना हमारे लिए आत्ममीमांसा के कई प्रश्न छोड़ जाता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक हाल के सर्वे की मानें तो आज दुनिया में प्राय: 300 मिलियन से भी अधिक लोग अवसाद से ग्रसित हैं। मूल रूप से डिप्रेशन के चक्रव्यूह का जन्म उन बेशुमार बेकार चिंताओं से होता है, जो तनावों को जन्म देती है। लंबी अवधि तक तनावग्रस्त रहने वाला शख्स अवसाद में जीना प्रारंभ कर देता है जिसकी दुर्भाग्यपूर्ण परिणति खुदकुशी की घटनाओं में होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार 15-29 वर्ष के लोगों में डिप्रेशन मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य सर्वे के अनुसार भारत के 15  प्रतिशत युवा किसी-न-किसी मानसिक व्याधि से ग्रस्त हैं और जिनको प्राथमिकता के तौर पर मेडिकल हेल्प की जरूरत है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अन्य रिपोर्ट के मुताबिक भारत की आबादी का लगभग 5 प्रतिशत हिस्सा अवसाद के शिकार है। आत्महत्या देश में मृत्यु का दूसरा सबसे बड़ा कारण है जो विश्व की औसत आत्महत्या दर से काफी ऊंची है। विश्व में प्रत्येक एक लाख की आबादी में 11  लोग आत्महत्या करते हैं, जबकि यही दर देश के लिए प्राय: 21 लोग हैं। डिप्रेशन, चिंता, एकाकीपन और अन्य मानसिक व्याधियों से लगभग देश की आबादी का प्राय: 15 प्रतिशत हिस्सा ग्रसित है।
जीवन की आपाधापी और एक दूसरे से आगे निकलने की चाह में आज इंसान एक विचित्र तनावों के दौर से गुजर रहा है। प्रोफेशनल चैलेंज से लेकर पारिवारिक और वैयक्तिक जीवन की बेशुमार समस्याएं जो प्रारंभ में सामान्य जीवन की रूटीन जैसी दिखती हैं, समय के साथ बरगद के पेड़ सरीखे विशाल रूप धारण कर लेते हैं। जीवन के इस दहलीज पर हमें तनाव से खुद को महफूज रखने के लिए जीवन की समस्याओं की प्रकृति को बड़ी बारीकी से समझने की दरकार है। पहले तो यह आत्मसात करने की जरूरत है कि समस्याओं और जीवन का संबंध अटूट और अभिन्न है। जब तक जीवन की सांसें चलती हैं, तब तक समस्याओं से बच पाना मुमकिन नहीं है। ऐसी स्थिति में समस्याओं से घबराकर उनसे पलायन करने से स्थिति और बद से बदतर होती जाती है।
मानव जीवन में चिंताओं की भी विचित्र दुनिया होती है। हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि चिंता करने से न तो भविष्य की घटनाओं को मनचाहा मोड़ दिया जा सकता है और नहीं अफसोस करने से गुजरे हुए कल को सुधारा जा सकता है। प्रसिद्ध ब्रिटिश राजनीतिज्ञ और लेखक विंस्टन चर्चिल का चिंताओं के बारे में दर्शन काफी प्रेरणादायी है। उन्होंने कहा एक बार कहा था, ‘जब भी कभी मैं अपने जीवन की चिंताओं के बारे में पीछे लौट कर देखता हूं तो सहसा मुझे उस बूढ़े व्यक्ति की कहानी याद आ जाती है जिसने अपनी मृत्यु शैय्या पर कहा था कि वह अपने ताउम्र बेशुमार चिंताओं और भय से परेशान रहा, लेकिन उनमें अधिकांश चिंताएं कभी भी घटित नहीं हुर्इं।’ अर्थात चिंताओं की एक मिथ्या दुनिया होती है, जिसमें जीवन रूपी नाटक के सभी पात्र, दृश्य और घटनाएं हमारे दिमाग में ही गढ़ी जाती हैं और जिनका वास्तविक संसार से कोई ताल्लुक नहीं होता है।
प्रसिद्ध ब्रिटिश अभिनेता मैट लुकास ने एक बार कहा था, ‘यदि आप अवसाद से खुद को बचाना चाहते हैं तो खुद को व्यस्त रखें। मेरे लिए कुछ नहीं करना ही मेरा दुश्मन है।’ मन का खालीपन मन में अनंत जहरीले चिंताओं के बवंडर को जन्म देता है, जिससे मन अशांत होता है। मनोविश्लेषकों के अनुसार मन ही स्वास्थ्य का मूल होता है। मन में उठनेवाले विचार मन की दशा और दिशा को प्रभावित करते हैं। खुद को व्यस्त नहीं रखने पर मन में भटकाव होता है और यही हमारी बेकार की चिंताओं का कारण बन जाता है। कहते हैं कि जीवन में खुशी इस पर निर्भर नहीं करती कि आप कौन हैं या आपके पास क्या है। ये सिर्फ इस बात पर निर्भर करती है कि आप क्या सोचते हैं। लिहाजा मन को भटकने देने से रोकें और खुद को किसी-न-किसी रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रखें।
किंतु अवसाद सरीखे अति संवेदनशील और मानसिक समस्याओं का स्थायी और अचूक समाधान हमारे मन में ही बसा होता है। मानव जीवन में अवसाद की समस्या में लुहार के द्वारा निर्मित हथकड़ी और उसको तोड़ नहीं पाने की विवशता और नाकामी का अक्स किसी आईने की तरह साफ-साफ परिलक्षित होता है। अपने जीवन की इन बेड़ियों को ही हम अपनी नियति मान बैठते हैं और घोर हताशा और निराशा के साथ जीवन बिताना शुरू कर देते हैं। सच पूछिये तो मानव जीवन की सारी समस्याएं यहीं से शुरू होती है। हकीकत तो यही है कि हथकड़ी कभी भी इसके बनाने वाले से अधिक मजबूत नहीं हो सकती है। जिस चीज को हम खुद बनाते हैं उसे हम तोड़ भी सकते हैं, बिगाड़ भी सकते हैं और पुन: निर्मित भी कर सकते हैं।
लिहाजा अपने जीवन की कठिनाइयों और मुसीबतों की बेड़ियों को तोड़ने के लिए हमें हठी बनने की जरूरत है। बिना हठ किए हुए और बिना मन की दृढ़ता के जीवन से चिंताएं कभी नहीं जाएंगी, अवसाद की आंधी कभी खत्म नहीं होंगी, खुदकुशी की वारदातें कभी भी नहीं थमेंगी। जिस दिन आप यह ठान लेंगे कि आप बेकार की चिंताओं से मुक्त रहेंगे तो अवसाद का जहर ऐसी हथकड़ी साबित होगी जिसकी कड़ियां रफ्ता-रफ्ता कमजोर पड़ती जाएंगी और शीघ्र ही आप उसको आसानी से तोड़ने में कामयाब हो जाएंगे
श्रीप्रकाश शर्मा 

फीचर डेस्क Dainik Janwani

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