Monday, July 8, 2024
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अयोध्या की हालत अमेठी सरीखी!

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Samvad


05 5‘अयोध्या की हालत अब एकदम अमेठी जैसी हो गयी है।’ मोदी-योगी राज में ‘भगवान राम की अयोध्या’ को मिल रहे वीवीआईपी ट्रीटमेंट से अभिभूत होकर आप हवा में उड़ रहे हों और कोई यह एक वाक्य कहकर आपको सच्चाई की कठोर भूमि पर ला पटके तो चौंकिये नहीं। क्योंकि सच्चाई यही है कि जैसे कांगे्रसराज में मीडिया द्वारा वहां स्वर्ग उतार दिए जाने के प्रचार के चलते अमेठी देश-प्रदेश के दूसरे क्षेत्रों के सौतियाडाह की शिकार हुआ करती थी, भाजपा की डबल इंजन सरकारों के दौर में अयोध्या भी अब वैसे ही सौतियाडाह से पीड़ित है। हो भी क्यों नहीं, भव्य राममन्दिर के निर्माण के बरक्स सरकारी तंत्र ने एक के बाद एक हवाई ऐलान करके अयोध्या को विकास योजनाओं के ऐसे भारी भरकम तिलिस्म के हवाले कर रखा है, जो न सिर्फ महाभारतकाल जैसा जल में थल और थल में जल का भ्रम पैदा करता बल्कि कड़वी जमीनी हकीकतों का दम भी घोंटता रहता है। अयोध्या के लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार आरडी आनन्द के शब्दों में इसे यों समझ सकते हैं: ‘यहां विकास के नाम पर व्यापक विस्थापन, आस्थाओं के नाम पर इमोशनल अत्याचार और माननीयों के रोज-रोज के दौरों के नाम पर यातायात की बंदिशों के अलावा कुछ दिखता ही नहीं, यहां तक कि निर्बाध बिजली आपूर्ति भी सपना बनी हुई है।

लेकिन जहां भी जाता हूं, ईर्ष्या से भरे लोग कहते हैं कि अब तो अयोध्या में आप लोगों के मजे ही मजे हैं। योगी-मोदी दोनों आप लोगों का भरपूर खयाल रख रहे हैं।’ ऐसा कहने वाले आनंद अकेले नहीं हैं। दूसरे अयोध्यावासी भी जहां कहीं भी जाते हैं-प्रदेश के दूसरे जिलों में या देश दूसरे प्रदेशों में-उन्हें इस सौतियाडाह से गुजरना पड़ता हैं। लोगों को लगता है कि अयोध्यावासी उनके हिस्से के ‘रामराज्य’ की सौगातें भी हड़प किए जा रहे हैं।

जबकि अयोध्या में अवतरित रामराज्य का सच यह है कि प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री की वहां की यात्राओं के दौरान कोई विपक्षी नेता उन्हें जनसमस्याओं से जुड़ा ज्ञापन देने का एलान भर कर दे तो पुलिस उसे उसके घर से बाहर नहीं निकलने देती। गत भव्य दीपोत्सव में तो हद ही हो गई। स्थानीय पत्रकारों को प्रधानमंत्री के कार्यकम के कवरेज के लिए पास तक नहीं दिए गए।

मोदी व योगी की सरकारें और उनकी भारतीय जनता पार्टी वैसे भी अपने कार्यक्रमों व योजनाओं के प्रचार के लिए पत्रकारों पर निर्भर नहीं करतीं। क्योंकि उन्हें लगता है कि अपने तगडे मीडिया मैनेजमेंट की बदौलत वे यों ही अपनी योजनाओं व कार्यक्रमों को चर्चाओं के केंद्र में बनाए रखने में सक्षम है। लेकिन जमीनी हकीकतें अब उनके इस अति आत्मविश्वास की परत छेदकर बाहर आने लगी हैं।

गत गुरुवार को अयोध्या से लेकर जनकपुर यानी ‘माता सीता की ससुराल से मायके’ तक श्रीराम कर्मभूमि यात्रा के आगाज के वक्त भी बे बाहर आकर ही रहीं। इस यात्रा से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपने लखनऊ स्थित सरकारी आवास पर रथ में सुशोभित चरण पादुकाओं का पूजन किया, जिसके बाद अयोध्या के कई भाजपा समर्थक साधु-संत यात्रा को लेकर अयोध्या से बक्सर होते हुए जनकपुर गए।

लेकिन इसी के साथ यह सवाल भी हवा में गूंजने लगा कि चार साल पहले भारत नेपाल मैत्री के बहाने प्रधानमंत्री व मुख्यमंत्री द्वारा इंवेंट के तौर पर हरी झंडी दिखाकर शुरू की गई अयोध्या से जनकपुर व जनकपुर से अयोध्या की महत्वाकांक्षी बस सेवा का क्या हुआ? अयोध्या में योगी ने जिस बस को हरी झंडी दिखाई थी, वह एक बार जनकपुर गई तो वापस अयोध्या नहीं लौटी। इसी तरह प्रधानमंत्री ने जनकपुर में जिस बस को हरी झड़ी दिखाई थी, वह भी अयोध्या से लौटकर दोबारा जनकपुर नहीं गई।

समाजवादी जनता पार्टी (चन्द्रशेखर) के प्रदेश अध्यक्ष अशोक श्रीवास्तव यह कहकर इसकी खिल्ली उड़ाते हैं कि यह तो हद है कि एक ओर सरकारें अयोध्या से जनकपुर तक बस नहीं चलवा पा रहीं और दूसरी ओर अयोध्या में हवाई अड्डा बनवाकर अयोध्यावासियों को विमानयात्रा का सपना बेच रही हैं। वे यह भी पूछते हैं कि ऐसा कब तक चलता रह सकता है? इससे पहले ‘भव्य’ दीपोत्सव पर आनन-फानन में प्रधानमंत्री का अयोध्या आना तय हुआ तो प्रदेश के लोकनिर्माण विभाग ने उन्हें सब-कुछ ‘चंगा-सी’ दिखाने के लिए 46 लाख रुपये रंगाई-पुताई, रोड साइनेज, थर्मोप्लास्टिक के कामों और बेरीकेडिंग कराने पर फूंक दिए।

इसके साथ ही प्रचार शुरू कर दिया गया कि राम की पैड़ी को नया लुक दिया जा रहा है और उसकी सीढ़ियों को स्टेडियम सरीखा बनाया जाएगा। यह प्रचार अयोध्या आने वाले उन श्रद्धालुओं व पर्यटकों पर एक और इमोशनल अत्याचार था, जो इन सीढ़ियों पर बैठकर पैड़ी के सौन्दर्य का आनंद लेने की हसरत रखते हैं। इस अत्याचार का दूसरा पहलू यह है कि दीपोत्सव के दौरान भी प्रमुख कार्यक्रम स्थलों को जाने वाले मार्गों, सरयू के घाटों और कुछ मठ-मन्दिरों को छोड़कर अयोध्या की ज्यादातर मुहल्ले अंधेरे व गंदगी से अटे पड़े थे।

लेकिन बात इतनी-सी ही नहीं है। राममंदिर निर्माण के साथ ही भगवान राम की नगरी भूमि की लूट व घोटालों की नगरी में बदल गई है और उसमें भूमि की खरीद-बिक्री में घपलों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा। इन घोटालों में भाजपा के कई निर्वाचित जनप्रतिनिधियों व सरकारी अफसरों के नाम उछल चुके हैं, लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला है।
अब भाजपा नेता डॉ. रजनीश सिंह ने 12500 बीघे नजूल भूमि के घोटाले की पीएमओ (प्रधानमंत्री कार्यालय) में शिकायत की है और उनका दावा है कि उसने संज्ञान लेकर उसकी जांच मुख्यमंत्री सचिवालय के ज्वाइंट सेक्रेटरी भास्कर पांडे को सौंप दी है।

वे कहते हैं कि अयोध्या में कोई भी ऐसा ताल-तलैया नहीं बचा है, जिस पर भू-माफियाओं व अफसरों की मिलीभगत से बड़ी-बड़ी अवैध कॉलोनियां न डेवलप कर ली गई हों। बहरहाल, इस जांच का जो भी नतीजा निकले, लोग कहते हैं कि अयोध्या को दिखाया गया उसकी धरती पर स्वर्ग उतारने का सपना जिस तरह सब्जबाग में बदल रहा है, आगे भी वैसे ही बदलता रहा तो जब भी सत्तापरिवर्तन होगा, अयोध्या के बारे में भी वही बात कही जाएगी जो आजकल अमेठी के बारे में स्मृति ईरानी कहती रहती हैं: यह कि गांधी परिवार अमेठी से वोट तो लेता रहा, लेकिन उसके सपने पूरे करना जरूरी नहीं समझा।

फिलहाल, अयोध्या में भाजपा और उसकी सरकारें भी उसी ढर्रे पर चल पड़ी दिखती हैं-इमोशनल अत्याचार करके अयोध्यावासियों के वोट लेने और सपनों को सब्जबाग बना देने के ढर्रे पर। यों कुछ लोग यह भी कहते हैं कि कांगे्रसकाल में अमेठी वालों को प्रधानमंत्री या उनके कार्यालय तक जैसी पहुंच हासिल थी, अयोध्या वालों को हासिल नहीं है, क्योंकि प्रधानमंत्री की प्राथमिकता में वाराणसीवासी पहले आते हैं।


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