Saturday, September 21, 2024
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धान में जीवाणुज पत्ती अंगमारी रोग एवं रोकथाम

KHETIBADI


जीवाणुज पत्ती अंगमारी रोग या जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग जीवाणुज पर्ण झुलसा रोग लगभग पूरे विश्व के लिए एक परेशानी है। भारत मे मुख्यत: यह रोग धान विकसित प्रदेशों जैसे-पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, छत्तीशगढ़, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, कर्नाटका, तमिलनाडु मे फैली हुई है। इसके अलावे अन्य कई प्रदेशों मे भी यह रोग देखी गई है। भारत वर्ष मे यह रोग सबसे गंभीर समस्या बन गया है। यह रोग बिहार मे भी बड़ी तेजी से फैल रहा है।

जीवाणुज पत्ता अंगमारी के लक्षण
यह रोग जैन्थोमोनास ओराइजी पीवी ओराइजी नामक जीवाणु से होता है। मुख्य रूप से यह पत्तियों का रोग है। रोपाई के 1से 6 सप्ताह के बीच रोगग्रस्त पौधों की शुरू में गौभ सूखने लगती है तथा पत्तियां पीली होकर सूख जाती हैं। बाद में रोगी पौधे मर जाते हैं तथा इनके तनों को काटकर दबाने से पीला-सफेद चिपचिपा पदार्थ निकलता है यह रोग कुल दो अवस्थाओं मे होता है, पर्ण झुलसा अवस्था एवं क्रेसेक अवस्था।

सर्वप्रथम पत्तियों के ऊपरी सिरे पर हरे-पीले जलधारित धब्बों के रूप मे रोग उभरता है। पत्तियों पर पीली या पुआल के रंग कबी लहरदार धारियां एक या दोनों किनारों के सिरे से शुरू होकर नीचे की ओर बढ़ती हैं और पत्तियां सूख जाती हैं। ये धब्बें पत्तियों के किनारे के समानान्तर धारी के रूप मे बढ़ते हैं। धीरे-धीरे पूरी पत्ती पुआल के रंग मे बदल जाती है। ये धारियां शिराओं से धिरी रहती है, और पीली या नारंगी कत्थई रंग की हो जाती हैं। मोती की तरह छोटे-छोटे पीले से कहरूवा रंग के जीवाणु पदार्थ धारियों पर पाये जाते हैं, जिससे पत्तियां समय से पहले सूख जाती हैं। रोग की सबसे हानिकारक अवस्था म्लानि या क्रेसक है, जिससे पूरा पौधा सूख जाता है।

रोगी पत्तियों को काट कर शीशे के ग्लास मे डालने पर पानी दुधिया रंग का हो जाता है। जीवाणु झुलसा के लक्षण धान के पौधे मे दो अवस्थाओं मे दिखाई पड़ते है। म्लानी अवस्था (करेसेक) एवं पर्ण झुलसा (लीफ ब्लास्ट) जिसमें पर्ण झुलसा अधिक व्यापक है।

झुलसा अवस्था
पत्ती की सतह पर जलसिक्त क्षत बन जाते हैं, और इनकी शुरुआत पत्तियों के ऊपरी सिरों से होती है। बाद में ये क्षत हल्के पीले या पुआल के रंग के हो जाते हैं, और लहरदार किनारे सहित नीचे की ओर इनका प्रसार होता है। ये क्षत उत्तिक्षयी होकर बाद मे तेजी से सूख जाते हैं।

म्लानी या क्रेसेक अवस्था
रोग की यह अवस्था दौजियां बनना आरम्भ होने के दौरान नर्सरी मे दिखाई पड़ती है। पीतिमा एवं अचानक म्लानी इसके सामान्य लक्षण है। म्लानि वस्तुत: लक्षण की दूसरी अवस्था है।

ये लक्षण रोपाई के 3-4 सप्ताह के अन्दर प्रकट होने लगते हैं। इस अवस्था में ग्रसित पौधो की पत्तियां लंबाई में अंदर की ओर सिकुड़कर मुड़ जाती हैं। जिसके फलस्वरूप पूरी पत्ती मुरझा जाती है, जो बाद मे सूख कर मर जाती है। कभी-कभी क्षतस्थल पत्तियों के बीच या मध्य शिरा के साथ-साथ पाए जाते हैं। ग्रसित भाग से जीवाणु युक्त श्राव बूंदों के रूप मे
निकलता है। ये श्राव सूखकर कठोर हो जाते हैं और हल्के पीले से नारंगी रंग की कणिकाएं अथवा पपड़ी के रूप मे दिखाई देता है। आक्रांत भाग से जीवाणु का रिसाव होता है। यदि खेत में पानी का जमाव हो तो धान की फसल से दूर से बदबू आती है। पर्णच्छद भी संक्रमित होता है, जिस पर लक्षण पत्तियों के समान ही होते हैं। रोग के उग्र अवस्था मे ग्रस्त पौधे पूर्ण रूप से मर जाते हैं।

रोग नियंत्रण
-एक ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन या 5 ग्राम एग्रीमाइसीन 100 को 45 लीटर पानी घोल कर बीज को बोने से पहले 12 घंटे तक डुबो लें।
-बुआई से पूर्व 0.05 प्रतिशत सेरेसान एवं 0.025 प्रतिशत स्ट्रेप्टोसाईक्लिन के घोल से उपचारित कर लगावें।
-बीजों को स्थूडोमोनास फ्लोरेसेन्स 10 ग्राम प्रति किलो ग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।
-खड़ी फसल मे रोग दिखने पर ब्लाइटाक्स-50 की 2.5 किलोग्राम एवं स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की 50 ग्राम दवा 80-100 लीटर पानी मे मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
-खड़ी फसल मे एग्रीमाइसीन 100 का 75 ग्राम और कॉपर आक्सीक्लोराइड (ब्लाइटाक्स) का 500 ग्राम 500 लीटर पानी मे घोलकार प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।
-संतुलित उर्वरकों का प्रयोग करें, उर्वरकों में साडावीर का प्रयोग अवश्य करें, लक्षण प्रकट होने पर नेत्रजन युक्त खाद का छिड़काव नहीं करना चाहिए।
-धान रोपने के समय पौधे के बीज की दूरी 10-15 सेमी अवश्य रखें। खेत से समय-समय पर पानी निकालते रहें तथा नाइट्रोजन का प्रयोग ज्यादा न करें। आक्रांत खेतों का पानी एक से दूसरे खेत मे न जाने दें।
-प्रमाणित बीज का ही प्रयोग करें।
-बोने से पहले बीज का उपचार करें।
-अगेती व घिनकी रोपाई न करें तथा नत्रजन खाद का अधिक प्रयोग नकरें। खाद का प्रयोग संतुलित मात्रा में करें।
-रोग रोधी किस्मों जैसे- आई. आर.-20, मंसूरी, प्रसाद, रामकृष्णा, रत्ना, साकेत-4, राजश्री और सत्यम आदि का चयन करें।


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