- नदी किनारों पर दो से तीन किलोमीटर तक की दूरी का भूजल भी हो चुका प्रदूषित, ग्रामीण प्रदूषित पानी पीने को मजबूर
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: काली नदी में बढ़ रहे अत्यधिक प्रदूषित पानी के कारण नदी के किनारों पर दो से तीन किलोमीटर तक की दूरी का भूजल भी प्रदूषित हो चुका है। इस कारण से नदी किनारे बसे गांव व करने इसी प्रदूषित पानी को पीने के लिए मजबूर है। जिसके कारण उनको कैंसर समेत अनेक गंभीर बीमारियों ने अपनी चपेट में ले रखा है।
नदी किनारे के गांवों में कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी से हर साल दर्जनों मौत हो जाना आम बात हो गई है। इसके अलावा दिल, दिमाग, पेट व आंत संबंधी रोग भी बढ़ते जा रहे हैं। स्त्रियों से लेकर पशुओं तक में बांझपन बढ़ रहा है। वहीं, छोटे बच्चों व गर्भ में पल रहे शिशुओं के मानसिक विकास पर असर पड़ रहा है।
जनवाणी ने काली नदी के हालात का जायजा लेने के लिए किनारे स्थित सैनी गांव निवासी ओमपाल सिंह, सुरेन्द्र सिंह, अरुण मलिक, अरुण देव, ग्राम प्रधान पति जगवीर सिंह आदि से बातचीत की। जिसमें यह तथ्य निकलकर सामने आया कि मेरठ के कई दर्जन गांवों में काली नदी के प्रदूषित पानी के कारण बीमारी के चपेट में हैं। कई गांवों में आज भी पशुओं और मनुष्यों पर मौत का साया मंडरा रहा है।
हालात ये हो गए हैं कि मेरठ जिले के देवा, पनवाड़ी, इकलौता, भराला, समौली, जलालपुर, उलखपुर, खेड़ी और सैनी समेत दर्जनों गांव का भूजल प्रदूषित हो गया है। ऐसे में यहां के ग्रामीण कैंसर, पीलिया, फंगस, चर्म रोग और अस्थमा जैसी बीमारी की का प्रकोप बढ़ रहा है। सैनी गांव के लोगों का कहना है कि पिछले कुछ सालों में गांव में कैंसर, टीबी, पीलिया जैसी बीमारी से कई दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है।
आज तक इस संबंध में स्वास्थ्य विभाग की ओर से प्रभावित गांवों में कैंप लगाकर बीमार लोगों का उपचार करने या पानी की गुणवत्ता की जांच कराने का कोई प्रयास नहीं किया गया है। ग्रामीण कहते हैं कि उनके पूर्वजों से लेकर आज तक काली नदी के हालात सुधारे जाने की मांग को लेकर संघर्ष किया जा रहा है, लेकिन शासन-प्रशासन और राजनीति के स्तर से इस दिशा में अभी तक प्रभावशाली कदम नहीं उठाए जा सके हैं। हालात यह बन चुके हैं कि गांव में 250 फीट की गहराई तक मिलने वाले पानी को कुछ देर रखते ही वह पीला पड़ने लगता है।
गांव के लोगों के समक्ष पेयजल तक का संकट बना हुआ है। नीर फाउंडेशन ने प्रयास करके गांव की दलित बस्ती में एक आरओ लगवाया है, जिससे करीब 100 परिवारों को पेयजल मिलने लगा है। वहीं संपन्न लोगों ने अपने घरों में 500 फुट तक की गहराई में सबमर्सिबल लगवा रखे हैं। लोगों का कहना है कि जब तक काली नदी में साफ पानी नहीं छोड़ा जाएगा, उसका प्रदूषण कम नहीं होगा।
जलीय जीवों के जीवित रहने लायक भी नहीं पानी
यहां एक तथ्य यह भी उल्लेखनीय है कि नदी में पानी भले ही न हो, लेकिन इसमें अनगिनत मिलों और फैक्ट्रियों का प्रदूषित पानी कई दशक से गिराया जा रहा है। जिसके परिणाम स्वरूप इसके किनारे बसे गांवों का पानी भी प्रदूषित हो चुका है। नीर फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार परीक्षण के लिए भेजे गए कुल 16 नमूनों के परीक्षण में चौंकाने वाले परिणाम निकले हैं। परीक्षण के अनुसार काली नदी में कहीं पर भी जलीय जीवों के जीवित रहने लायक भी पानी नहीं है।
नदी के पानी में भारी धातुओं के साथ प्रतिबंधित कीटनाशकों के अंश भी मिले हैं। यही नहीं, नदी किनारे के भूजल (हैंडपम्पों के नमूनों) में भी भारी धातुओं व कीटनाशकों की मात्रा पाई गई है। संस्था की टीम ने आठ नमूने नदी जल व आठ नमूने नदी किनारे के भूजल के लिए इन सभी नमूनों में आयरन की मात्रा बहुत अधिक पाई गई है, और अधिकतर नमूनों में लैट की मौजूदगी भी मिली है।
गंगनहर से पानी मिलने पर टिकीं निगाहें
अब नदी उद्गम पर खतौली नहर से 106 क्यूसेक पानी लाने की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जा रहा है। साथ ही पुनर्जीवित हो चुके नदी बहाव क्षेत्र में चेकडैम बनाने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। नदी उद्गम को व्यवस्थित करने की योजना के तहत नमामि गंगा की एक तकनीकी टीम का भी उद्गम स्थल पर दौरा कराया गया है। इस टीम की ओर से नदी उद्गम के लिए एक विस्तृत कार्य योजना तैयार की जा रही है।
नदी उद्गम से बिजली के खंभों को भी स्थानांतरित कराया जा रहा है, नदी का कार्य अनवरत जारी है। नदी में गंगनहर से पानी छोड़े जाने की योजना को सिंचाई विभाग के माध्यम से स्वीकृति दिलाने के प्रयास प्रशासन के स्तर से किए जा रहे हैं। उम्मीद है आने वाले एक-दो साल में इस क्षेत्र की फसलों को काली नदी के पानी से सिंचित किया जा सकेगा।
-रमनकांत (रिवरमैन), संस्थापक भारतीय नदी परिषद