सिख धर्म के लोग गुरुवाणी सुनते हैं। इस दिन खीर ,शरबत बनाया जाता है और गुरुद्वारों में लंगर लगाए जाते हैं। रात के समय घर के बाहर लोग लकड़ियां जलाते हैं और गोल घेरा बनाकर गिद्दा और भंगड़ा करते हैं। वैशाखी के दिन सुबह 4 बजे गुरु ग्रन्थ साहिब को समारोह से पहले कक्ष से बाहर लाया जाता है। जिसके बाद दूध और जल से स्नान कराकर गुरुग्रंथ साहिब को तख़्त पर रखा जाता है।
हर साल बैसाख के महीने में मेष संक्रांति पर बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन को सिख समुदाय के लोग नववर्ष के रूप में मनाते हैं। यह त्यौहार खासतौर पर पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाया जाता है। इसे अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नाम से जानते हैं। असम में बिहू, बंगाल में नबा वर्षा, केरल में पूरम विशु कहते हैं। आइए जानते हैं इस साल कब मनाया जाएगा बैसाखी का पर्व और क्या है इसे मनाने का महत्व।
सूर्य के मेष राशि में प्रवेश करने को मेष संक्रांति के नाम से जानते हैं। इस बार सूर्य का मेष राशि में गोचर 14 अप्रैल को हो रहा है। ऐसे में इस बार बैसाखी का त्यौहार 14 अप्रैल को मनाया जाएगा। हिंदू सौर कैलेंडर के अनुसार बैसाखी का पर्व सिख नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। इसके अलावा बैसाखी के दिन महाराजा रणजीत सिंह को सिख साम्राज्य का प्रभार सौंपा गया था। जिन्होंने एकीकृत राज्य की स्थापना की थी। तब से इसे बैसाखी के तौर पर मनाया जाता है।
बैसाखी का महत्व
इस दिन किसान पूरे साल हुए भरपुर फसल के लिए ईश्वर को आभार व्यक्त करते हैं और उन्हें अन्न धन्न अर्पित कर पूजा करते हैं। बैसाखी के दिन फसलों की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन लोग पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर बैसाखी मनाते हैं।
एक बार की बात है जब 1699 में सिखों के अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने सभी सिखों को आमंत्रित किया था। सभी लोग गुरु की आज्ञा पाकर आनंदपुर साहिब मैदान में इक्कठा हुए। गुरु गोविन्द जी के मन में अपने शिष्यों की परीक्षा लेने के विचार आया उन्होंने अपनी तलवार को कमान से निकलते हुए कहा -‘मुझे सर चाहिए’। यह सुनकर सभी शिष्य असमंजस में पड़ गए। तभी भीड़ से लाहौर के रहने वाले दयाराम ने अपना सर गुरु की शरण में हाजिर किया। जिसके बाद गुरु गोविन्द सिंह जी उस शिष्य को अपने साथ अंदर ले गए और उसी वक्त अंदर से खून की धारा बहने लगी। बाहर खड़े सभी लोग समझ गए की दयाराम का सर काट लिया गया है।
गुरु गोविन्द सिंह जी इसके बाद फिर से बाहर आये और फिर कहने-‘मुझे सर चाहिए’। गुरु के इतना कहते ही सहारनपुर के धर्मदास ने अपना सर गुरु के शरण में अर्पित करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाया। धर्मदास को भी गुरु द्वारा अंदर ले जाया गया और फिर से खून की धारा अंदर से बहती हुयी दिखाई दी। इसी प्रकार गुरु को अपना सर दान करने के लिए और 3 लोग हिम्मत राय ,मोहक चंद ,साहिब चंद आगे आए और फिर से खून की धारा अंदर से बहने लगी। बाहर खड़े लोगों को लगा की पांचों की बलि दी जा चुकी है। लेकिन इतने में ही गुरु गोविन्द सिंह उन सभी 5 लोगों को अपने साथ बाहर लेकर आते हैं। सभी आश्चर्य में पड़ जाते हैं।
गुरु गोविन्द ने सभी को बताया की इनकी जगह अंदर पशु की बलि दी गयी है। मैं इन लोगों की परीक्षा ले रहा था और यह सभी उस परीक्षा में सफल हो चुके हैं। गुरु गोविन्द सिंह ने इस प्रकार इन 5 लोगों को अपने पांच प्यादों के रूप में परिचित कराया और इन पांचों को अमृत का रस पान कराया और कहा आज से तुम लोग सिंह कहलाओगे। और उन्हें बाल ,दाढ़ी बड़े रखने के निर्देश दिए और उन्हें पंच ककार धारण करने का भी निर्देश दिया। इसी घटना के बाद से गुरु गोविन्द राय,गुरु गोविन्द सिंह कहलाये और सिखों के नाम के आगे भी सिंह शब्द जुड़ गया। और इसी दिन की याद में सिख समुदाय द्वारा बैसाखी का त्यौहार मनाया जाता है।
सिख धर्म के लोग गुरुवाणी सुनते हैं। इस दिन खीर ,शरबत बनाया जाता है और गुरुद्वारों में लंगर लगाए जाते हैं।
रात के समय घर के बाहर लोग लकड़ियां जलाते हैं और गोल घेरा बनाकर गिद्दा और भंगड़ा करते हैं। वैशाखी के दिन सुबह 4 बजे गुरु ग्रन्थ साहिब को समारोह से पहले कक्ष से बाहर लाया जाता है। जिसके बाद दूध और जल से स्नान कराकर गुरुग्रंथ साहिब को तख़्त पर रखा जाता है।
इसके बाद पंच प्यारे पंचबानी गाते हैं। अरदास के बाद प्रसाद का वितरित किया जाता है। प्रसाद लेने के बाद सिख लोग ‘लंगर’ में जाते हैं। और अपनी इच्छा से कारसेवा करते हैं। वैसाखी के शुभ अवसर पर गुरु गोविन्द सिंह और उनके पंच प्यारों को याद किया जाता है और उनके सम्मान में कीर्तन किए जाते हैं।
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हिंदुओं में वैशाखी के दिन नदी में स्नान करना शुभ माना जाता है।
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वैशाखी फसल कटाई का त्यौहार है। इस दिन किसान अच्छी फसल के लिए ईश्वर को धन्यवाद देते हैं।
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मान्यता के अनुसार इसी दिन सिखों के 10वें और अंतिम गुरु गुरुगोविंद सिंह ने साल 1699 में ही केसगढ़ साहिब आनंदपुर साहेब में खालसा पंथ की स्थापना की थी।
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खालसा पंथ की स्थापना का उद्देश्य लोगों को उस समय के मुगल शासक के अत्याचारों से मुक्त कर उनके जीवन को सफल बनाना था।
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सिखों के नए साल का पहला दिन होता है। वैसाखी के दिन ही सूर्य मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए भी इस दिन को बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है।
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फसल के पकने पर इस पर्व को असम में भी मनाया जाता है जिसे वहां पर बिहू कहा जाता है। वही बंगाल राज्य में इस पर्व को वैशाख कहा जाता है।
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वैशाखी को मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है क्यूंकि इसी दिन सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है इसी कारण बैसाखी को मेष संक्रांति भी कहा जाता है।
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हिंदू धर्म के अनुसार बैसाखी के दिन ही माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था इसी कारण इस दिन नदी में स्नान करने की परम्परा रही है।
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वैशाखी के दिन गेहूं ,तिल,गन्ने ,तिलहन आदि फसल की कटाई की जाती है।
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