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नमस्कार, दैनिक जनवाणी डॉट कॉम वेबसाइट पर आपका हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन है। आज देशभर में बैसाखी का पर्व मनाया जा रहा है। भारत में दिवाली, होली और ईद जितने उत्साह के साथ मनाई जाती है उतने ही उत्साह के साथ बैसाखी का त्यौहार भी मनाया जाता है।
बैसाखी का त्यौहार सिख धर्म के लोगों के लिए दिवाली की तरह ही बड़ा पर्व है। बैसाखी के दिन सूर्य देव मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे मेष संक्रांति भी कहा जाता है। इस पर्व से कई मान्यताएं और परंपराएं जुड़ी हुई हैं। सिख समुदाय के लोग इस दिन को नव वर्ष के रूप में मनाते हैं।
बैसाखी का महत्व
बैसाखी का त्यौहार खासतौर पर किसान अपने फसल पकने की खुशी में मनाते हैं। बैसाखी के बाद ही फसल की कटाई शुरू की जाती है और अच्छी फसल की कामना की जाती है। बैसाखी का पर्व घर में खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक माना जाता हैं। ये दिन होता है जब किसान फसलों की कटाई करते हैं।
बैसाखी मुख्य रूप से किसानों का त्योहार है। इस दिन देश कई हिस्सों में फसलों की कटाई शुरु होती है। इस पर्व को मनाने के पीछे की एक वजह ये भी है कि 13 अप्रैल 1699 को सिख पंथ के 10वें गुरु श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी।
हिंदू भी इस दिन को काफी महत्वपूर्ण मानते हैं। मान्यता है कि हजारों सालों पहले गंगा इसी दिन धरती पर अवतरित हुईं थीं। इसी कारण बैसाखी पर स्नान-दान का विशेष महत्व माना गया है। बैसाखी के दिन लोग नाचते-गाते हैं, पकी फसल काटी जाती है।
इस पर्व को अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। फसल पकने के इस पर्व को असम में भी मनाया जाता है। वहां इसे बिहू कहा जाता है। बंगाल में भी इसे पोइला बैसाख कहते हैं। केरल में ये पर्व विशु कहलाता है। हिंदू धर्म में बैसाखी का खास महत्व है और इस दिन सूर्य देव मीन राशि से निकलर मेष राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए इसे मेष संक्रांति के नाम से भी जाना जाता है।
इस दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन लोग गुरु वाणी सुनते हैं। श्रद्धालुओं के लिए खीर, शरबत आदि बनाई जाती है। बैसाखी के दिन किसान अच्छी फसल के लिए ईश्वर का धन्यवाद करते हैं और अपनी समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
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