संत जुनैद को एक विचित्र शौक था। वह जिंदगी के अलग-अलग अनुभव हासिल करने के लिए भेष बदलकर घूमा करते थे। एक बार वह भिखारी बनकर एक नाई की दुकान पर पहुंच गए। वह नाई उस समय एक रईस ग्राहक की दाढ़ी बना रहा था। उसने जब एक भिखारी को दुकान पर आते देखा तो, तुरंत उस रईस की दाढ़ी बनाना छोड़ जुनैद की दाढ़ी बनाने का निर्णय किया।
उसने जुनैद से पैसे तो नहीं ही लिए, बल्कि उन्हें अपनी क्षमता के मुताबिक भिक्षा भी दी। जुनैद नाई के व्यवहार से बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने निश्चय किया कि वह उस दिन जो कुछ भी भीख के रूप में हासिल करेंगे, उसे उस नाई को दे देंगे। लेकिन नाई वैसा नहीं था, जैसा जुनैद ने सोच लिया था। यह पता उस समय चला, जब वह अपना सोचा पूरा करने लिए दोबारा नाई की दुकान पर पहुंचे। हुआ यह कि जुनैद को उसी दिन सोने के सिक्कों से भरी एक थैली मिली।
उस दिन एक अमीर तीर्थ यात्री ने जुनैद को सोने के सिक्कों से भरी एक थैली भिक्षा में दी। जुनैद खुशी-खुशी थैली लेकर नाई की दुकान पर पहुंचे और उसे वह देने लगे। एक भिखारी के हाथ में सोने से भरी थैली देखकर नाई को आश्चर्य हुआ। वह यह भी नहीं समझ पा रहा था कि एक भिखारी उसे यह क्यों देना चाहता है। नाई ने जुनैद से थैली देने का कारण पूछा।
जुनैद को जब यह पता चला कि जुनैद उसे वह थैली क्यों दे रहे हैं, तो वह नाराज होकर बोला, ‘आखिर तुम किस तरह के फकीर हो? सारा कुछ तुम्हारा फकीरों जैसा है, पर मन से तुम व्यापारी हो। तुम मुझे मेरे प्रेम के बदले में यह पुरस्कार दे रहे हो। प्रेम के बदले दौलत नहीं, प्रेम ही दिया जाता है। प्रेम का बदल कोई भी वस्तु नहीं हो सकती। ऐसी वस्तु उपहार नहीं रिश्वत कहलाती है।’ जुनैद भौंचक रह गए। उस नाई ने उन्हें उस दिन एक बड़ी नसीहत दी थी।