- पूजन के लिए मिलेगा एक घंटे का समय
- भद्रा सूर्य की पुत्री और शनि की है बहन
- भद्रा को माना गया है क्रोधी स्वभाव का
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: इस वर्ष होलिका दहन के लिए एक घंटा 10 मिनट का ही समय रहेगा। इस दिन दोपहर 1 बजकर 20 मिनट से रात्रि एक बजे तक भद्रा योग रहेगा। भद्रा को अशुभ माना गया है। ज्योतिषाचार्य के अनुसार रात 9 बजकर 4 मिनट से 10 बजकर 14 मिनट तक भद्रा का पुच्छकाल रहेगा तब होलिका दहन किया जा सकता है।
ज्योतिषाचार्य राहुल अग्रवाल के अनुसार 13 मार्च को सुबह 10 बजकर 20 मिनट के बाद होली का चीर बंधन होगा। इसके बाद सूर्यास्त तक मुहूर्त रहेगा। आमलकी एकादशी व्रत 14 मार्च को है। वहीं, 17 मार्च को रात पुष्छकाल में होलिका दहन करना श्रेष्ठ है। कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में चंद्रमा के गोचर पर भद्रा विष्टीकरण का योग बनता है। इस अवधि में भद्रा पृथ्वी लोक में रहती है।
सूर्य पुत्री भद्रा क्रोधी स्वभाव की
मान्यता अनुसार भद्रा सूर्यदेव की पुत्री और शनिदेव की बहन है। भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी जाती हैं। उनके स्वभाव को नियंत्रित करने के लिए भगवान ब्रह्म ने उन्हें कालगणना में एक प्रमुख अंग विष्टीकरण में स्थान दिया। पंचांग के पांच प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं। करण की संख्या 11 होती है। 11 करणों में सातवें करण विष्टि का नाम भद्रा है। कहा जाता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती हैं।
भद्रा लगने पर नहीं होता शुभ कार्य
भद्रा की प्रवृत्ति विध्वंस करने की मानी जाती है। इस लिए भद्रा लगने पर कोई शुभ कार्य नहीं किए जाते। पुराणों के अनुसार भद्रा ने अपने ही विवाह मंडप में उत्पात मचा दिया था। इस कारण अगर शुभ कार्यों का आयोजन भद्रा काल में किया जाता हैए तो परिणाम अच्छे नहीं होते हैं।
कब और कहां होती है भद्रा?
मान्यता है कि भद्रा स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल तीनों लोक के लोगों को सुख और दुख देती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होते हैं तब भद्रा स्वर्ग में रहती है। चंद्रमा जब कुंभ, मीन, कर्क और सिंह राशि में होता है तो भद्रा पृथ्वी में निवास करती है। वहीं चंद्रमा जब कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तब भद्रा पाताल में होती है।