हाईकोर्ट के आदेश पर भगत सिंह मार्केट में नगर निगम अधिकारियों ने अतिक्रमण हटाया था। कुछ दिन तो वहां अतिक्रमण से लोगों ने राहत ली, मगर वर्तमान में फिर से अतिक्रमण का जाल फैल गया। आखिर इसके लिए जिम्मेदार कौन हैं? कौन करा रहा हैं अतिक्रमण, यह बड़ा सवाल है। सड़क खुली-खुली हो, लोगों को जाम से जूझना नहीं पड़े। इस दिशा में प्रयास सामूहिक क्यों नहीं हो रहे हैं? निगम अफसरो को ही इसके लिए जिम्मेदार ठहरा दिया जाता हैं, मगर व्यापारी क्यों विरोध नहीं करते हैं सड़क पर अतिक्रमण का? दुकानों के सामने लोग ठेले लगाकर खड़े हो जाते हैं। उससे आगे बाइक पार्क कर दी जाती हैं। इस तरह से अतिक्रमण से सड़क संकरी हो जाती हैं। लोगों को आवागमन में दिक्कत होती हैं, मगर इसके स्थाई समाधान की दिशा में काम क्यों नहीं हो रहा हैं?
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: हापुड़ स्टैंड से सटा है भगत सिंह मार्केट। बहुत ही भीड़-भाड़ वाला यह इलाका है। पैदल निकलना भी यहां पर दुश्वारियों भरा है। अतिक्रमण की समस्या का निस्तारण जब नगर निगम अफसरों ने नहीं किया तो तब लोग हाईकोर्ट पहुंच गए थे। हाईकोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए डीएम को अतिक्रमण हटाने के आदेश दिये थे। इसके बाद नगर निगम अफसरों ने फोर्स लेकर अतिक्रमण दो दिन तक हटवाया।
अतिक्रमण हटने के बाद वहीं भगत सिंह मार्केट खुला-खुला दिखने लगा था, जहां से पैदल निकलना भी मुश्किल था। दो सप्ताह बीते हैं, मगर फिर से पुराने ढर्रे पर भगत सिंह मार्केट दिखाई देने लगा है। आखिर इस सबके लिए क्या सरकारी सिस्टम जिम्मेदार हैं या फिर व्यापारी? जब एक बार अतिक्रमण हटा दिया गया तो फिर व्यापारियों ने अपनी दुकानों के सामने अतिक्रमण होने क्यों दिया?
इससे साफ है कि व्यापारी अतिक्रमण को शह दे रहे हैं। यदि व्यापारी सख्त हो जाए तो अतिक्रमण होने का सवाल ही नहीं उठता है। साथ ही संबंधित थानेदार की भी इसके लिए जवाबदेही बनती है। थानेदार ने संबंधित दुकानदार व अतिक्रमण करने वाले व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई क्यों नहीं की? यदि कार्रवाई होती तो अतिक्रमण फिर से दिखाई नहीं देता।
गढ़ रोड: अतिक्रमण भी और दबंगई भी
हापुड़ स्टैंड से जैसे ही गढ़ रोड की तरफ बढ़ते वहां पर नगर निगम ने अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था। अक्रिमण हटा भी था, मगर वर्तमान में हालात कैसे हैं, यह जानने के लिए जनवाणी टीम ने दौरा किया, जहां पर अतिक्रमण फिर से कर लिया गया है। दुकान हैं, लेकिन उनके सामने अतिक्रमण दुकानदार ने ही किया हैं। उससे आगे ठेले वाले खड़े हो जाते हैं। कुछ वैसे ही गढ़ रोड पर देखने को मिला।
अतिक्रमण हटाया गया था, यह व्यापारी से पूछ लिया तो व्यापारी ने बोल दिया कि सड़क सबकी हैं। थोड़ी जगह पर सामान रख लिया तो क्या गुनाह कर दिया? इस तरह से तो व्यापारी अपनी प्रतिक्रियां देता है। व्यापारियों ने फिर से गढ़ रोड पर अपना कब्जा जमा लिया हैं। इसके लिए किसकी जवाबदेही हैं। इन व्यापारियों पर कौन लगाम लगायेगा? पुलिस भी इसको लेकर बैकफुट पर नजर आती है।
क्योंकि व्यापारियों के खिलाफ कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं तो नगर निगम अधिकारियों में है और नहीं पुलिस में। अतिक्रमण हो रहा है तो होने दे, यहां तो कोई सुनने वाला नहीं है। किसी को परेशानी होती है तो होने दे, इन पर फर्क पड़ने वाला नहीं हैं।
हापुड़ रोड: रसूखदारों पर कौन लगाए लगाम ?
हापुड़ रोड पर भी अतिक्रमण हटाओ अभियान नगर निगम चला चुकी हैं। बड़ी तादाद में अतिक्रमण हटाया भी गया था, लेकिन अब फिर से रसूखदारों ने अपनी दुकानों के आगे अतिक्रमण कर लिया है। इन रसूखदारों पर कौन लगाम लगायेगा? इतनी हिम्मत कौन जुटायेगा कि अतिक्रमण को तुड़वाये और दोषियों पर कार्रवाई करें। पहले तो नगर निगम के अधिकारी ही अतिक्रमण हटाने के नाम पर भेदभाव करते हैं, फिर दूसरे रसूखदारों पर कोई हाथ डालने की हिम्मत नहीं जुटा पाता है।
पुलिस भी इनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करती। हापुड़ रोड की चौड़ाई काफी हैं, मगर मौके पर देखा जाए तो अतिक्रमण से लोगों को परेशानी हो रही है। जाम की समस्या हर समय बनी रहती है। इस जाम से तभी मुक्ति मिल सकती है, जब अतिक्रमण पूरी तरह से हटा जाएगा। हापुड़ रोड के लोगों ने नगरायुक्त मनीष बंसल को लिखित में शिकायत दी है कि कुछ रसूखदार लोगों के अवैध अतिक्रमण पर महरबानी कर दी गई है। जबकि गरीबों के अतिक्रमण को ध्वस्त कर दिया। अतिक्रमण हटाओं अभियान में भेदभाव पूर्ण रवैया अपनाया गया है।