जनवाणी ब्यूरो |
नई दिल्ली: कृषि कानूनों पर किसानों और सरकार के बीच गतिरोध खत्म करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित चार सदस्यीय कमेटी से अलग होने वाले भारतीय किसान यूनियन मान के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान ने शुक्रवार को इस मामले में चुप्पी तोड़ी। मोहाली में अपने घर पर उन्होंने इस मुद्दे पर मीडिया से बातचीत में अपनी स्थिति साफ की।
मान ने कहा कि 14 जनवरी को दोपहर 12 बजे जब उनके पास आधिकारिक दस्तावेज आए तब उन्हें पता चला कि उन्हें कमेटी का सदस्य बनाया गया है। इसके बाद उन्होंने तुरंत चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया से बातचीत की और उन्हें अपनी स्थिति से अवगत करवाया। उनसे क्षमा मांगकर कहा कि वह यह काम नहीं कर पाएंगे। इसके बाद उन्होंने कमेटी से अलग होने का फैसला लिया और इसके बारे में तुरंत मीडिया को जानकारी दी।
भूपिंदर सिंह मान ने कहा कि किसान संघर्ष के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने विश्वास जाहिर किया कि एक कमेटी बनाकर इस मामले को निपटाया जाए। सुप्रीम कोर्ट की सोच थी कि संघर्षशील किसानों से बातचीत कर मामले को हल किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से उन्हें भी कमेटी में सदस्य बनाया गया था।
लेकिन उन्हें उस समय लगा कि जिनसे बातचीत करने के लिए कमेटी बनाई गई है वह लोग उससे बातचीत नहीं करेंगे तो ऐसे में उस कमेटी का ही रोल खत्म हो जाता है। उन्होंने किसानों के हालात और लोगों की भावनाओं को देखते हुए तुरंत कमेटी से अलग होने का फैसला ले लिया था। उन्होंने साफ किया है कि उन्होंने किसानों के दबाव में ऐसा फैसला नहीं लिया है।
भूपिंदर सिंह मान ने कमेटी से अलग होने में इतनी देर लगाने की वजह भी बताई। उन्होंने कहा कि 12 तारीख की दोपहर में मीडिया के माध्यम से सामने आया कि सुप्रीम कोर्ट ने किसानों के मामले में एक कमेटी बनाई है। इसके नामों को लेकर संशय था। ऐसे में पहले ही अपनी तरफ से जवाब क्या दे देता।
13 तारीख को अपना फोन तक बंद रखा। 14 जनवरी को 12 बजे उनके पास एक ऑफिशियल जानकारी आई। जिसके तुरंत बाद उन्होंने सीजेआई से संपर्क करने की कोशिश की। कुछ समय बाद संपर्क हुआ तो उनके सामने अपनी सारी स्थिति साफ की। उनसे क्षमा मांगी और कमेटी से अलग होने का फैसला लिया।
भाकियू मान से अलग होने के सवाल पर भूपिंदर सिंह ने कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है। यह सारा मेरा परिवार है। मुझे बाहर नहीं किया गया है। कृषि कानूनों को लेकर किए जा रहे संघर्ष पर उन्होंने कहा कि यह एतिहासिक संघर्ष है। किसानी आंदोलन से पंजाब के युवाओं का असली रूप सामने आ गया। उनसे उनके दामन पर लगा धाग धुल गया। युवा कितने मेहनती है, इस बारे में पता चल गया है।