भाजपा के आत्मघाती और अनैतिक कदम ने एक साथ दो विलुप्त होने के कगार पर खडे राजनीतिज्ञ नीतीश कुमार और लालू यादव को जिंदा कर दिया। भाजपा के साथ आकर नीतीश कुमार भी अब लंबे समय तक राजनीति में बने रहेंगे, लाल यादव का खानदान अब बिहार में शक्तिशाली भी बन सकती है। सत्ता विरोधी लहर का लाभ लालू खानदान को मिल सकता है। नीतीश कुमार ने स्वयं के साथ ही साथ लालू खानदान को भी ताप दिया था, लेकिन भाजपा की मूर्खता से बाजी पलट गई। भाजपा को नीतीश कुमार की चरणवंदना का कितना लाभ होगा, यह कहना मुश्किल है पर बिहार की जनता को विकल्प के अभाव में जंगल राज के प्रतीक लालू खानदान से दोस्त करनी पड़ सकती है। नीतीश कुमार की वर्तमान आया राम-गया राम की राजनीतिक पैंतरेबाजी को क्या नाम दिया जाना चाहिए? तल्ख शब्दों में कहें तो फिर अविश्वनीय और अस्वाभाविक भी नहीं है, आश्चर्य की कोई बात नहीं है, अनहोनी की कोई बात नहीं है। आखिर ऐसा क्यों समझा जाना चाहिए? इसलिए कि नीतीश कुमार की राजनीतिक मानसिकता और स्वभाव कुछ ऐसा ही है, पलटी मारना, धोखा देना और स्वार्थ की पराकाष्ठा को बार-बार प्रदर्शित करना, इसमें उनकी कोई तुलना नहीं है। जार्ज फर्नांडीस से लेकर शरद यादव और अली अनवर तक दर्जनों नाम हैं, जिन्हें नीतीश कुमार ने अवसर मिलते ही गिरगिट की तरह रंग बदला और एक झटके में हाशिये पर फेंक दिया। बिहार में राजनीतिक नैतिकता, शुचिता और स्वच्छता के समर्थक राजनीतिज्ञ और बुद्धिजीवी स्पष्ट तौर पर नीतीश कुमार को ठग, विश्वासघाती और घोर अनैतिक तथा पैंतरेबाजी का पर्याय मानते हैं। अपनी कुर्सी के लिए किसी भी कीमत और किसी भी स्थिति में कोई भी समझौता करने के लिए तैयार होते हैं। इसी कारण नीतीश कुमार को कुर्सी कुमार भी कहा जाता है।
नीतीश कुमार की पैंतरेबाजी से कांग्रेस भी नहीं बची। कांग्रेस का समीकरण भी तहस-नहस हो गया। कांग्रेस के साथ गठबंधन का असली मकसद ही कारण बना। कांग्रेस और नीतीश कुमार को अपना-अपना राजनीतिक स्वार्थ था। नीतश कुमार को प्रधानमंत्री की कुर्सी चाहिए थी और कांग्रेस को अपने युवराज राहुल गांधी के लिए भी प्रधानमंत्री की कुर्सी चाहिए थी। राजनीतिक अति महत्वाकांक्षा की इस प्रतिद्वंदिता के सामने गठबंधन और एक-दूसरे का साथ कहा तक चलता? नीतीश को गठबंधन का सिरमौर बनाने के लिए कोई तैयार ही नहीं था। कांग्रेस बड़ी पार्टी होने के कारण इंडिया नामक गठबंधन की रस्सी अपने हाथ से कैसे ढीली करती, कैसे छोड़ती? कांग्रेस राहुल गांधी को बलिदान कर नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार घोषित कैसे और क्यों करती? इंडिया गठबंधन में शामिल अन्य दल भी नीतीश कुमार को प्रधानमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं थे। ममता बनर्जी ने मलिकार्जुन खड़गे को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाने का नाम प्रस्तावित कर एक तरह से राजनीतिक वज्रपात कर दिया था। एक तीर से दो निशाने कर दी थी। नीतीश कुमार और राहुल गांधी दोनों की संभावनाओं पर पूर्ण विराम लगा दी थी। ममता बनर्जी के इस प्रस्ताव का समर्थन अरविन्द केजरीवाल ने भी किया था। कांग्रेस को कहना पडा कि लोकसभा चुनाव के बाद प्रधानमंत्री पद पर सहमति हो सकती है, लोकसभा चुनाव के पूर्व ऐसी सहमति की कोई संभावना या जरूरत नहीं है।
इसके अलावा अखिलेश यादव और वामपंथी पार्टियों तथा दक्षिण की राजनीतिक पार्टियों की भी सोच और सहमति विपरीत थी। ऐसी राजनीतिक स्थिति में नीतीश कुमार की प्रधानमंत्री बनने की संभावनाएं समाप्त हो गयी थीं। उनके दल में ही बिखरावा के समीकरण बनने लगे थे। लालू के खानदान की चमक-धमक के सामने नीतीश कुमार की बोलती बंद थी, भाजपा की तरह राजद समर्पण की स्थिति में कतई नहीं था, राजद तन कर खड़ी थी और हर मंच और मोर्चे पर राजद अपनी बढ़त और शक्ति का प्रदर्शन कर रहा था। ऐसी विपरीत व खतरनाक परिस्थिति में नीतीश कुमार द्वारा भाजपा की ओर कदम बढाने की पैंतरेबाजी दिखाने के अलावा और कोई विकल्प नहीं था। अगर भाजपा की ओर कदम बढ़ाने की पैंतरेबाजी नहीं दिखायी होती तो फिर नीतीश कुमार की राजनीतिक मौत को कोई रोक नहीं सकता था।
पिछले विधानसभा चुनावों में नीतीश की पार्टी का प्रदर्शन बहुत ही खराब थी, निचले स्तर की पार्टी थी, भाजपा के साथ गठबंधन के कारण नीतीश कुमार की लाज बच गई थी। भाजपा बड़ी पार्टी होने के बाद भी मुख्यमंत्री का दावेदार नहीं बनी और अपने से छोटे दल यानी जद यू और नीतीश कुमार के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी को छोड़ दी। इतने बड़े उपकार का नीतीश कुमार ने सम्मान नहीं दिया और अपनी मनमानी चलाने का काम किया। जिसकी पार्टी एक प्रदेश की भी पाटी नहीं है, फिर भी उसके नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए सबको ठगने की पैंतरेबाजी दिखाता है। अगर नीतीश कुमार को प्रधापमंत्री बनना है तो फिर सबसे पहले अपने प्रदेश बिहार में ही राजद और भाजपा से बड़ी पार्टी का जनाधार हासिल करना चाहिए था, इसके अलावा अपनी पार्टी जद यू का विस्तार पूरे देश में करना चाहिए।
बिहार का दुर्भाग्य ही कहिए। बिहार के लोग जिसको भी अपना भाग्य विधाता मानते हैं, जिसको भी राजगद्दी सौंपते हैं वही अनैतिक निकलता है, ठग निकलता है, अविश्वसनीय निकलता है, विश्वासघाती निकलता है, सपने को जमींदोज करने वाला निकलता है, प्रतिभा का संहार करने वाला निकलता है, शेखी बघारने वाला निकलता है, विकास और उन्नति को जमींदोज करने वाला निकलता है, जंगलराज कायम करने वाला निकलता है। बिहार में लालू खानदान ने पूरे 15 साल तक जंगलराज कायम किया, प्रतिभा संहार किया, शिक्षा चौपट कर दिया, बिहार के बच्चे शैक्षणिक देरी की वजह से रोगजार और सरकारी नौकरियों मे वंचित हो गए, संपन्न तबका बिहार छोड़कर भाग गया। लालू खानदान के पतन के बाद आयी सरकारें भी लालू खानदान के जंगलराज की फोटोस्टेट कॉपी ही साबित हुर्इं। बीस साल तक नीतीश कुमार कभी भाजपा तो कभी राजद के साथ मिलकर सरकार चलाते रहे, पर बिहार का पतन जारी रहा, कोई उद्योग धंघा क्यों नहीं खड़ा हुआ, जंगल राज समाप्त क्यों नहीं हुआ, जंगलराज में उद्योग धंघे भी खडेÞ नहीं होते, रोजगार का साधन भी नहीं बढ़ा। शिक्षा भी नहीं बढ़ी। बिहार के बच्चों के लिए सुलभ स्तर पर इंजीनियरिंग कालेज और मेडिकल कालेज नहीं खुले, बिहार के बच्चे इंजीनियरिंग और मेडिकल शिक्षा के लिए देश भर में धक्के खाते रहे और अपमानित होते रहे। बिहार के मजदूर पूरे देश में हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी कलंक और अपमान झेलते रहे, हिंसा का शिकार होते रहे। पलायन क्यों नहीं रूका। यही नीतीश कुमार का सच है।