नरेंद्र देवांगन |
कुछ रोग ऐसे होते हैं, जो दूषित वातावरण, परिस्थिति, रहन-सहन, खान-पान व उम्र के साथ उत्पन्न होते हैं। वहीं कुछ रोग ऐसे भी होते हैं जो हमें अपने माता-पिता से जन्म से ही मिलते हैं, इन रोगों को आनुवंशिक रोग कहा जाता है। हम में से अधिकांश लोगों को आनुवंशियक रोगों की जानकारी नहीं होती जिसकी वजह से हम इनके प्रति लापरवाह होते हैं।
मानव शरीर में लाखों कोशिकाएं होती हैं। इन कोशिकाओं को नियंत्रण करने का काम डीएनए करते हैं। हमारे शरीर में डीएनए का एक हिस्सा माता से प्राप्त होता है दूसरा हिस्सा पिता से। डीएनए में हमारा जेनेटिक कोड होता है, जिससे माता की आदतें व बीमारियां हम तक पहुंचती हैं। इसी में खराबी होने के कारण आनुवंशिक रोग होते हैं जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होते हैं।
मधुमेह
आनुवंशिक रोगों में मधुमेह आम रोग है। शरीर में अनेक प्रकार की ग्रंथियां होती हैं जो शरीर को अलग-अलग प्रकार के पोषण देने तथा शरीर के अवशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने का काम करती हैं। ऐसी ही एक ग्रंथि है पेनक्रि याज। इस ग्रंथि का कार्य है इंसुलिन बनाना। यही इंसुलिन शरीर की धमनियों के द्वारा रक्त में पहुंचकर रक्त में मौजूद शुगर की मात्र को नियंत्रित करती है। कभी-कभी यह ग्रंथि किसी कारण से अपना काम करना बंद कर देती है तब इंसुलिन बनना बंद हो जाता है। फिर हम जो भोजन करते हैं उसमें शरीर की आवश्यकता से अधिक शक्कर की मात्र होने पर वह हमारे रक्त कणों में मिल जाती है और खून में शक्कर की मात्र अधिक होने लगती है। यह पीढ़ी दर पीढ़ी चलने वाली आनुवंशिक बीमारी है। आंकड़ों के मुताबिक मां की अपेक्षा पिता को मधुमेह होने पर संतान में इसके होने का ज्यादा खतरा रहता है। मधुमेह के कारण हृदयघात, किडनी फेल्योर, लकवा, मानसिक तनाव, अनिद्रा व लिवर में खराबी की समस्या उत्पन्न होती है।
आंखों के रोग
आंखों के रोग भी हमारे जीन से जुड़े होते हैं। जीन के दोष से मोतियाबिंद, अतिनिकट दृष्टि, ग्लूकोमा, दीर्घ दृष्टि इत्यादि रोग होते हैं। चर्म रोग में 1०० से भी अधिक आनुवंशिक रोगों की गणना की गई है। इसमें सोरायसिस, केरावेसिस एक्जिमा, सफेद दाग व काले निशान इत्यादि रोग शामिल हैं।
हीमोफीलिया
हीमोफीलिया भी एक आनुवंशिक बीमारी है जो आमतौर पर पुरूषों में ही अधिक पाई जाती है। यह बीमारी रक्त में थक्का नहीं बनने देती। हीमोफीलिया के मरीजों के रक्त में प्रोटीन की कमी होती है जिसे क्लॉटिंग फैक्टर भी कहा जाता है। इस बीमारी में खून आसानी से बंद नहीं होता। बिना किसी कारण के नाक से खून निकलता है।
थायराइड
थायराइड बीमारी में भी जीन का संबंध होता है। यह मानव शरीर में पाए जाने वाले एंडोक्राइन ग्लैंड में से एक है। थायराइड ग्रंथि गर्दन की श्वास नली के ऊपर एवं स्वर यंत्र के दोनों ओर दो भागों में बनी होती है। आमतौर पर शुरूआती दौर में थायराइड के किसी भी लक्षण का पता आसानी से नहीं चल पाता क्योंकि गर्दन में छोटी सी गांठ सामान्य ही मान ली जाती है। जब पता चलता है तब तक यह भयानक रूप ले लेती है। इसलिए आपको थायराइड हो चाहे न हो, अपने बच्चे का थायराइड टेस्ट अवश्य करवाएं।
थायराइड के लिए इनवेस्टिगेशन किए जाने में खून की जांच प्रमुख हैं- टी3, टी4 और टीएसएच। इस रिपोर्ट से ही थायराइड के अधिक या कम होने का पता चलता है। इसमें लापरवाही बरतने पर थायराइड कैंसर तक हो सकता है।
सिस्टिक फाइबोसिस
सिस्टिक फाइबोसिस एक आनुवंशिक बीमारी है जो एक जीन में उत्परिवर्तन के कारण होती है। इसके चलते फेफड़ों में एक चिपचिपा सा पदार्थ बनने लगता है और फिर सांस लेने में मुश्किल होती है। सिस्टिक फाइबोसिस का पता गर्भावस्था के 11वें हफ्ते में प्लेसैंटा के ऊतकों की जांच द्वारा लगाया जा सकता है। गर्भावस्था के 16वें हफ्ते के बाद इसका पता अफ्निओसिंटिस द्वारा चल सकता है। गर्भावस्था के दौरान मां को अपने बच्चे को स्वस्थ रखने के लिए टैस्ट अवश्य करवाने चाहिए।
कैंसर
महिलाओं में स्तन कैंसर, ओवरी कैंसर, पीओएस जैसी बीमारियां आनुवंशिक रूप से आती हैं। हमारा शरीर अवयव और ऊतक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है और कैंसर इन्हीं कोशिकाओं का एक रोग है।
कैंसर में स्तन कैंसर आज विश्वभर में एक ऐसी बीमारी है जिससे लोगों की मौत हो रही है। लोगों को ऐसा लगता है कि स्तन कैंसर केवल महिलाओं में ही होता है पर ऐसा नहीं है। यह पुरुषों में भी हो सकता है।