Thursday, May 29, 2025
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केरल में धमाके साधारण घटना नहीं

Nazariya 22


RAJESH MAHESHWARI 1केरल के एनार्कुलम जिले के एक सभा-कक्ष में जो धमाके हुए वो किसी बड़े खतरे का संकेत है। एनार्कुलम में कलामसेरी स्थित एक कन्वेंशन सेंटर में पहला धमाका सुबह 9 बजे के करीब हुआ, अगले कुछ मिनटों में एक के बाद एक ब्लास्ट हुआ। 15-20 मिनट के अंतराल पर तीसरा ब्लास्ट भी हो गया। बेशक धमाके ‘आतंकी’ नहीं थे, लेकिन धार्मिक कट्टरवाद से प्रेरित जरूर थे। एक सभा-कक्ष में करीब 2300 लोग प्रार्थना में लीन थे। वे ‘येहोवा समुदाय’ के बताए जाते हैं, जो बुनियादी तौर पर ईसाई हैं, लेकिन मानसिक रूप से यहूदी-समर्थक भी हैं। उन्होंने एक दिन पहले इस्राइल के समर्थन में प्रस्ताव पारित किया था। दक्षिण भारत के सुंदर राज्य केरल में विभिन्न समूहों के बीच हिंसा का इतिहास रहा है। इन समूहों में धर्म और राजनीति का खतरनाक मिश्रण भी रहा है। हालांकि प्रभाव इजरायल-हमास युद्ध का भी रहा होगा, क्योंकि केरल ही नहीं, देश के अलग-अलग हिस्सों में भी मुस्लिम संगठन फिलिस्तीन समर्थक प्रदर्शन कर रहे हैं। हमास को ही फिलिस्तीन के तौर पर पेश किया जा रहा है, लिहाजा आंकड़े और तथ्य गलत हैं। केरल में हाल ही में जो फिलिस्तीन समर्थक रैली का आयोजन किया गया था, उसे हमास के संस्थापक नेता खालिद मशेल ने भी वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए संबोधित किया था। जिस समय केरल में धमाके हुए, उस वक्त राज्य के मुख्यमंत्री पिनरई विजयन दिल्ली में धरना दे रहे थे। यह धरना कम्युनिस्ट पार्टी ने गाजा पर इस्राइल के हमले के विरोध में आयोजित किया है। धमाकों के बाद भी विजयन धरने में ही मौजूद रहे। हालांकि उन्होंने धमाकों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया और कहा कि धमाके के बाद के हालात को लेकर उन्होंने राज्य के डीजीपी से बात की है। असल में केरल में पिछले कुछ दिनों से फलस्तीन के समर्थन में मुस्लिम संगठन लगातार रैलियां कर रहे हैं। दो दिन पहले एनार्कुलम में हमास के समर्थन में भी एक रैली हुई थी। 27 अक्टूबर को भी मल्लपुरम में फिलिस्तीन के सपोर्ट में हुई एक रैली में हमास नेता खालिद मशेल वर्चुअली शामिल हुआ था।

देश में यह कैसे हो सकता है कि आतंकी समूह का सरगना रैली को संबोधित करे और राज्य सरकार से स्पष्टीकरण तक न मांगा जाए? केरल में 27 फीसदी मुसलमान और 18 फीसदी ईसाई हैं। दोनों ही समुदाय वाममोर्चा और कांग्रेस नेतृत्व वाले मोर्चे के साथ सत्ता और सियासत में ताकतवर मौजूदगी दर्ज कराते रहे हैं। अब इन धमाकों की गहन जांच से निष्कर्ष सामने आएंगे कि इस्राइल-हमास युद्ध से प्रभावित कट्टरवाद कितना जिम्मेदार है? धमाकों के लिए आईईडी का इस्तेमाल किया गया, तो उसे कहां से हासिल किया गया? विस्फोटक पदार्थ कहां से आए? हालांकि एक शख्स ने धमाकों की जिम्मेदारी ली है। डोमिनिक मॉर्टिन नाम के इस व्यक्ति ने केरल पुलिस को बताया है कि वह 16 साल से ‘येहोवा विटनेस समुदाय’ का सदस्य रहा है। यहोवा विटनेसेस क्रिश्चियंस का एक अल्पसंख्यक समुदाय है। इसकी स्थापना पिट्सबर्ग (अमेरिका) में 1872 में हुई थी। यहोवा विटनेसेस को मानने वाले होली ट्रिनिटी पर विश्वास नहीं करते। ये लोग जीसस को ईश्वर का बेटा मानते हैं, न कि खुद ईश्वर। ये लोग जीसस की शिक्षाओं और उनके उदाहरणों को ही आदर्श मानते हैं। इसलिए ये खुद को क्रिश्चियन मानते हैं। इस समुदाय में कोई केंद्रीय नेतृत्व नहीं है और ये दुनियाभर में फैले हुए हैं। डोमिनिक मॉर्टिन को करीब 6 साल पहले एहसास हुआ कि यह अच्छा संगठन नहीं है और इसकी शिक्षाएं ‘देशद्रोही’ हैं। हालांकि येहोवा समुदाय ने इस शख्स की सदस्यता से इंकार किया है, लेकिन ‘देशद्रोही’ शब्द में कट्टरवाद और साजिश के मायने निहित हैं।

ये देखते हुए पिछले दिनों एनार्कुलम में जो विस्फोट हुए वे किसी बड़ी कार्ययोजना का हिस्सा लगते हैं। भले ही इसके पीछे ईसाई समुदाय के भीतर का वैचारिक मतभेद हो लेकिन कहीं न कहीं विदेशी हाथ से इंकार नहीं किया जा सकता। दुर्भाग्य से राष्ट्रीय पार्टी होने के बाद भी कांग्रेस केरल में मुस्लिम लीग और ईसाई मिशनरियों को खुश रखने में लगी रहती है। 2019 में जब राहुल गांधी को अमेठी में अपनी हार का खतरा दिखा तब वे केरल की वायनाड सीट से भी लड़े। यद्यपि वे कहीं से भी लड़कर अपना जनाधार साबित कर सकते थे किंतु उन्होंने वायनाड का चयन किया क्योंकि वहां ईसाई मतदाताओं का वर्चस्व है। बहरहाल राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआईए समेत सभी एजेंसियां केरल में पहुंच चुकी हैं। वे जांच के हर पहलू की गहराई तक जाएंगी। यह भी जांच का सरोकार होगा कि हमास वाली रैली के आयोजन में किसकी कारगर भूमिका थी? कांग्रेस और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग जैसी परंपरागत पार्टियों के अलावा प्रतिबंधित पीएफआई और एसडीपीआई सरीखे दलों की सियासत किस हद तक असरदार है और उनकी बुनियादी सोच क्या है? इन धमाकों के संदर्भ में देश की सकल सुरक्षा का आयाम भी संवेदनशील है।

धमाकों के बाद सोशल मीडिया पर अनाप-शनाप पोस्ट लिखी जा रही हैं। धमाकों को इस्राइल-हमास युद्ध से जोड़ कर व्याख्याएं की जा रही हैं। हालांकि केरल पुलिस ने आगाह किया है कि सोशल मीडिया पर फर्जी और भडकाऊ पोस्ट लिखने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। संभावनाएं हैं कि पश्चिम एशिया का टकराव भारत और उसके हितों को परोक्ष रूप से प्रभावित कर सकता है। भारत कभी युद्ध का हिमायती नहीं रहा है। इस मामले भी भारत सरकार की नीति और नीयत साफ है। किसी दूसरे के घर के झगड़े का असर हमारे देश की शांति, खुशहाली और विकास पर न पड़े।


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