
ब्रह्मेस सुपरसोनिक क्रुज मिसाइल के एक नौ सेना प्रारूप का आईएनएस चेन्नई विध्वंसक पोत से अरब सागर में लक्ष्य का सटीक भेदन भारत की बढ़ती सामरिक और वैज्ञानिक क्षमता को रेखांकित कर दिया है। इस सफलता से स्पष्ट है कि ब्रह्मेस न सिर्फ प्रमुख हमलावर शस्त्र के रूप में लंबी दूरी पर स्थित लक्ष्य का भेदन करेगा, बल्कि यह युद्धपोत की अपराजेयता भी सुनिश्चित करेगा। इस परीक्षण के बाद मिसाइल की मारक क्षमता 290 किमी से बढ़कर 400 किमी की दूरी तक हो गई है। चीन से बढ़ते टकराव के बीच भारत ने भारत-चीन सीमा पर सामरिक महत्व के कई स्थानों पर बड़ी संख्या में ब्रह्मेस मिसाइल की तैनाती भी कर दी है। उल्लेखनीय है कि गत वर्ष भारत ने लड़ाकू विमान सुखोई से सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मेस को दागकर दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया जिसके पास समुद्र, जमीन तथा हवा से मार कर सकने वाली सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। याद होगा पिछले वर्ष सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल ब्रह्मेस को सुखोई-30 विमान से बंगाल की खाड़ी के कलाईकुंडा में निर्धारित लक्ष्य पर दागा गया था। यह भारत के लिए असाधारण उपलब्धि ही कही जाएगी कि विश्व का कोई भी देश अभी तक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल को फाइटर जेट से लांच नहीं कर पाया है। जानना आवश्यक है कि ब्रह्मेस भारत के डीआरडीओ और रूस के एनपीओ मशीनोस्त्रोयोनिया का संयुक्त उद्यम है जिसका नाम भारत की ब्रह्मपुत्र नदी और रूस की मस्कवा को मिलाकर रखा गया है। यह रूस की पी-800 ओंकिस क्रूज मिसाइल की प्रौद्योगिकी पर आधारित है।
ब्रह्मेस का पहला सफल परीक्षण 12 जून, 2001 को किया गया था और अब यह थल व नौसेना की थाती तथा भारतीय वायु सेना के लड़ाकू बेड़े की रीढ़ बन चुका है। यह मिसाइल सबसे पहले 2005 में नौसेना को मिली थी। नौसेना के सभी डेस्ट्रॉयर और फ्रीगेट युद्धपोतों में ब्रह्मेस मिसाइल लगी हुई है। यह विश्व की सबसे तेज सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल है। यह आवाज से भी तीन गुना रफ्तार से दुश्मन के ठिकाने को तबाह करने में सक्षम है। यह ध्वनि की रफ्तार से 2.8 गुना तेज गति से लक्ष्य भेदती है। यह रफ्तार में अमेरिकी सेना की टॉमहॉक मिसाइल से भी चार गुना तेज है। यही नहीं, उड़ान के दौरान ही आकाश में इसमें किसी विमान से र्इंधन भरा जा सकता है। यह लगातार 10 घंटे तक हवा में रह सकता है। यह मिसाइल पहाड़ों की छाया में छिपे दुश्मनों के ठिकाने को भी निशाना बना सकती है। इसके सफल परीक्षण से भारत की वायु सेना की मारक क्षमता कई गुना बढ़ गई है। इस मिसाइल की खूबी यह भी है कि इसे सबमरीन, वॉशिप, एयरक्रॉफ्ट और जमीन से भी लांच किया जा सकता है। ब्रह्मेस ऐसी मिसाइल है जो दागे जाने के बाद रास्ता बदल सकने में भी सक्षम है। लक्ष्य तक पहुंचने के दौरान यदि टारगेट मार्ग बदल ले तो मिसाइल भी अपना रास्ता बदल लेती है। 300 किलो एटमी हथियारों के साथ हमला कर सकने में सक्षम इस मिसाइल का निशाना अचूक है इसलिए इसे ‘दागो और भूल जाओ’ भी कहा जाता है। यह मिसाइल कम ऊंचाई पर उड़ान भरती है इसलिए रडार की पकड़ से बाहर है। मिसाइल की रेंज 290 किलोमीटर के करीब है। थल सेना के पास जो ब्रह्मेस मिसाइल की तीन रेजिमेंट हैं, इनमें से दो चीन सीमा पर तैनात हैं और एक पाकिस्तान सीमा पर है। चीन इस मिसाइल को अस्थिरता पैदा करने वाले हथियार के तौर पर देखता है। उसे डर है कि अरुणाचल प्रदेश में इस मिसाइल की तैनाती हुई तो उसका तिब्बत और युन्नान प्रांत खतरे की जद में आ जाएंगे। लेकिन मौजूदा समय में चीन की आपत्तियों का कोई मूल्य-महत्व नहीं है। सच तो यह है कि अब भारत चीन की आपत्तियों पर गौर फरमाने के बजाए ब्रह्मोस मिसाइल की सौदेबाजी भी चीन को ध्यान में रखकर ही करेगा। कई देश इस मिसाइल को खरीदने के लिए लालायित हैं। वियतनाम विस्तारवादी चीन से अपने बचाव के लिए 2011 से ही ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने को आतुर है। इसके अलावा मलेशिया, फिलीपींस और इंडोनेशिया भी ब्रह्मोस मिसाइल खरीदने की कतार में हंै। ध्यान दें तो ये सभी देश दक्षिणी चीन सागर में चीन की साम्राज्यवादी और धमकी नीति से परेशान हैं और चीन से मुकाबले के लिए अपने को सामरिक रुप से मजबूत करना चाहते हैं। भारत इस काम में उनकी मदद कर चीन की साम्राज्यवादी नीति पर अंकुश लगा सकता है।
अच्छी बात यह है कि भारत अगले 10 साल में 2000 ब्रह्मोस मिसाइल बनाएगा और इन मिसाइलों को रूस से लिए गए सुखोई लड़ाकू जहाजों में लगाया जाएगा, जिससे भारत की रक्षा पंक्ति मजबूत होगी। तथ्य यह भी कि ब्रह्मेस आने वाले कुछ ही महीनों में 75 प्रतिशत स्वदेशी होे जाएगा। 10-12 प्रतिशत स्वदेशी उपकरणों से प्रारंभ हुआ ब्रह्मेस अब 65 प्रतिशत भारतीय कलपुर्जों से लैस हो चुका है। उम्मीद है कि आने वाले दिनों में ब्रह्मेस 85 प्रतिशत भारतीय अवतार में नजर आएगा।
