दिलीप कुमार पाठक
महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधी जी की विराट शख्सियत पर कहा था, ‘करिश्माई लीडर महात्मा गांधी अपने लोगों के नेता, जिनकी सफलता तकनीकी उपकरणों और कलाबाजी पर निर्भर नहीं है, बल्कि उनके व्यक्तित्व की विश्वसनीय क्षमता पर निर्भर है। एक विजयी योद्धा जिन्होंने ताकत के इस्तेमाल से हमेशा नफरत की है। एक बुद्धिमान और विनम्र इंसान, जो बार-बार सुलझे मस्तिष्क के साथ काम करते है, जिन्होंने अपनी सारी ऊर्जा को अपने लोगों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया है, एक ऐसे इंसान जिन्होंने यूरोप की क्रूरता और निर्दयिता का साधारण मानव रहकर डटकर सामना किया है।।। भविष्य की पीढ़ियों को इस बात पर विश्वास करने में मुश्किल होगी कि हाड़-मांस से बना ऐसा कोई व्यक्ति भी कभी धरती पर आया था।’ गौरतलब है कि अल्बर्ट आइंस्टीन एवं गांधी जी की उम्र में ज़्यादा कोई अन्तर नहीं था। अल्बर्ट आइंस्टीन और गांधी एक दूसरे के बड़े प्रशंसक थे और अक्सर दोनों के बीच पत्रों का आदान-प्रदान हुआ करता था।
केवल भारत ही नहीं पूरी दुनिया के लिए गांधी जी अमर विचार हैं, जर्मनी, अमेरिका, यूरोप, आदि में महात्मा गांधी के बारे में खूब पढ़ाया जाता है।। जर्मनी अमेरिका, यूरोप में गांधी जी की तुलना ईसा मसीह से की गई है। वहाँ के कई लेखक गांधी जी को ईसा मसीह जैसी शख्सियत की तरह ही देखते हैं। इनमें से कई का मानना है कि गांधी धरती पर ईसा मसीह के एक अवतार के रूप में आए थे। उन्होंने सारी जिंदगी ईसा मसीह के मानवता के सिद्धांत पर ही जोर दिया था। भारत के बाद गांधी जी सबसे ज्यादा अमेरिकियों के दिलों में बसते हैं। आज भी अमेरिका में गांधी जी के विचारों को देखा जा सकता है। एक बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा वर्जीनिया के एक स्कूल में पहुंचे। यहां लिली नाम की एक छात्रा ने उनसे पूछ दिया कि यदि आपको मौका मिले तो आप किस जीवित या मृत व्यक्ति के साथ डिनर करना चाहेंगे? ओबामा ने फट से जवाब दिया-‘मुझे लगता है कि मैं महात्मा गांधी के साथ डिनर करना चाहूंगा। वो मेरे सच्चे हीरो हैं। लेकिन शायद ये डिनर बहुत छोटा होगा, क्योंकि गांधी ज्यादा खाते नहीं थे।’ दुनिया का ऐसा कोई कोना नहीं है जहां गांधी जी के अमर विचार उस कोने को प्रकाशित न किए हो।
आज पूरी दुनिया नफरत की राह पर चल पड़ी है, जहां देखिए बारूद के ढेरों तले बचपन कुर्बान हो रहे हैं, लोग पढ़ तो रहे हैं लेकिन संयम खत्म होता जा रहा है। दो सौ साल की लम्बी गुलामी झेलते हुए भारत के हमारे एक महान पूर्वज महात्मा गांधी जी ने शांति, अहिंसा की बात की थी। ऐसा नहीं है कि गांधी जी की एक हुंकार पर करोड़ों लोग युद्ध लड़ने के लिए तैयार नहीं थे, लेकिन गांधी जी को पता था कि युद्ध केवल एक सैनिक एक नागरिक नहीं लड़ता, बल्कि युद्ध एक बेटा, बाप, भाई, पति, युद्घ लड़ता है, जिसके साथ कंधे से कंधा मिलकर मां, पत्नी, बेटी, बहिन भी युद्ध में भाग लेती है। युद्ध की विभीषिका आने वाली पीढ़ियों को चुकाना पड़ता है। युद्ध नफरत से शुरू होता जरूर हैं लेकिन युद्घ मुहब्बत की उम्मीद पर खत्म होता है, अत: मुहब्बत का रास्ता कभी भी नहीं त्यागना चाहिए।
महात्मा गांधी अहिंसा, शांति के ऐसे दूत थे जो अपने आचरण से पूरे विश्व को शांति का मार्ग दिखाते हैं। ये सोचने की बात नहीं है कि आज गांधी जी होते तो क्या करते। बापू अहिंसा त्याग कर अधिकांश युद्घ के मार्ग पर चल पड़ी दुनिया के विरुद्ध खड़े दिखाई देते। आज गांधी जी अनशन पर बैठे हुए दुनिया को शांति की स्थापना का मार्ग बताते, लोगों को उग्रता का मार्ग छोड़कर अहिंसा के मार्ग पर चलने का आव्हान करते। क्योंकि शांति ही प्रगति पथ है। गांधी जी का सबसे प्रमुख जीवन का मंत्र अहिंसा था और वे आज भी अहिंसा के महत्व का प्रचार कर रहे होते और अहिंसा की प्रासंगिकता लोगों को समझा रहे होते। उन्होंने अपने जीवन में अंग्रेजों के अत्याचार को देखा सहा और उनके शक्तिशाली होने के बाद भी उनसे निपटने के लिए अपने निजी जीवन और धार्मिक मूल्यों को लागू किया और सत्य और अहिंसा का रास्ता निकाला। अहिंसा का अर्थ हिंसा ना करना होता है, किसी की हत्या ना करना या किसी को कष्ट ना पहुंचाना होता है।
गांधी जी ने रामराज्य की कल्पना की थी, जो आज भी ख्वाबों से बाहर कभी मुक्कमल नहीं हो सका है। आज न्याय लोगों से दूर होता जा रहा है। अत्याचार बढ़ रहा है। गांधी जी के लिए आजाद मुल्क की परिभाषा ही अलग थी, वो झंडा फहराने के बाद प्रसाद वितरण को आजादी नहीं मानते थे, गांधी जी ने कहा था जब तक हम किसी भी तरह की अनैतिक पाबन्दी झेलते हैं हम अपने आप को आजाद कैसे मान सकते हैं? आजादी की पूर्व संध्या जब दिल्ली दुल्हन की तरह सजी हुई थी तब गांधी जी दिल्ली की उस चकाचौंध से बहुत दूर बंगाल में एक संघर्ष रोकने के लिए शांति कायम करने के जद्दोजहद में थे। आज इज्जत के लिए गरीबो के घर ढक दिए जाते हैं।
बापू बंगाल के नोआखाली में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच सौहार्द कायम करने के लिए गांव-गांव घूमे। उनके पास धार्मिक पुस्तकें ही थीं। उन्होंने सभी हिन्दुओं और मुसलमानों से शांति बनाए रखने की अपील की और उन्हें शपथ दिलाई कि वे एक-दूसरे की हत्याएं नहीं करेंगे। वह हर गांव में यह देखने के लिए कुछ दिन रूकते थे कि जो वचन उन्होंने दिलाया है, उसका पालन हो रहा है या नहीं।। गांधी जी ने सभी से आव्हान किया कि आइए एक दूसरे के साथ प्रेम से रहने का संकल्प लीजिए, लेकिन कोई भी घर से नहीं निकल पा रहा था, बाद में गांधी जी ने बच्चों को बुलाया उनके साथ गेंद खेलने लगे। तब फिर से गांधी जी ने आव्हान किया कि आप लोग बच्चों से सीख लीजिए कि कोई किसी का दुश्मन नहीं होता, महात्मा गांधी के अथक प्रयासों से बंगाल में शांति स्थापित हो गई थी।
गांधी कोई व्यक्ति नहीं बल्कि सोई हुई रूहें जगाने की मुकम्मल आवाज थे। गांधी प्रयोगवादी संत होकर कालिख से निकले फिर भी बेदाग खड़े थे। तब ही गांधी सबसे बड़े थे। गांधी पैरोकार थे राष्ट्रउत्थान के। बंधक आंखों में ख्वाब दिखाकर स्वाधीनता का बीज डालकर मंत्र अहिंसा का लेकर सबके साथ चले थे। तब ही गांधी सबसे बड़े थे। उद्वेलित होते मन में गांधी आते हैं राह दिखाते हैं, स्थायित्व देते हैं कि जीत सकते हो खामोशी से बड़े से बड़े निरंकुश हुक्मरानों को…सिकंदरों का मान मर्दन करवाते हैं, क्योंकि हर टूटे हुए मन को महात्मा गांधी याद आते हैं।