विवेक रंजन श्रीवास्तव |
तिरंगे की छाया में खडे, बंद गले का जोधपुरी सूट पहने , सफेद टोपी लगाये गर्व से अकड़े हुये मुख्य अतिथि ने परेड की सलामी ली . उदघोषणा हुई, आकाश की असीम उंचाईयों तक ट्राई कलर का संदेश पहुंचाने के लिये गैस के गुब्बारे “बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स” छोड़ कर हर्ष व्यक्त किया जावेगा . सजी सुंदर दो लडकियों ने केसरिया , सफेद , हरे गैस के गुब्बारो के गुच्छे मुख्य अतिथि की ओर बढ़ाये . शौर्य , देश भक्ति और साहस के प्रतीक ढ़ेर सारे केसरिया गुब्बारे सबसे अधिक उंचाई पर थे , सफेद गुब्बारो के धागे कुछ छोटे थे . उद्घोषक की भाषा में सफेद रंग के ये गुब्बारे शांति , सदभावना और समन्वय को प्रदर्शित करते इठला रहे थे . इन्हीं सफेद गुब्बारो में एक गुब्बारा गहरे नीले रंग का भी था जो तिरंगे के अशोक चक्र की अनुकृति के रुप में गुच्छे में बंधा था . वही अशोक चक्र जो सारनाथ के अशोक स्तंभ से समाहित किया गया है हमारे तिरंगे में . यह चक्र राष्ट्र की गतिशीलता , समय के साथ प्रगति तथा अविराम बढ़ते रहने को दर्शाता है . सबसे नीचे हरे रंग के खूब सारे फुग्गे थे . देश के कृषि प्रधान होने , विकास और उर्वरता के प्रतीक का रंग है तिरंगे का हरा रंग .
मुस्कुराते हुये मुख्य अतिथि जी ने बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स छोड दिये . कैमरा मैन एक्शन में आ गया , लैंस जूम कर , आकाश में गुब्बारो के गुम होते तक जितनी बन पड़ी उतनी फोटो खींच ली गईं . समाचार के साथ ऐसी फोटो न्यूज को आकर्षक बना देती है . नीले आसमान के बैकग्राउंड में , सूरज की सुनहली धूप के साथ , बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई की फोटो खबर में देशभक्ति का जज्बा पैदा कर देती है . जब ओजस्वी उद्घोषणा होती है ” झंडा उंचा रहे हमारा , विजयी विश्व तिरंगा प्यारा ” तो सचमुच स्टेडियम में उपस्थित हर किसी का सीना थोड़ा बहुत जरूर फूल जाता है .
पर कुछ अदृश्य हाथ हैं जो तिरंगे की तीनो रंग की पट्टियो की सिलाई उधाड़कर उन्हें अलग अलग करने पर आमादा है ? कौन सी ताकतें हैं जो जगह जगह पत्थरबाजी , आगजनी व हत्या करवाने में जुटी हुई हैं ? कौन है जो कहला रहा है कि इस हिस्से को उस हिस्से से अलग कर दो ? तिरंगे का साया तो हमेशा से समता का पाठ पढ़ाता आया है . संविधान में केवल अधिकार नहीं कर्तव्य भी तो दर्ज हैं . देश का जन गण मन तो वह है , जहां फारूख रामायणी अपनी शेरो शायरी के साथ राम कथा कहते हैं . जहां मुरारी बापू के साथ ओस्मान मीर , गणेश और शिव वंदना गाते हैं . फिल्म बैजू बावरा का भजन है मन तड़पत हरि दर्शन को आज, इस अमर गीत के संगीतकार नौशाद , गीतकार शकील बदायूंनी हैं , तथा गायक मोहम्मद रफी हैं . तिरंगे ने कभी भी इन संगीत के महारथियों से उनकी जाति नही पूछी . आज के हालात पर बेचैन तिरंगे ने उस भीड़ से पूछा जो उसे हिला हिला कर आंदोलन कर रही थी कि मेरे साये में यह जातिगत भीड़ क्यों ? तो किसी से उत्तर मिला कि ऐसा केवल सोशल मीडिया पर दिख रहा है , जन गण मन तो आज भी वैसा ही है . आसमान के अनंत सफर पर ट्राईकलर बैलून बंच ने कहा आमीन ! काश सचमुच ऐसा ही हो ! यदि ऐसा है तो समझ लो कि इस भ्रामक सोशल मीडिया की उम्र ज्यादा नही है . क्योकि झूठ की जड़े नही होती , यह शाश्वत सत्य है . बंच आफ ट्राई कलर बैलून्स इन स्काई साहस , शांति अविराम प्रगति और विकास का संदेशा लिये कुछ और ऊपर उड चला . आयोजन में बच्चे ड्रिल कर रहे थे और बैंड बजा रहा था इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के।
What’s your Reaction?
+1
+1
1
+1
+1
+1
+1
+1