Monday, December 23, 2024
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सेंट्रल मार्केट: जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई पर चुप्पी

  • सुप्रीम कोर्ट अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार आवास विकास परिषद के अफसरों पर कार्रवाई के भी हैं आदेश

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुपालन के नाम पर सेंट्रल मार्केट का अवैध निर्माण ध्वस्त करने की बात तो शासन प्रशासन के अफसर कर रहे हैं, लेकिन अवैध निर्माणों के जिम्मेदार अफसरों के खिलाफ कार्रवाई की बात पर पूरे सिस्टम को सांप सूंघ गया है। सेंट्रल मार्केट के अवैध निर्माण को जमीदोज करने के आदेश के साथ ही सुप्रीम कोर्ट का यह भी आदेश है कि इस सारे फसाद की जोड़ जो अफसर हैं, मसलन जिनके कार्यकाल में ये अवैध निर्माण हुए उनके कृत्य को अपराध माना जाए।

कानूनी कार्रवाई के अतिरिक्त राज्य सरकार ऐसे अफसरों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई भी अमल में लाए। सेंट्रल मार्केट के अवैध निर्माणों पर सुप्रीम कोर्ट के जिम्मेदार अवासा विकास अफसरों पर कार्रवाई की कोई भी बात करने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पालन करने के नाम पर बात केवल सेंट्रल मार्केट के अवैध निर्माण ध्वस्त करने की की जा रही है। सेंट्रल मार्केट ध्वस्त करने की बात करने वाले सिस्टम को चलाने वाले अफसर आवास विकास अफसरों पर कार्रवाई के सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों भूले बैठे हैं।

ये है पूरा मामला

साल 1984 को आवास विकास परिषद की योजना संख्या 7 में 311 मीटर का आवासीय प्लाट संख्या 661/6 आवंटित हुआ था। यह दो रास्तों का प्लाट था। करीब दो साल बाद यानि 1986 में आवासीय प्लाट पर आगे की तरफ दुकानें बना दी गर्इं और साल 2012 में इस प्लाट के पीछे वाले हिस्से में किशोर वाधवा, विनोद अरोरा आदि ने कांप्लेक्स का काम शुरू करा दिया। व्यापारियों का कहना है कि सेंट्रल मार्केट पर आफत की शुरुआत यहीं से हुई। अवैध निर्माण के ध्वस्त करने के लिए आवास विकास परिषद से अधिकारी आए। उनके साथ मारपीट कर दी गई। मारपीट करने वालों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी गयी।

साल 2014 में हाईकोर्ट की डबल बेंच ने 661/6 को गिराए जाने के आदेश जारी कर दिए। जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट से फरियाद की। 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की डबल बेंच के 2014 के आदेशों पर मुहर लगा दी। मामला सुप्रीम कोर्ट ले जाने का बड़ा नुकसान यह हुआ कि 661/6 तो ध्वस्त होगी ही, इसकी वजह से बाकि 499 व्यापारियों जिन्होंने आवासीय प्लाट पर दुकानें बना दी हैं उन्हें भी बुलडोजर किए जाने के आदेश किए गए हैं। अपने आदेश में कोर्ट ने अवैध निर्माण के लिए जिम्मेदार अफसरों पर भी कार्रवाई की बात कही है।

कोर्ट खुलने का इंतजार

सेंट्रल मार्केट बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक सतीश कुमार व सह संयोजक विजय गांधी और अट्टू का कहना है कि 5 जनवरी के कोर्ट के खुलने के बाद ही कोई रास्ता निकलने की उम्मीद जतायी जा रही है। जो आफत आयी है उससे निजात का रास्ता भी सुप्रीम कोर्ट से ही निकलेगा। विजय गांधी का कहना है कि जिन्हें अवैध निर्माण करा दिया है वो कोई एक रात में नहीं बन गए। सालों में ये तमाम निर्माण हुए हैं। तब क्या अफसर सोए हुए थे, इसलिए कार्रवाई हो तो अफसरों पर भी होनी चाहिए।

तीन उपनिबंधकों के खिलाफ गिर सकती है शासन की गाज

मेरठ: एसएसपी की एसआईटी टीम की जांच में रजिस्ट्री विभाग के तत्कालीन तीन उपनिबंधक दोषी पाए गए हैं। उन्होंने बिल्डरों से सेटिंग करके फर्जी स्टांप पेपरों से तीन साल तक रजिस्ट्री कराई। इसके साथ फर्जी बैनामों को गायब भी करने का प्रयास किया। एसआईटी टीम के नोडल अधिकारी अवनीश सिंह का कहना है कि जांच में रजिस्ट्री विभाग के तीनों उपनिबंधक अधिकारी जांच के गहरे में है। उनकी जानकारी में फर्जी स्टांप का मामला सामने आ गया था। इसके बाद भी वह फर्जी बैनामों से मकानों व प्लाटों की रजिस्ट्री करते रहे।

मेरठ में हुए स्टांप घोटाले की गूंज लखनऊ तक पहुंच चुकी है। मेरठ में स्टांप घोटाला सामने आते ही पूरे प्रदेश में आठ साल पुराने बैनामों की जांच कराई जा रही है। इससे पहले मेरठ में तीन साल पुराने बैनामों की जांच में साढ़े सात करोड़ के फर्जी स्टांप का खुलासा हुआ। इसके बाद पांच साल पुराने बैनामों की जांच फिर से शुरू हो गई है। कुल मिलाकर आठ साल पुराने बैनामों की जांच चल रही है। एआईजी स्टांप ज्ञानेंद्र सिंह ने साढ़े नौ सौ लोगों के खिलाफ स्टांप चोरी का मुकदमा दर्ज कराया है।

स्टांप घोटाले के आरोपियों को पकड़ने के लिए एसएसपी डा. विपिन ताडा ने एसआईटी का गठन किया है। एसआईटी प्रभारी एसपी क्राइम अवनीश कुमार स्टांप घोटाले की जांच कर रहे हैं। जिसमें रोज नए खुलासे हो रहे हैं। स्टांप घोटाले में अब तक 77 से ज्यादा बिल्डरों व कालोनाइजरों के नाम सामने आए हैं। जिन्होंने उपनिबंधक अधिकारियों से सेटिंग करके फर्जी स्टांप से रजिस्ट्री कराई है। एसपी क्राइम अवनीश कुमार का कहना है कि रजिस्ट्री कार्यालय के तत्कालीन तीन उपनिबंधक अधिकारी पर शक गहरा गया है। उनके नाम मुकदमे में शामिल किए जाएंगे। अभी उन्हें अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया गया है।

एआईजी स्टांप का हुआ प्रमोशन कानपुर मंडल डीआईजी स्टांप बने

मेरठ: जिले में साढ़े सात करोड़ का स्टांप घोटाला करने वालों का रैकेट पकड़ने वाले एआईजी स्टांप ज्ञानेंद्र सिंह का प्रमोशन हो गया। वह कानपुर मंडल में डीआईजी स्टांप बनाए गए। उनकी जगह मेरठ में एआईजी स्टांप नवीन शर्मा की तैनाती की गई। नवीन शर्मा कानपुर में सब रजिस्ट्रार थे। वहीं पर उनका प्रमोशन एआईजी स्टांप के पद पर हुआ। स्टांप विभाग ने उन्हें मेरठ का एआईजी स्टांप पद पर तैनात किया है।

मेरठ में साढ़े सात करोड़ का स्टांप घोटाला चल रहा है। शासन से लेकर एसएसपी की एसआईटी व अन्य विभाग की टीम घोटाले की जांच कर रही है, लेकिन अभी तक स्टांप घोटाला पकड़ में नहीं आया है।  बताया गया कि ज्ञानेंद्र कुमार ने सात जुलाई को मेरठ में एआईजी स्टांप के पद पर तैनात हुए। 26 जुलाई को उन्होंने मेरठ में चल रहे नकली स्टांप घोटाला पकड़ा। सारे मामले की जानकारी आईजी स्टांप, स्टांप विभाग के मंत्री को दी। इसके बाद आईजी स्टांप व स्टांप विभाग के मंत्री ने प्रदेश स्तर पर हर जिले में पुराने तीन साल के बैनामों की जांच शुरू कराई। इस दौरान छह उपनिबंध कार्यालय में करीब तीन लाख बैनामों को जांचा गया।

जिसमें साढ़े सात करोड़ के स्टांप पेपर फर्जी मिले। इस मामले में सिविल लाइन थाने में 997 लोगों के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया गया। इसके बाद शासन की एसआईटी जांच, एसएसपी की एसआईटी जांच समेत कई विभाग व शासन स्तर पर भी सारे मामले की जांच चल रही है। यह पता नहीं लग पाया है कि यह फर्जी स्टांप कहां से आया है। स्टांप विभाग ने एआईजी ज्ञानेंद्र कुमार का प्रमोशन करते हुए उन्हें डीआईजी कानपुर मंडल बनाया। उनकी जगह कानपुर स्टांप विभाग में रजिस्ट्रार पद से प्रमोशन से एआईजी स्टांप बने नवीन शर्मा को मेरठ के एआईजी स्टांप पद पर तैनात किया गया है।

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