Monday, July 8, 2024
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चीते का नामीबिया के चीतों को खुला खत!

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अनूप मणि त्रिपाठी |

सबसे पहले सभी जन से हाथ जोड़कर माफी! माफी! माफी! जानता हूं,पत्र देर से लिख रहा हूं। क्या करूं, टाइम ही नहीं मिला। बस यह समझ लो कि सांस लेने की फुरसत ही नहीं थी। आज कुछ टाइम मिला तो लिख रहा हूं। तुम सबको एक बात बताता हूं! जानोगे तो खुशी से झूम उठोगे! यहां हमारी इतनी आवाभगत हुई कि मैं क्या कहूं! मैं तो यहां के पीएम सर का समझो कट्टर भक्त हो गया हूं। और उससे ज्यादा यहां के लोगों का,जिन्होंने ऐसा पीएम अपने लिए चुना। एक महान देश का अतिव्यस्त पीएम अपना बर्थडे न मनाकर हम चीतों की अगवानी कर रहा है। कोई और देश होता तो कोई टुच्चा-सा अधिकारी आनन-फानन में शिफ्ट करा देता और किसी को पता भी नहीं चलता। घंटे-दो घंटे में काम फिनिश। लेकिन नहीं, यहां के लोगों की कर्मठता देखिए कि हमारे आने की खबर पूरे देश में ही नहीं विश्व में फैल गई। अगर एलियंस होते होंगे तो मैं हंड्रेड टेन पर्सेंट श्योर हूं कि उन्हें भी हमारे आने की खबर मिल गई होगी।

एक बात बताऊं तुम लोगों को… हंसना नहीं! शुरू-शुरू में तो पीएम सर को मैं वाइल्ड लाइफ फोटोग्राफर समझा। आदरणीय पीएम सर हम सब जन की खुद फोटो उतार रहे थे और मीडिया आरती। लेकिन जब चहेरे की चमक देखी तो मैं देखता रह गया। वे चिर युवा जैसे दिख रहे थे और उनके सामने हम सत्तर साल के लग रहे थे! मैं सोच भी नहीं सकता था कि हमारे जैसे तुच्छ प्राणी के लिए कोई पीएम इतना समय देगा। खासतौर से तब जब देश इतना बड़ा हो और जहां की जनसंख्या एक सौ तीस करोड़ से ज्यादा हो!

अभी तुम लोग सब कैसा है! सब मस्त न!
एक बात बताऊं! ए तुम लोग जलना नहीं! हैं!

वो उर्दू में बोलते हैं न, फकत…तो हम फकत चीता नहीं रहे, वो शुद्ध हिंदी में बोलते हैं न, देव तुल्य…तो हम देव तुल्य हो गए। यहां अतिथि को देवता मानते हैं। पर यहां के अस्सी करोड़ गरीब नागरिकों को क्या मानते हैं, अपने को नहीं पता। कोई बताया भी नहीं इधर। पता न होने से अपने को कोई हर्जा भी नहीं! अतिथि का दर्जा पाकर अपन बहुत खुश हैं। नामीबिया के जंगलों की कसम! सच-सच कहना तुम सब! यह सब जानकर अब तुम लोगों का मन कर रहा होगा यहां आने का! क्यों है न!

उधर क्या चल रहा है तुम लोगों का! इधर तो सब मजे में हैं। बस एक बात की दिक्कत है। यहां पार्क के पास हमें बहुत आदिवासी दिखते हैं। वे भूखे लगते हैं। कमजोर दिखते हैं। उनको देखकर लगता है कि हमारे लिए जो भोजन का प्रबंध किया गया है, वो उनको दे दूं। पास जाकर जब उनके चहेरे को देखता हूं तो जी भर आता है। दया आ जाती है। मन करता है कि चीतल को छोड़ इनको ही अपना भोजन बना लूं। जितना पैसा हमारे ऊपर खर्च किया गया है, उतने में इनका पुनर्वास हो जाता! देखो न कहां कि फालतू बात लेकर मैं बैठ गया!

जानते हो तुम सब! सुनकर तुम्हारी छाती चौड़ी हो जाएगी!

यहां हम इतने वीआईपी हैं कि प्राइवेसी नहीं मिलती। देवता तुल्य पीएम से लेकर पब्लिक तक सब हम में खूब इंटरेस्ट ले रहे। शायद इसी वजह से कुछ लोग हम से जलने भी लगे हैं। कल ही किसी को कहते हुए यह सुना कि काले धन की जगह हमें लाया गया है। भगोड़ों को न लाकर तेज दौड़ने वालो को लाया गया है। कुछ कह रहे थे कि आजकल रुपया बहुत कमजोर हो गया है। उसको वीआईपी ट्रीटमेंट की जरूरत है। जो भी हो, हम क्या कर सकते हैं! हम तो अभी परदेशी हैं, जो भी करना होगा यहां के नागरिकों को करना होगा! रुपया चाहे कमजोर होता हो, मगर हम यहां दिनोंदिन मजबूत हो रहे हैं।

अरे! एक बात तो बताना भूल ही गया!

यहां हम आठ चीतों को नए नाम दिए गए। मेरा नाम अमृत, गोलू का नाम उत्सव, छोटू का नाम गौरव। मुनिया का नाम प्रगति। बच्ची का नाम अच्छी। झुलनी का नाम गरिमा। कनिया का नाम संस्कृति और मुन्नी का नाम उन्नति हो गया है।
यहां सब अच्छा ही अच्छा है। मेरी मानो तो तुम सब भी यहां आ जाओ! अच्छा रहेगा! यहां के पीएम सर बहुत अच्छे हैं। उनकी कृपा से हम सब अच्छे हैं। बाकी सब अच्छा है। तुम सब अपना खयाल अच्छे से रखना। हमारा खयाल रखने के लिए यहां की पूरी मीडिया है।
अच्छा,अब लिखना बंद करता हूं।
बाय!


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