आज हम एक ऐसे दौर में पहुंच गए हैं, जहां जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बनती जा रही है और इसकी परिणीति हम सबके सामने है। जलवायु परिवर्तन के लिए बच्चे सबसे कम जिम्मेदार हैं, लेकिन वे ही इसका सबसे अधिक कुप्रभाव झेल रहे हैं और आने वाले दिनों में भी झेलेंगे, लेकिन अफसोस की भारत जैसे देश में जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया जाता है। हमारे देश में अब तक जलवायु परिवर्तन से संबंधित कोई कानून नहीं बनाया गया है। यूं तो हमारे देश की राजनीति में कई उतार चढ़ाव आए, लेकिन भारतीय राजनीति की विडम्बना देखिए कि वह आज भी जाति धर्म के फेर में ही उलझी हुई है। राजनेताओं के लिए पर्यावरण संकट कभी मुद्दा ही नहीं रहा और शायद इसीलिए भी जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न संकट विकराल हो चला है। जलवायु परिवर्तन ने न केवल हमारे वर्तमान बल्कि हमारे आने वाले भविष्य को भी संकट में डाल दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण तापमान तेजी से बढ़ रहा है, जिससे मां की कोख में पल रहा बच्चा तक सुरक्षित नहीं है। आज समूचे विश्व में बढ़ते तापमान के चलते समयपूर्व बच्चों के जन्म का खतरा कई गुना बढ़ गया है। हालिया अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह दावा किया है कि तापमान के बढ़ने से न केवल नवजात शिशुओं बल्कि भ्रूण में पल रहे बच्चे तक के प्राण संकट में हैं।
उल्लेखनीय हो कि प्रो ग्रेगरी वेलेनियस और प्रो अजेतियां वेंसीलिक का कहना है कि तेजी से बढ़ रही गर्मी तूफान और जंगलों की आग से निकलते धुएं से न केवल समयपूर्व जन्म का खतरा बढ़ा है, बल्कि बच्चों में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। एक आंकड़े की बात करें तो 10 लाख अमेरिकी गर्भवती महिलाओं पर किए अध्ययन से यह पता चला है कि समय से पहले जन्म के 16 फीसदी मामले उन क्षेत्रों के हैं, जहां गर्मी अधिक थी। वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों में भी यह बात कही गई है कि हर साल करीब 1.5 करोड़ बच्चे समय से पहले ही जन्म ले लेते हैं। 2 करोड़ नवजात बच्चों का वजन जन्म के समय सामान्य से कम रहता है। ऐसे में यह कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि मानव के बढ़ते लालच ने पर्यावरण प्रदूषण की समस्या को जन्म दिया है, जिसका दुष्परिणाम बच्चों को भुगतना पड़ रहा है। आज देश मे कुपोषण चरम पर है। ऐसे में बढ़ता जलवायु संकट कुपोषण की समस्या को और कई गुना बढ़ा देगा। जिसका सबसे ज्यादा असर बच्चों के स्वास्थ्य पर ही होगा।
कहते हैं बच्चे देश का भविष्य होते हैं, जब वही गंभीर बीमारियों का सामना करने को मजबूर होंगे तो फिर देश का विकास संभव नहीं हो सकेगा। ऐसे में कितने आश्चर्य की बात है कि बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण दिल्ली जैसे शहरों में आक्सीजन बार खोले जा रहे हैं, जहां लोग पैसे देकर प्रदूषण रहित आक्सीजन ले रहे हैं। कोरोना के भयावह दौर में आॅक्सीजन की किल्लत से बेमौत मौतों को भूलना किसी के लिए भी संभव नहीं। इतना ही नहीं, बढ़ते प्रदूषण से अभी भी सबक नहीं लिया तो वह दिन दूर नहीं जब मानव साफ हवा के लिए तरस जाएगा। वायु प्रदूषण एक गंभीर समस्या है, जिससे भारत में प्रतिवर्ष 16 लाख से ज्यादा लोग मौत के आगोश में समा जाते हैं।
फिर भी विडम्बना देखिए कि गाड़ी से निकलने वाले धुएं से सबसे ज्यादा प्रभावित सड़क किनारे फुटपाथ पर रेहड़ी लगाने वाले गरीब मजदूरों को चुकानी पड़ती है। वैसे एक बड़ी अच्छी कहावत है कि करे कोई और भरे कोई और…! वास्तव में आज के दौर में हो भी यही रहा है और बढ़ते वायु प्रदूषण के कारण उपजा जलवायु संकट भी कहीं न कहीं अमीरों की ही देन है, जिसकी सजा अब मासूम और शोषित वर्ग को चुकानी पड़ रही है।
वहीं अभी हाल ही में यूनिसेफ ने भी बढ़ते जलवायु संकट पर चिंता व्यक्त की है। यूनिसेफ ने अपनी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया है कि दुनिया के करीब एक अरब से ज्यादा बच्चों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। जिसमें भारत, पाकिस्तान बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देशों पर जलवायु संकट का अधिक खतरा होने की बात कही गई है। यूनिसेफ द्वारा क्लाइमेट रिस्क इंडेक्स भी जारी किया गया है। जिसमे बाढ़, लू, चक्रवात और वायु प्रदूषण को शामिल किया गया है। ऐसे में यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रगतिशील दौर में बच्चे जहां गंभीर बीमारियों का सामना कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ कोरोना का बढ़ता खतरा बच्चों से उनका बचपन छीन रहा है।
आज बच्चे डर के माहौल में जीने को मजबूर हैं, जिसका सीधा असर न केवल उनके शरीर पर बल्कि मन पर भी पड़ रहा है। यही वजह है कि वर्तमान दौर में बच्चे मानिसक अवसाद और मोटापे के शिकार हो रहे हैं। इसके अलावा रही सही कसर जलवायु परिवर्तन पूरा कर ही रहा है। कुल-मिलाकर देखें तो आज बचपन दो तरफा मुसीबतों से घिरा हुआ है और यही बचपन अगर आगामी भविष्य का आधार है। फिर उसी आधार को कमजोर करके क्या हम अपने देश को शिथिल और अवन्नति की ओर ले जाना चाहते हैं? इस पर हमें जल्द विचार करना होगा। वरना काफी देर हो चुकी होगी। वैसे मालूम हो कि यूनिसेफ ने भी इस बात को समझ लिया है कि वैश्विक स्तर पर बच्चे जलवायु परिवर्तन की भयंकर चपेट में हैं।
तभी उसका कहना है कि अगर अभी कदम नहीं उठाए गए तो जलवायु परिवर्तन से दुनिया के बच्चों द्वारा पहले से झेली जा रही असमानता और बढ़ जाएगी और आने वाली पीढ़ियां भी इससे प्रभावित होंगी। ऐसे में वक्त की नजाकत देश की रहनुमाई व्यवस्थाओं को भी समझना होगा, नहीं तो वादों और दावों से हकीकत नहीं बदलती और सस्टेनेबल डेवलेपमेंट के 17 सूचकांक जिनमें जलवायु परिवर्तन आदि विषय शामिल हैं, उसमें हमारी क्या स्थितियां, उससे वाकिफ हर कोई है।