Sunday, January 26, 2025
- Advertisement -

गतिविधियों में उलझे बच्चे

BALWANI

दिनेश प्रताप सिंह ‘चित्रेश’

सोशल मीडिया और आॅनलाइन गेमिंग के अत्यधिक उपयोग से बच्चों और किशोरों में न केवल मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि शारीरिक व सामाजिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। एक आंकड़े के अनुसार, देश में उनतालीस करोड़ अस्सी लाख बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि नौ से सत्रह वर्ष की आयु के साठ प्रतिशत बच्चे आनलाइन गतिविधियों में तीन घंटे से अधिक समय व्यतीत करते हैं।

आजकल जब हम आॅनलाइन की बात करते हैं, तो हमारा आशय इंटरनेट से जुड़े सोशल मीडिया से होता है। आज की तारीख में यह अत्यन्त कम समय में लोकप्रिय हुआ एक सशक्त माध्यम है। सन1983 में इंटरनेट की खोज हुई और सन 1991 में वर्ल्ड वाइड वेब को आम जनता के लिए खोल दिया गया। सन 1995 में यह भारत में भी प्रयोग में लाया जाने लगा। इंटरनेट के आने से ज्ञान-विज्ञान के जिज्ञासुओं का बड़ा लाभ हुआ। इन दिनों आनलाइन शॉपिंग, चिकित्सकीय सलाह, भुगतान, टिकिट, शिक्षा, आवेदन, एफआइआर, खेल-मनोरंजन, यहाँ तक कि पूजा-प्रसाद की भी आनलाइन व्यवस्था हो चुकी है। यहाँ फेसबुक, व्हाट्सएप, स्नैपचैट, इंस्टाग्राम, एक्स, यूट्यूब जैसे कई प्लेटफार्म हैं, जहां बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक देर-देर तक जूझते रहते हैं।

स्मार्ट फोन आने के बाद आनलाइन के जरिए जिंदगी बहुत सरल हो गई है और लोगों के जीवन की रफ्तार कई गुना बढ़ चुकी है। बीते एक दशक में मोबाइल ने हमारी जिंदगी में अभूतपूर्व परिवर्तन ला दिया है। किन्तु इसके कारण हमारे सामने कई चुनौतियां भी आ खड़ी हुई हैं। खासकर अबोध और अवयस्क बच्चों के जीवन में सोशल मीडिया की दखल ने बड़ा नकारात्मक असर डाला है। सन 2020 और 2021 के सालों में कोरोना महामारी के बीच सबसे अधिक विपरीत असर किसी पर पड़ा है, तो वह स्कूली शिक्षा है। महामारी के भीषण प्रकोप वाले दिनों में बचपन की गतिविधियां और शिक्षा व्यवस्था काफी हद तक प्रभावित हुई। मोबाइल से दूर रहने और खेलकुद में व्यस्त रहने वाले बच्चों को मजबूरन घर के अंदर बैठना पड़ा।

इन्हीं दिनों उन्हें मोबाइल पर आॅनलाइन पढ़ाई और वीडियो गेम खेलने की सुविधा मिल गई। महामारी कम समय की होती, तो शायद उनके जीवन और व्यवहार में मोबाइल इतनी गहरी पैठ न बना पाता। किंतु महीनों तक चलने वाले लॉकडाउन के कारण बच्चों को मोबाइल की ऐसी लत लग गयी कि वह अब पुरानी जीवन शैली में लौटना ही नहीं चाहते हैं। यहां तक कि छुट्टियों में भी समय व्यतीत करने के लिए खेल के मैदान में जाने के बजाय वह मोबाइल में गेम खेलना और वीडियो देखना पसंद करते हैं।

पहले बच्चों को कोई जानकारी चाहिए होती थी, तो वह किताबों में खोजते थे और यह सूचना उनकी स्मृति का हिस्सा बन जाती थी, लेकिन अब एक क्षण के अंदर यह बच्चों को मोबाइल के गूगल में मिल जाती है। वह इस जानकारी का तात्कालिक उपयोग करके भूल जाते हैं। मोबाइल सदैव उनको उपलब्ध रहता है, इसलिए वह इसे याद रखने की जरूरत ही नहीं समझते हैं। इससे बच्चों की स्मृति पर बहुत बुरा असर हो रहा है। बच्चों में कल्पना, चिन्तन, तर्क और कार्य-कारण सम्बन्ध की अवधारणा के निर्माण में भी यह बाधक बन चुका है। मोबाइल के दीवानों की संवेदना का धरातल भी उजाड़ होने लगा है। अनिद्रा, अवसाद, चिड़चिड़ापन और मानसिक अस्थिरता का स्तर भी बच्चों में बढ़ता जा रहा है।

वास्तव में सोशल मीडिया और आॅनलाइन गेमिंग के अत्यधिक उपयोग से बच्चों और किशोरों में न केवल मानसिक स्वास्थ्य, बल्कि शारीरिक व सामाजिक समस्याएं भी उत्पन्न हो रही हैं। एक आंकड़े के अनुसार, देश में उनतालीस करोड़ अस्सी लाख बच्चे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते हैं। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण का निष्कर्ष है कि नौ से सत्रह वर्ष की आयु के साठ प्रतिशत बच्चे आनलाइन गतिविधियों में तीन घंटे से अधिक समय व्यतीत करते हैं। यह बच्चे समाज स्वीकृत व्यवहार और अलग-अलग व्यक्तियों व समुदाय के बीच समायोजन के मामले में फिसड्डी सिद्ध हो रहे हैं। इनमें आभासी संबंधों के समक्ष वास्तविक संबंधों को कमतर समझने की प्रवृति भी परिलक्षित होने लगी है। आॅनलाइन धर्मांधता और कट्टरपन भी फैलाया जा रहा है। कई बार डिजिटल दुनिया में रमे बच्चे साइबर ठगी की चपेट में आते देखे जाते हैं। यह धीरे-धीरे उद्दंड, नृशंस, आक्रामक और असामाजिक होने लगते हैं। बच्चों में हिंसा और अपराध का बीजारोपण एक नई सामाजिक आपदा बन रही है।

पिछले दिनों आस्ट्रेलिया में सोलह साल तक के बच्चों के लिए सोशल मीडिया का इस्तेमाल प्रतिबंधित करने का विधेयक पास किया गया है। आस्ट्रेलियाई प्रधान मंत्री एंथनी अल्बनीज के इस कदम को व्यापक जन समर्थन प्राप्त हो रहा है। भारतीय अभिभावक भी इसका उल्लासपूर्ण स्वागत कर रहे हैं। उसके पीछे देश में सोशल मीडिया से बच्चों के कार्य-व्यवहार में हो रहे नकारात्मक परिवर्तन का ही असर है। शिक्षाशास्त्री और समाज विज्ञानी काफी समय से इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाने की आवाज उठाते रहे हैं। निश्चय ही अब पानी सिर के ऊपर पहुँच जाने की स्थिति बनने लगी है। बदलाव की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है। देश में वर्ष 2023 में ‘डिजिटल पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन एक्ट’ लाया गया था, जिसके तहत नाबालिगों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट खोलने के लिए माता-पिता अथवा अभिभावक की सहमति अनिवार्य की गई है। किन्तु यह कानून पूर्णरूपेण प्रभावी नहीं हो पाया है।

निश्चय ही स्कूल, माता-पिता और नीति-नियंता सबको तत्काल प्रभाव से इसके लिए कमर कसनी होगी। कुछ ऐसे प्रावधान बनाए ही जाने चाहिए, जिससे डिजिटल प्लेटफार्म अपने कंटेन्ट की जवाबदेही से न बच सकें। चीन, अमेरिका, फ्रांस जैसे देशों में भी सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के कानून बन चुके हैं। किन्तु यह आस्ट्रेलिया के कानून जैसे सख्त नहीं हैं। अपने देश में भी सख्त और जवाबदेही वाले कानून की जरूरत है। अभी प्राथमिकता के स्तर पर बच्चों को आभासी दुनिया से निकल कर वास्तविक संसार में तत्काल ले आने की जरूरत है। उनको पुस्तक पढ़ने की तरफ प्रेरित किये जाने की आवश्यकता है। उन्हें रोचक परीकथाएं, विनोदपूर्ण कहानियाँ, उल्लासमयी कविताएं और वैज्ञानिक उपन्यास दिये जाने चाहिए ।

आॅनलाइन गूगल मीट कार्यक्रमों के जरिए उनको पौध रोपण, चित्रकारी, सुलेखन, कविता पाठ, श्लोक वाचन, कहानी लेखन और पर्यावरण जैसे विषयों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है। छत पर पक्षियों के लिए दान-पानी रखना, फूल-पौधों की देखभाल, अपने शहर और गाँव के इतिहास की जानकारी देने का प्रयास किया जा सकता है। कुछ दिनों के लिए अभिभावक भी खुद को मोबाइल, टीवी, लैपटॉप वगैरह से दूर कर लें, तभी यह संभव हो पाएगा।

की अलमारियों को एक दूसरे की सीध में रखा जाए तो उनकी लंबाई 35० मील होगी।
कुछ जीव-जंतुओं को प्राकृतिक विपदाओं का पूवार्भास हो जाता है। उदाहरण के लिए जैलीफिश तूफान आने के 1०-15 घंटे पहले किनारा छोडकर गहरे समुद्र में चली जाती हैं। जापानी लोग घरेलू मछलीघरों में ऐसी मछलियां पालते हैं जो भूकंप अपने से पूर्व ही उछल-कूद मचाना शुरू कर देती हैं। गहरे समुद्र में रहने वाली मछलियां किसी भी प्राकृतिक आपदा की आशंका होने पर सतह पर आ जाती है।

पृथ्वी लगभग 4 अरब 6० करोड़ वर्ष पुरानी है।

एक बार के भोजन को पूरी तरह पचाने में शरीर को लगभग 48 घंटे लग जाते हैं।
पतंगा कुछ नहीं खा सकता क्योंकि बेचारे का न तो मुंह होता है और न ही पेट।
विवाह करने में सियाम के राजा मोगुल का रिकार्ड आज तक कोई नहीं तोड़ पाया है। उसने न केवल 9००० विवाह किए, बल्कि 9००० रानियों को लगातार अंत तक अपने हरम में भी रखा।

काक्रोच सिर कट जाने के बावजूद भी कई हफ्ते तक जीवित रह सकते हैं।

दुनिया का सबसे विशाल महल चीन का शाही महल है जो बीजिंग के बीच 178 एकड़ भूमि पर स्थित है।

दुनियां की सबसे लंबी सुरंग लंदन मोर्डन से ईस्ट फिंचले के बीच बनी हुई है, जिसमें से वाहन गुजरते हैं। इसकी लंबाई 17 मील 528 गज है।

सउदी अरेबिया के शाही खानदान में इस समय 5००० राज कुमार तथा इतनी ही राजकुमारियां हैं। सन् 1932 से 1953 में अपनी मृत्यु तक शासन करने वाले सुल्तान अब्दुल अजीज इब्न साऊद के हरम में 3०० पत्नियां थी।

लुई चौदहवें ने अपने सम्पूर्ण जीवनकाल में केवल तीन बार स्नान किया वह भी अपनी मर्जी से नहीं।

janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
spot_imgspot_img

Subscribe

Related articles

भाकियू कार्यकर्ताओं का किनौनी मिल पर हल्ला बोल

हजारों की संख्या में पहुंचे किसान, वाहनों से...

खांसी में खून आने को हल्के में ना लें: डॉ वीरोत्तम तोमर

जनवाणी संवाददाता | मेरठ: प्रसिद्ध छाती व सांस रोग विशेषज्ञ...

भगवानपुर चट्टावन के युवक की संदिग्ध हालात में मौत, हत्या का आरोप, पड़ताल में लगी पुलिस

जनवाणी संवाददाता | किठौर: मुंडाली के भगवानपुर चट्टावन निवासी युवक...

दैनिक जनवाणी की तिरंगा बाइक रैली में उमड़ी भीड़, देशभक्ति का दिखा जज्बा

राज्यमंत्री सोमेंद्र तोमर, महिला आयोग की सदस्य मीनाक्षी...
spot_imgspot_img

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here