खरबूजा, जो ककड़ी परिवार का सदस्य है, भारत में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। इसकी खेती मुख्य रूप से शुष्क मौसम में, यानी जायद के मौसम में की जाती है। देश के उत्तरी हिस्सों जैसे पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और बिहार के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में खरबूजा की खेती बहुतायत में होती है। यह फल मीठा होता है, जिसके कारण इसे ताजे रूप में ही खाया जाता है। खरबूजे में उच्च मात्रा में कार्बोहाइड्रेट, विटामिन ए और सी पाए जाते हैं। इसके बीजों में 40-45 प्रतिशत तक तेल होता है। औषधीय दृष्टिकोण से भी खरबूजा बहुत महत्वपूर्ण है।
उन्न्त किस्में
हरा मधू: यह देरी से पकने वाली किस्म है। इसके फल का आकार गोल और बड़ा होता है। फल का औसतन भार 1 किलोग्राम होता है। छिल्का हल्के पीले रंग का होता है। टी एस एस की मात्रा 13 प्रतिशत होती है और स्वाद में बहुत मीठा होता है। बीज आकार में छोटे होते हैं। यह सफेद रोग को सहनेयोग्य होता है। इसकी औसतन पैदावार 50 क्विंटल प्रति एकड़ होता है।
पंजास सुनहरी : यह हरा मधु किस्म के 12 दिन पहले पक जाती हैं फल का आकार गोल, जालीदार छिल्का और रंग हल्का भूरा होता है। इसका औसतन भार 700-800 ग्राम होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। टी एस एस की मात्रा 11 प्रतिशत होती है। यह फल की मक्खी के हमले को सहनेयोग्य है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
पंजाब हाइब्रिड : यह जल्दी पकने वाली किस्म है। इसका फल जालीदार छिल्के वाला हरे रंग का होता है। इसका आकार मोटा और रंग संतरी होता है। खाने में रसीला और मजेदार होता है। इसमें टी एस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है और औसतन भार 800 ग्राम होता है। यह फल वाली मक्खी के हमले का मुकाबला करने वाली किस्म है। इसकी औसतन पैदावार 65 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।
एमएच-51: यह किस्म 2017 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 89 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसके फल गोल, धारीदार और जालीदार होते हैं। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12 प्रतिशत होती है।
एमएच-27: यह किस्म 2015 में जारी की गई है। इसकी औसतन पैदावार 88 क्विंटल प्रति एकड़ होती है। इसमें सुक्रॉस की मात्रा 12.5 प्रतिशत होती है।
जलवायु और मिट्टी
खरबूजा एक शुष्क जलवायु में उगने वाला पौधा है। इसकी खेती भारत के शुष्क और अर्ध-शुष्क क्षेत्रों में विशेष रूप से जायद के मौसम में होती है। अच्छी उपज के लिए बालू-दोमट मिट्टी आदर्श मानी जाती है, जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए, क्योंकि यह पौधा अधिक नमी को पसंद नहीं करता है। मिट्टी का पीएच मान 6-7 होना चाहिए।
खेत की तैयारी
खरबूजे के बीजों की बुवाई से पहले खेत की अच्छी तरह से तैयारी करनी चाहिए, ताकि बीजों की वृद्धि अच्छी हो सके। खेत को 2-3 बार हैरो या कल्टीवेटर से समतल किया जाना चाहिए। अंतिम जुताई के समय 4-5 टन गोबर की खाद को मिट्टी में अच्छे से मिला लेना चाहिए। उत्तरी भारत में बुवाई फरवरी के अंत से मार्च तक की जाती है, जिसे जायद का मौसम कहा जाता है।
बीज की मात्रा और बुवाई का तरीका
खरबूजे की बुवाई के लिए 600-800 ग्राम बीज प्रति एकड़ का उपयोग किया जाता है। बुवाई से पहले खेत की नमी की जांच करना जरूरी है। बीजों को खेत में क्यारियों में 0.5-1 मीटर की दूरी पर बोना चाहिए, जिससे पौधों के लिए पर्याप्त जगह मिल सके। 23,334 पौधों के उत्पादन के लिए लगभग 250 प्रोट्रे की आवश्यकता होती है, जो एक हेक्टेयर के लिए ऊंचे बिस्तर वाली एकल पंक्ति प्रणाली में 1.5 मीटर गुणा 30 से.मी. की दूरी पर आवश्यक होते हैं।
30 से.मी. के अंतराल पर 120 से.मी. चौड़ाई वाले बिस्तरों को उठाएं और पार्श्वों को प्रत्येक बिस्तर के केंद्र में रखें।
सीधी बुआई या रोपाई 30 से.मी. की दूरी पर चिह्नित रस्सियों का उपयोग करके, पार्श्व के साथ 1.5 मीटर की दूरी पर और उठाए गए बिस्तर एकल पंक्ति प्रणाली में 30 से.मी. के अंतराल पर की जाती है।