तैलंग स्वामी एक उच्च कोटि के संत हुए है। उनके विषय में माना जाता है कि वे 280 वर्षों तक पृथ्वी लोक पर रहे। तैलंग स्वामी का जन्म दक्षिण भारत के विजना जिले होलिया ग्राम में हुआ था। बचपन से उनमें ईश्वर के प्रति आसक्ति थी। एक बार स्वामीजी हिमालयके क्षेत्र की यात्रा पर थे। एक वन में रुचिकर स्थान देखकर वे वहां समाधि में बैठ गए। यह स्थान नेपाल राज्य के अधीन था। वहां उस वन में एक गुहा (गुफा) थी। स्वामीजी कभी गुहा के बाहर रहते तो कभी अंदर रहते ।
एक बार नेपाल नरेश अपने सैनिकों और सेनापति के साथ आखेट पर निकले। सेनापति ने एक बाघ पर गोली चलाई। गोली लगते ही वह बाघ आगे भाग गया। बाघ का पीछा करते हुए सेनापति, स्वामीजी की गुहा के निकट आए तो देखा कि बाघ स्वामीजी के पैरों के समीप लेटा है और स्वामीजी उसकी पीठ पर हाथ फेर रहे हैं। घायल बाघ स्वभावत: विक्षिप्त हो अत्यन्त क्रूर और हिंसक हो जाता है। किंतु सेनापति ने देखा कि वह स्वामीजी के पास भीगी बिल्ली के समान सो रहा है।
सेनापति के साथ सभी लोग प्रणाम कर स्वामीजी के पास खडे हो गए। स्वामीजी ने कहा, हिंसा से प्रतिहिंसा जन्म लेती है। मैं हिंसक नहीं हूं, इसीलिए यह मेरे पास आ कर अहिंसक हो गया। नेपाल नरेश ने जब गणपति स्वामीके विषयमें सुना तो वे ढेर सारे हीरे-रत्न इत्यादि लेकर स्वामीजी के दर्शन के लिए पहुंचे। स्वामीजी ने कहा, मुझे इन सबकी आवश्यकता नहीं है। इन्हें निर्धनों में बांट दो! संत दो प्रकार के होते है : एक वे जो स्वयं की साधना पर ध्यान केंद्रित करते हैं एवं समाजाभिमुख नहीं रहते हैं। दूसरे संत समाजाभिमुख होते हैं वे समाज को धर्मशिक्षण देते हैं और शिष्य की आध्यात्मिक प्रगति हेतु विशेष प्रयास करते हैं।
संकलन : राजेंद्र कुमार शर्मा