Monday, May 12, 2025
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कांग्रेस के भितरघाती और राहुल

Samvad 41कांग्रेस ने पिछले दिनों इंडिया गठबंधन को तोड़ने के बाद अब पार्टी में भितरघात करने वालों को हटाने का काम शुरू कर दिया है। इसके लिए कांग्रेस ने पिछले साल जनवरी में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव के बाद चुनाव हारने के बाद और साल 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों से पहले ही मध्य प्रदेश से तकरीबन 79 बागियों और भितरघातियों को पार्टी से बाहर निकाल दिया था। इसके बाद इस साल के शुरू में नागपुर में भी पार्टी ने 60 भितरघातियों को बाहर निकाला था। ऐसा कहा जा रहा है कि इन भितरघातियों और बागियों में कई बड़े नेता और कई पुराने समय से कांग्रेस की सेवा में लगे नेताओं के बच्चे थे, जिन पर बड़े-बड़े पद भी थे। अब जानकारी सामने आ रही है कि कांग्रेस बागियों और भितरघातियों की पहचान कर रही है। राजनीति के जानकार इसे राहुल गांधी का सफाई अभियान बता रहे हैं, जिससे कांग्रेस के नेताओं में हड़कंप मचा हुआ है।

मध्य प्रदेश के बाद नागपुर और अब पूरे देश में कांग्रेस द्वारा शुरू किए गए इस सफाई अभियान में कितने नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा, इस बारे में तो कोई बड़ी जानकारी सामने नहीं आ सकी है, लेकिन ऐसा कहा जा रहा है कि इस सफाई अभियान के पीछे कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मंजूरी है और वो किसी भी ऐसे नेता को अब कांग्रेस में नहीं रखना चाहते, जो कि कांग्रेस में रहकर दूसरी पार्टियों के लिए काम कर रहे हैं, जिसमें जासूसी से लेकर कांग्रेस को चुनाव में हरवाने तक की उनकी मुहिम को लेकर पार्टी में अंदर ही अंदर चर्चा बहुत दिनों से चल रही है। ऐसे में उन नेताओं का निकाला जाना तय माना जा रहा है, जो कांग्रेस की गुप्त नीतियों की जासूसी करते हैं। हालांकि लोग कह रहे हैं कि कांग्रेस सभी बागियों और भितरघातियों को बाहर का रास्ता दिखा पाएगी, ये मुश्किल लग रहा है और इतना आसान भी नहीं है।

नागपुर में कांग्रेस ने जिन 60 नेताओं को बाहर रास्ता दिखाया, उसकी कहानी शुरू हुई संघ प्रमुख मोहन भागवत के यह कहने के बाद कि देश की असली आजादी राम मंदिर के उद्घाटन की तारीख है। इसे लेकर कांग्रेस ने नागपुर में इसी साल बीती 19 जनवरी को राष्ट्रीय युवा कांग्रेस प्रमुख उदयभानु ने अपने सभी नेताओं और कार्यकर्ताओं को लेकर विरोध-प्रदर्शन करते हुए रैली निकाली थी। संघ प्रमुख के ब्यान के विरोध स्वरूप निकाली गई इस रैली को कांग्रेस ने संघ के नागपुर स्थित मुख्यालय तक निकाला। इस विरोध-प्रदर्शन में महाराष्ट्र के यूथ कांग्रेस प्रेजिडेंट कुणाल रावत और बड़ी संख्या में कार्यकर्ता व पदाधिकारी शामिल थे। लेकिन तकरीबन 60 से ज्यादा कांग्रेसी नेता और पदाधिकारी गायब रहे। ऐसा कहा जा रहा है कि ये नेता न सिर्फ कांग्रेस में भितरघात कर रहे थे, बल्कि भाजपा के लिए काम कर रहे थे और कांग्रेस की पल-पल की जानकारी भाजपा और संघ को पहुंचा रहे थे। जैसे ही ये बात कांग्रेस हाईकमान यानि कांग्रेस अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी को पता चली, उन्होंने तत्काल एक्शन लेते हुए करीब 60 भितरघातियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया। कांग्रेस ने जिन नेताओं के खिलाफ ऐक्शन लिया, उनमें जिला अध्यक्ष, उपाध्यक्ष से लेकर करीब 8 महा सचिव और 20 सचिव स्तर के नेता शामिल हैं। इन युवा नेताओं में वरिष्ठ कांग्रेसी नेता विजय वड्डेट्टीवार की बेटी शिवानी वडेट्टीवार और नागपुर पश्चिम से कांग्रेस विधायक विकास ठाकरे का बेटा केतन ठाकरे जैसे बड़े नाम तक शामिल हैं। इन निकाले गए नेताओं में कई तो चर्चित नाम वाले पदाधिकारी थे।

अब सवाल ये हैं कि क्या कांग्रेस बागियों और भितरघातियों की पहचान कर पाएगी? क्या पिछले 10 सालों से दिल्ली तक में बुरी तरह शून्य पर ही रहकर चुनावों में कांग्रेस की हार की वजह भी यही बागी और भितरघाती ही हैं? क्या कांग्रेस को भितरघातियों को बाहर कर देने भर से चुनावों में बढ़त या जीत मिलने लगेगी? ऐसे और भी बहुत से सवाल हैं, जिनका जवाब तो वक्त आने पर ही मिल सकेगा, लेकिन ये जरूर है कि राहुल गांधी के तेवर पहले से बहुत पैने हो चुके हैं और वो जमीन पर उतरकर जिस प्रकार से मेहनत कर रहे हैं, उससे जाहिर है कि कांग्रेस की डूबती कश्ती को कहीं न कहीं पार लगने की उम्मीद जगी है और इसमें कोई दो-राय भी नहीं कि ये राहुल गांधी और उनके साथ-साथ उनकी बहन प्रियंका गांधी की ही मेहनत का नतीजा है कि कांग्रेस ने पिछले साल यानि साल 2024 के लोकसभा चुनाव में उससे पहले के दो लोकसभा चुनावों से कहीं बेहतर किया था।

दरअसल, देखा जाए, तो भाजपा में आज बहुत से नेता कांग्रेस से ही गए हुए हैं, जिनमें ज्योतिरादित्य सिंधिया और दिवंगत प्रणव मुखर्जी जैसे बड़े नेता भी हैं। और कहीं न कहीं कांग्रेस में भितरघातियों और बागियों के चलते कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, पंजाब, राजस्थान और महाराष्ट्र में सत्ता गंवाई है। हालांकि उसने हिमाचल प्रदेश में भाजपा से सत्ता वापस लेने में पिछली बार कामयाबी भी हासिल की, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साल 2014 में सत्ता के आने के बाद कांग्रेस ने सत्ता गंवाई ज्यादा राज्यों में है। इसकी वजह सिर्फ कांग्रेस के भितरघाती और बागी नेता ही नहीं हैं, बल्कि वो नेता भी हैं, जो राज्यों में अपनी चलाते हैं। मसलन, मध्य प्रदेश में कमलनाथ ने अपनी चलाई। मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में ये तक कहा जाने लगा था कि कमलनाथ कमल खिलाएंगे और वहां भी कांग्रेस हार गई। इसके बाद हरियाणा में भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने अपनी चलाई और कुमारी शैलजा को चुनाव से तकरीबन दूर रखा, वहां भी कांग्रेस हार गई। इसी प्रकार से छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस के हाथ से सत्ता खिसकी थी। छत्तीसगढ़ में तो कांग्रेस के अध्यक्ष नवीन चंद्राकर ने बाकायदा पीसीसी अध्यक्ष को एक पत्र लिखकर कहा था कि भितरघातियों को पार्टी टिकट न दे, जिसके बाद कांग्रेस में खलबली मच गई थी और कई नेता भाजपा में शामिल हो गए थे। इन राज्यों में चुनाव हराने के आरोप भई बागियों और भितरघातियों पर लगे, लेकिन इसके बावजूद भई कांग्रेस बागियों और भितरघातियों को बाहर का रास्ता नहीं दिखा पाई। इतना बदलाव जरूर देखने को मिला कि दिल्ली में चुनाव की बागडोर ज्यादातर समय राहुल गांधी ने अपने हाथ में ली, लेकिन चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में वो भी शांत नजर आने लगे थे।

दरअसल, साल 2014 के बाद से कांग्रेस इतनी कमजोर पड़ चुकी है कि उसमें साल 2014 तक वाला कांफिडेंस नजर नहीं आ रहा है। और साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बुरी तरह हार के बाद राहुल गांधी ने एक प्रकार से कांग्रेस में जान फूंकने की जो कोशिश की है, वो वाकई काबिले तारीफ है, लेकिन सवाल ये है कि क्या अकेले राहुल गांधी और प्रियंका गांधी के दम पर कांग्रेस कोई बड़ा चमत्कार कर पाएगी? सवाल ये भी है कि राहुल गांधी बागियों और भितरघातियों को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाने में कामयाब हो सकेंगे? पार्टी ने न सिर्फ नए सिरे से राजनीति की शुरूआत की है, बल्कि कई बड़े बदलाव करने के प्रयास भी शुरू कर दिए हैं। कांग्रेस के पास राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में तो बेहतर प्रदर्शन करने का समय है ही. लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए पूरे साढ़े चार साल के करीब का समय है। लेकिन सवाल

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