Thursday, August 22, 2024
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‘संविधान हत्या दिवस’ का दांव

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kolkhayanआम चुनाव 2024 के दौरान ‘पांचजन्य शंख’ फूंकने की तर्ज पर नरेंद्र मोदी ने ‘अबकी बार, चार सौ पार’ की घोषणा की, बल्कि गर्जना की। ‘अबकी बार, चार सौ पार’ की गर्जना से सम्मोहित भारतीय जनता पार्टी के नेता और उन के समर्थक मीडिया नरेंद्र मोदी की काल्पनिकता को वास्तव में घटित हुआ मानकर ‘राजनीतिक नाच’ में लग गए। यह ‘राजनीतिक नाच’ चुनाव परिणाम निकलने की पूर्व-संध्या तक जारी रहा। मीडिया में चल रहे इस नाच को बाजार से ताल और तरंग मिल रहा था। आम चुनाव का परिणाम भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में बिल्कुल नहीं था। अकेले दम पर ‘तीन सौ सत्तर’ का भारतीय जनता पार्टी का ‘देव-स्वप्न’ दो सौ चालीस के यथार्थ में पिचक कर रह गया। भारतीय जनता पार्टी और इस के नेतागण चुनाव परिणाम के सामने आने के बाद भी ‘अबकी बार, चार सौ पार’ के ‘देव-स्वप्न’ से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं। सवाल है कि ऐसा कैसे हुआ! यह कम बड़ी बात नहीं है कि ‘देव-स्वप्न’ का सर्वाधिक बिखराव ‘देव-भूमि’ के इलाका में ही हुआ! भारत के आम लोगों की समझ में यह बात सहज ही आ गई कि भारतीय जनता पार्टी की राजनीतिक दृष्टि अन्य राजनीतिक दलों से भिन्न और विपरीत है। राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ और अखिल भारतीय जनसंघ की छिपी हुई राजनीतिक दृष्टि ने भारतीय जनता पार्टी को आच्छादित कर लिया। भारतीय जनता पार्टी ने हिंदुत्व के नाम पर हिंदुओं को संगठित कर अपने पक्ष में ‘स्थाई बहुमत’ का जुगाड़ करने के लिए गुप्त रूप से चाल-चरित्र-चेहरा का ‘आयुधीकरण’ करने में लगी हुई थी। ‘अबकी बार, चार सौ पार’ की घोषणा से उस के ‘छिपे हुए दांत और नाखून’ को उजागर कर दिया। भारतीय मतदाताओं के विवेक ने आम चुनाव 2024 के आम चुनाव के परिणाम ने भारतीय जनता पार्टी के ‘स्थाई बहुमत’ के जुगाड़ की तरकीब को तोड़ दिया। यह बहुत मुश्किल काम था। मतदाताओं के मन में राजनीतिक दलों के प्रति भरोसा का होना बहुत जरूरी होता है।

मतदाताओं का भरोसा जगाने के लिए जिस तरह की ‘सघन और सधन’ राजनीतिक कार्रवाई और आंदोलन की जरूरत होती है। यह सब दो कारणों से बहुत मुश्किल था। पहला यह कि भारतीय जनता पार्टी जैसी धन-शक्ति और राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ जैसी विराट सांगठनिक शक्ति का जुगाड़ विपक्षी गठबंधन (इंडिया अलायंस) के पास नहीं था। कांग्रेस के पास भी नहीं था। फिर भी इंडिया अलायंस के घटक दल आंदोलन में जाने के लिए तैयार तो थे लेकिन राजनीतिक भरोसा का वातावरण बना नहीं पा रहे थे। ऐसे में जाहिर है कि पहल की उम्मीद कांग्रेस पार्टी से ही थी। ऐसे में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की पहलकदमी से अ-विश्वास का वातावरण विश्वास के वातावरण में बदलने लगा। राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ ने कमाल कर दिया। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से जो राजनीतिक माहौल बना उस ने ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ को एक बड़े राजनीतिक आंदोलन में बदल दिया।

इस राजनीतिक-आंदोलन से इंडिया अलायंस के घटक दलों के बीच बहुत तेजी से अ-विश्वास का वातावरण छंटने लगा। हालांकि यह भी सच है कि अ-विश्वास का वातावरण पूरी तरह से कभी छंट नहीं पाया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंडिया अलायंस की राजनीतिक ताकत को पहचाना। पहलकारी पार्टी कांग्रेस और इस के नेता राहुल गांधी की पहुंच कम करने के लिए कांग्रेस के बैंक खाता बंद करने, विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं का राजनीतिक दुरुपयोग करते हुए अ-नैतिकता की सीमाओं को पार करने में कोई संकोच नहीं किया गया। फिर भी ‘भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ की ‘मूल-दृष्टि’ का भारत के आम लोगों की समझ से और आम लोगों की मूल समझ का राजनीतिक रूप से सम्मानजनक जुड़ाव ‘भारत जोड़ो यात्रा और भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ से हो गया। इस जुड़ाव का प्रतिफलन कांग्रेस के न्याय-पत्र और चुनाव परिणाम में साफ-साफ दिख गया।

नेता प्रतिपक्ष के रूप में दिया गया राहुल गांधी का पहले ही संसदीय हस्तक्षेप ने आम लोगों की इस समझ को संसद में रेखांकित कर दिया कि राष्ट्रीय स्वयं-सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी नैसर्गिक हिंदू का न तो प्रतिनिधि है, न पक्षधर है। वह अधिक-से-अधिक राजनीतिक रूप से संगठित हिंदुत्व के कुछ लोगों के ही प्रतिनिधि और पक्षधर हो सकते हैं। यह एक सचाई है जिस पर से सरेआम पर्दा हटाने की औपचारिक शुरूआत राहुल गांधी ने संसद के माध्यम से भी कर दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खुद हस्तक्षेप किया, गृहमंत्री अमित शाह ने तो स्पीकर से संरक्षण दिये जाने की भी मांग की। लगभग पूरी सरकार ही नेता प्रतिपक्ष के भाषण के बीच में खड़ी होती चली गई!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के संदर्भ में ‘बालक-बुद्धि’ जैसे शब्द का इस्तेमाल किया। पूरी भारतीय जनता पार्टी और उस की प्रचार मशीनरी पूरी ताकत के साथ फिर से राहुल गांधी के पप्पुकरण में लग गई! लेकिन इस बार उन की कोई मुराद पूरी नहीं हो सकी है। राहुल गांधी को हिंदू विरोधी बताने की कोशिश में भारतीय जनता पार्टी अभी भी लगी हुई है। भारत के आम लोगों और हिंदुओं की समझ में यह बात साफ-साफ समझ में आ गई है कि हिंदुत्व की संगठित राजनीति नैसर्गिक हिंदू का प्रतिनिधि और पक्षधर नहीं है। जाहिर है कि राहुल गांधी को हिंदू विरोधी बताने का राजनीतिक लाभ भारतीय जनता पार्टी को नहीं मिलनेवाला है क्योंकि नैसर्गिक हिंदू राहुल गांधी से सहमत है।

भारतीय जनता पार्टी पचास साल बाद इमरजेंसी के कारण कांग्रेस पर संविधान की हत्या का आरोप लगा रही है। मजे की बात यह है कि संविधान की हत्या का आरोप संविधान के माध्यम से ही लगा रही है; सरकारी घोषणा के माध्यम से कहा गया है कि प्रत्येक साल 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाया जाएगा। सरकार शासकीय शक्ति का ‘उपयोग’ करते हुए 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाना चाहती है ताकि वह लोगों को बता सके कि वह जीवित संविधान को नहीं मृत संविधान को बदलना चाहती है। मुश्किल यह कि इस का रास्ता और इस रास्ता पर चलने की ताकत भी संविधान के अलावा और कहीं से नहीं और से नहीं प्राप्त हो सकती है। 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने की घोषणा जैसी हरकत का मतलब फिर वही है, अर्थात जनता का ध्यान देश की वास्तविक समस्याओं से, देश के असली मुद्दों से भटकाना है।

इंडिया अलायंस को भारतीय जनता पार्टी के द्वारा किए जा रहे भटकाव के प्रयासों से दूर ही रहना चाहिए। एक बात ध्यान में रखना ही चाहिए कि जिस तरह समय ने भारत के लोगों के मन में आजादी के आंदोलन के दौरान अर्जित मूल्य-बोध की आभा को कम किया है, उसी तरह से इमरजेंसी की पीड़ाओं और कष्टों के तीखेपन को भी वक्त ने कम कर दिया है। यह ठीक है कि आजादी के आंदोलन की कहानियां कांग्रेस की कोई राजनीतिक मदद नहीं कर सकती है, तो उसी प्रकार इमरजेंसी की कहानियां भी भारतीय जनता पार्टी के कोई काम नहीं आ सकती है।


janwani address 9

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