- रोक के बाद भी मेडिकल में चल रहा प्राइवेट एबुलेंस का खेल
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मेडिकल प्रशासन की तरफ से लाख दावे किए जाते हो, लेकिन तीमारदारों को मेडिकल में पर्याप्त मात्रा में सुविधा उपलब्ध कराई जाती है, लेकिन जमीनी स्तर पर सच्चाई उसके उलट ही दिखाई देती है। जिसकी वानगी हर रोज मेडिकल में देखने को मिल रही है।
इसी तरह से सोमवार को जनवाणी की टीम जब मेडिकल परिसर कोविड-19 पास पहुंची तो हालात कुछ इस तरह नजर आएं। मेडिकल प्रशासन की तरफ से बार-बार दावा किया जाता है कि मेडिकल में सरकारी एंबुलेंस के माध्यम से ही मरीजों को उनके घर तक पहुंचाया जाता तथा नए मरीजों को अस्पताल लेकर आया जाता है, लेकिन मेडिकल कोविड वार्ड के आसपास ही प्राइवेट एंबुलेंस हो की लाइन लगी रहती है। इतना ही नहीं इस तरह का दृश्य भी जब देखने को मिला।
जब मेडिकल प्राचार्य डा. ज्ञानेंद्र कुमार इमरजेंसी वार्ड का निरीक्षण करने के लिए आए हुए थे। प्राचार्य के सामने ही प्राइवेट एंबुलेंस चालक इमरजेंसी के पास से मरीज को लेने आए। जनवाणी के सवाल पूछते ही आनन-फानन में मेडिकल प्राचार्य ने प्राइवेट एंबुलेंस चालक को वहां से भगाया एवं मरीजों से सरकारी एंबुलेंस का प्रयोग करने के लिए कहा।
दरअसल, मेडिकल में हर रोज प्राइवेट एंबुलेंस वाले मरीजों से अवैध रूप से उगाही करते हैं। शासन द्वारा निर्धारित किए गए किराए से भी ज्यादा मरीजों से पैसे मांगे जाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि जब प्राइवेट एंबुलेंस को मेडिकल परिसर के अंदर बैन किया गया है तो क्यों इस प्रकार एंबुलेंस खड़ी रहती है।
सीएम से पहले विशेष इंतजाम अब व्यवस्था धराशाई
मेडिकल प्रशासन ने कोविड सेंटर के बाहर टेंट लगाकर तीमारदारों के बैठने का इंतजाम किया था। ताकि मुख्यमंत्री अगर औचक निरीक्षण पर मेडिकल आ जाए तो उनके सामने तीमारदारों को हो रही परेशानियों का पोल न खुल जाए। वहीं, जैसे ही मुख्यमंत्री बिना मेडिकल का दौरा करें मेरठ जनपद से निकले। उसके पश्चात तुरंत मेडिकल प्रशासन ने साज सज्जा के माध्यम से लगाए गए टेंट को हटा दिया।
जिससे हर रोज की तरह तीमारदार इमरजेंसी के बाहर ही सोने में खाने को मजबूर हुए। इस संबंध में मेडिकल प्राचार्य डा. ज्ञानेंद्र कुमार ने कहा कि मेडिकल में 108 एंबुलेंस है। साथ ही मरीजों को भी भर्ती किया जा रहा है। प्राइवेट एंबुलेंस को बैन किया हुआ है। इसके पश्चात भी जो एंबुलेंस आती हैं, उन पर कार्रवाई की जाएगी।
मेडिकल में 134 वेंटीलेटर, संचालित करने वाले टेक्नीशियन के लाले
स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने के लिए विभिन्न सरकारों द्वारा लाख दावे किए जाते हो, लेकिन जमीनी स्तर की सच्चाई उसके उलट ही दिखाई देती है। जिसकी वानगी कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर में देखने को मिल रही है। जिसमें स्वास्थ्य सिस्टम पूरी तरह से धराशाई हो गया है।
अस्पताल में भर्ती से लेकर आॅक्सीजन तक की व्यवस्था खुद मरीजों को करनी पड़ी। इतना हीं नहीं अस्पतालों में ज्यादा बोझ ना पड़े। इसके लिए बड़ी संख्या में कोराना संक्रमित मरीजों को होम आइसोलेट भी कर दिया गया। जिससे जिन्हें अस्पतालों की आवश्यकता हो उन्हें ही पर्याप्ता मात्रा में बेड उपलब्ध हो जाएं।
पश्चिम उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े मेडिकल कॉलेज में वेंटीलेटर की संख्या तो 134 है, लेकिन उनको चलाने वालें स्टॉफ टेक्नीशियन की संख्या सिर्फ आठ हैं। ऐसे में वहीं आठ टेक्नीशियन पूरी व्यवस्था को संभाले हुए हैं। हालांकि अब परिस्थिति को देखते हुए मेडिकल प्रशासन ने स्टॉफ की भर्ती के लिए विज्ञापन निकाला है।
दरअसल मरीज की जब हालात बिल्कुल नाजुक हो जाती है। तब उनके लिए वेंटीलेटर ही एक मात्र सहारा रहता है। ऐसे में डॉक्टर आनन-फानन में मरीज को वेंटीलेटर में शिफ्ट करते हैं। जिससे अंतिम उम्मीद तक मरीज को बचाया जा सकें, लेकिन वेंटीलेटर को चलाना आम स्टाफ के वश मेें नहीं होता।
ताकि वह सही रूप से वेंटीलेटर को संचालित कर सकें। इस संबंध में मेडिकल प्राचार्य ज्ञानेन्द्र कुमार ने कहा कि मेडिकल में स्टाफ रखने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी गई है। वर्तमान स्टॉफ के माध्यम से सभी मरीजों को पर्याप्त सुविधा उपलब्ध करायी जा रही है।