पवन नागर
कोरोना वायरस से उपजी कोविड-19 बीमारी ने और कुछ किया, ना किया हो, इंसानों के सामने उसकी बनाई दुनिया की पोलपट्टी जरूर उजागर कर दी है। महामारी के दर्जे की इस विपदा ने बता दिया है कि हमारी दुनिया के दैनिक कारनामे हमें लगातार गर्त में ढकेलते रहे हैं। सवाल है, क्या हम खुद को बचाने की खातिर अपने जीवन, रहन-सहन की आदतों में कोई बदलाव लाना चाहेंगे?
वैसे तो दुनिया में महामारियां बहुत आई हैं और भविष्य में भी आती रहेंगी, परंतु कोविड-19 महामारी थोड़ी अलग इसलिए है, क्योंकि इसने पूरी दुनिया की आर्थिक गतिविधियों के साथ-साथ लालची मानव को उन सारी गतिविधियों पर भी पाबंदी लगाने पर मजबूर कर दिया जिनसे लालची मानव प्रकृति को बेहिसाब नुकसान पहुंचा रहा था और खुद को ईश्वर या प्रकृति की व्यवस्था से भी बढ़कर समझने लगा था।
धरती पर निवासरत इंसान यह भूल गया था कि प्रकृति की अपनी एक व्यवस्था है और उसी व्यवस्था के अनुसार पूरी दुनिया पिछले हजारों वर्षों से चल रही है। वह भूल गया था कि हमें प्रकृति की इस व्यवस्था के साथ खिलवाड़ करने की बिल्कुल भी कोशिश नहीं करना चाहिए; हमें सिर्फ प्रकृति की व्यवस्था में सहायक की भूमिका निभानी चाहिए और प्रकृति को उसका कार्य स्वतंत्रता पूर्वक करने की आजादी देना चाहिए, इसी में पूरी दुनिया की और हमारी आने वाली पीढियों की भलाई है। लगता है, उसकी इसी भूल का अहसास करवाने और हमें अपने कृत्यों पर विचार करने का अवसर उपलब्ध करवाने महामारी आई है।