साम्प्रदायिक विभाजन की आग अब तालीमों-इदारों तक पहुंच चुकी है। स्कूल और कालेज के परिसर जहां पढ़ने वाले छात्रों को अपने ‘विद्यार्थी’ पहचान के साथ एक साथ मिलकर शिक्षा पर ध्यान करना था वे एक दूसरे के खिलाफ ‘जय श्री राम’ और ‘अल्लाह-हू-अकबर’ का नारा लगा रहे हैं। कर्नाटक के हालिया घटनाक्रम से शैक्षणिक परिसर जैसे सावर्जनिक और संवेदनशील स्थानों के साम्प्रदायिक नूरा कुश्ती के नए केंद्र बनने का खतरा पैदा हो गया है। इस मामले में कोई भी पक्ष दूध का धुला हुआ नहीं है सभी देश की एकता और सौहार्द की कीमत पर अपने सांप्रदायिक व बुनियाद-परस्त मंसूबों को पूरा करना चाहते हैं। इस पूरे मामले में देश के दो सबसे बड़े धार्मिक समुदायों के दक्षिणपंथी अपने-अपने एजेंडों के साथ आमने-सामने हैं जो अपने-अपने समुदाय के विद्यार्थियों को बुरका और भगवा गमछा पहनाकर चारे के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं। इन सबके बीच संविधानवादी और प्रगतिशील समूहों में इसको लेकर असमंजस की स्थिति देखने को मिल रही है जो की स्वाभाविक भी है।
कर्नाटक के हिजाब विवाद में कालेज प्रशासन की तरफ से यह तर्क दिया जा रहा है कि क्लासरूम की ‘एकरूपता’ करने के लिए कॉलेज में मुस्लिम लड़कियों के हिजाब पहनने पर रोक लगायी गयी। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री का बयान भी काबिले गौर है जिसमें वे कहते है कि ‘स्कूल और कॉलेज धर्म का अभ्यास करने के लिए जगह नहीं हैं।’ उनके विभाग द्वारा भी कहा गया कि ‘लड़के और लड़कियों का अपने धर्म के अनुसार व्यवहार करना समानता और एकता को ठेस पहुंचाता है’।
भारत में बहुसंख्यक के हिंदुत्ववादियों के लगातार मजबूत और निर्णायक होते जाने के साथ-साथ मुस्लिम सांप्रदायिकता भी मजबूत हुई है, जो इस बात को साबित करती है कि एक प्रकार की सांप्रदायिकता दूसरे प्रकार की सांप्रदायिकता को खाद-पानी देने का काम करती है। हिंदू दक्षिणपंथियों की तरह मुस्लिम दक्षिणपंथ भी धर्मनिरपेक्षता के विचार के प्रति कभी भी सहज नहीं था और इसे एक प्रकार से धर्म विरोधी ही मानता रहा, लेकिन इसी के साथ ही उसने धर्मनिरपेक्षता का उपयोग अपने कट्टरपंथी और दकियानूसी एजेंडों को आगे बढ़ाने के एक सुविधाजनक साधन के रूप में किया। धर्मनिरपेक्षता की आड़ कई भावनात्मक और प्रतिगामी मुद्दे उठाए गए, इसका सबसे बड़ा उदाहरण शाहबानो केस है।
मध्य प्रदेश के इंदौर की रहने वाली पांच बच्चों की मां शाहबानो को भोपाल की एक स्थानीय अदालत ने गुजारा भत्ता देने का फैसला किया था। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले को उचित ठहराया था, लेकिन आॅल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और मुस्लिम धर्मगुरुओं द्वारा इस फैसले को मुस्लिम समुदाय के पारिवारिक और धार्मिक मामलों में अदालत का दखल बताते हुए पुरजोर विरोध किया गया और तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने दबाव में कानून बदलकर मुस्लिम महिलाओं को मिलने वाले मुआवजे को निरस्त करते हुए ‘मुस्लिम महिला (तलाक पर अधिकार संरक्षण) अधिनियम, 1986’ पारित कर दिया। कर्नाटक में हिजाब के मामले में कट्टरपंथी इस्लामी संगठनों की भूमिका को भी समझना जरूरी है।
बताया जा रहा है कि कर्नाटक में हिजाब विवाद में पीएफआई(पॉपुलर फ्रंट आॅफ इंडिया) की छात्र शाखा कैंपस फ्रंट आॅफ इंडिया और फ्रेटरनिटी मूवमेंट जैसे संगठन शामिल हैं। पीएफआई की कट्टरपंथी विचारधारा छुपी हुयी नहीं है। फ्रेटरनिटी मूवमेंट के भी ‘जमात ए इस्लामी’ के राजनीतिक शाखा वेलफेयर पार्टी आॅफ इंडिया के साथ गहरे जुड़ाव बताए जा रहे हैं।
मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा कर्नाटक के कालेज में हिजाब की मांग कर रही लड़कियों को सभी मुस्लिम लड़कियों के रोल माडल के रूप में पेश किया जा रहा है और उन्हें ‘इस्लाम की शहजादियां’ जैसी उपाधियां दी जा रही हैं। इस विवाद के बहाने यह स्थापित करने की कोशिश की जा रही है कि ‘हिजाब औरतों का जेवर है’ और बिना पर्दे की औरतें गुनाहगार होती हैं।
भारत कोई फ्रांस नहीं है, जहां सार्वजनिक जीवन में धर्मनिरपेक्षता बहुत ही ईमानदारी से पालन किया जाता है और यह फ्रांसीसी पहचान का आधार बिंदु है। भारत में धर्मनिरपेक्षता को ‘सर्व धर्म समभाव’ के रूप में समझा गया है, जिसका अर्थ है राजसत्ता सभी धर्मों के साथ समानता का व्यवहार करेगी और शासन के लिए सभी धर्म समान होंगे। साथ ही संविधान द्वारा सभी को अपना धर्म मानने, अभ्यास करने और प्रचार करने के लिए अधिकार भी दिया गया है लेकिन इस देश में बहुत पहले से ही स्कूल, कालेज, सरकारी आफिस, पुलिस थाना जैसे सावर्जनिक स्थानों आदि में बहुसंख्यक हिंदू प्रतीकों और अभ्यासों को देखा जा सकता हैं। अब हिंदुत्ववादी इस विशेष अधिकार को बढ़ाते हुए एक भारत की पहचान बना देना चाहते हैं पूरी तरह से हिंदू रंग में रंगा हुआ एकरूप भारत।
हम भारतीयों को समझना जरूरी है कि इस देश को ‘हिंदुत्व’ या ‘शरिया’ के माध्यम से संचालित नहीं किया जा सकता है और ऐसी कोशिश करने वाले इस देश और समाज के सबसे बड़े दुश्मन है। भारत का विचार व्यापक और गहरा है यह बहुरंगी है और इसे सिर्फ आधुनिक और समावेशी संविधान और मूल्यों के द्वारा ही संचालित किया जा सकता है। इस देश में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच बढ़ती कट्टरता और तनाव किसी के लिए भी मुफीद नहीं है।
जावेद अनीस