साहित्यिक दृष्टि से सहारनपुर की धरती काफी उर्वर रही है। कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर से लेकर महेशदत्त रंक, डॉ. विष्णुकांत शुक्ल, देवेंद्र दीपक, कृष्ण शलभ, राजेंद्र राजन, प्रो. जेपी सविता, डॉ. एन सिंह, सुभद्रा खुराना, इंदिरा गौड़, डॉ. आरपी सारस्वत, डॉ. विजेंद्र पाल शर्मा, सुरेश सपन, कमलेश भट्ट कमल, वीरेंद्र आजम और समकालीन कविता के प्रतिष्ठित हस्ताक्षर आर चेतनक्रांति तक एक लंबी सूची है, जिन्होंने साहित्यिक रचनात्मकता के माध्यम से कई स्तरों पर सहारनपुर को गौरवान्वित किया है।
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हाल ही में वरिष्ठ गीतकार विनोद भृंग के संपादन में सहारनपुर की काव्य यात्रा को समेटे ‘गंध तुम्हारी छंद तुम्हारे’ शीर्षक से एक रोचक और स्तरीय संकलन प्रकाशित हुआ है। यह संकलन साज-सज्जा की दृष्टि से तो उल्लेखनीय है ही, रचनात्मकता की दृष्टि से भी महत्त्वपूर्ण है।
इस संकलन में उन रचनाकारों को स्थान दिया गया है जिनका जन्म सहारनपुर जनपद में हुआ या फिर जिन्होंने किसी न किसी रूप से सहारनपुर को अपनी कर्मभूमि बनाया। यह एक ऐसा गुलदस्ता है जिसमें एक तरफ गीत, गजल और हाइकु की सुगंध है तो दूसरी तरफ समकालीन कविता का खुरदुरा यथार्थ भी मौजूद है।
संग्रह के प्रथम खंड में इस दौर में सृजन कर रहे कवियों की रचनाओं को स्थान दिया गया है तथा दूसरे खंड में दिवंगत कवियों की रचनाओं को शामिल किया गया है। संग्रह की रचनाओं में एक तरफ कवियों के गिरते स्तर पर चिंता व्यक्त की गई है तो दूसरी तरफ दलितों के साथ होने वाले भेदभाव पर भी सवाल उठाया गया है। नि:संदेह इस प्रगतिशील दौर में ऐसे सवाल उठाए जाने चाहिएं। साहित्य का उद्देश्य मात्र मनोरंजन नहीं होता है। इस दौर के कठिन सवालों से मुंह चुराकर हम वास्तविक और सच्चे साहित्य का सृजन नहीं कर सकते।
सुखद यह है संग्रह की कई रचनाओं में इस समय के सामाजिक यथार्थ पर कलम चलाई गई है। इस तरह यह केवल परंपरागत गीत और गजलों का संकलन बन कर नहीं रह गया है बल्कि रचनाओं में प्रगतिशील विचारों के समावेश से यह एक जीवंत दस्तावेज बन गया है। ‘हाइकु’ विधा की अनेक रचनाएं भी इस संग्रह को उल्लेखनीय बनाती हैं। आज के समय में प्रकृति की वेदना को सुने बिना हम जिम्मेदार रचनाकार नहीं बन सकते। प्रकृति केंद्रित रचनाओं को स्थान देकर इस संग्रह को और महत्वपूर्ण बना दिया गया है।
एक तरफ प्रेम में पगी रचनाएं हमारी जिंदगी में प्रेम रस घोलती हैं तो दूसरी तरफ जीवन के विभिन्न पहलुओं को समेटती रचनाएं हमारे चेतना-तंतुओं को झंकृत करती हैं। कुछ रचनाकारों की छोटी कविताएं बड़े अर्थ लिए हुए हैं। कविता की वास्तविक रचनात्मकता यही है कि कम शब्दों में बड़ी बात कैसे कही जाए। आर. चेतनक्रांति की चर्चित कविता ‘सीलमपुर की लड़कियां’ इस संग्रह को और समृद्ध करती है। मां, पिता, बेटी, नानी, गांव, किसान, पत्रकार, चित्रकार और बरसात जैसे अनेक विषयों पर लिखी गई मार्मिक रचनाएं पाठक को बहुत ही सहजता के साथ प्रभावित करती हैं। पुस्तक में हर कवि का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है ताकि पाठक प्रत्येक कवि की परंपरा और जीवन दर्शन से परिचित हो सकें।
यह ऐसा संग्रह है, जिसे संभाल कर रखा जाना चाहिए। हम उन कवियों से रूबरू हैं, जिन्हें पढ़ा है, सराहा है। संपादक के लिए इस तरह के संग्रह प्रकाशित करना आसान नहीं होता है। इस काम में कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। क्या छोड़ें, क्या लें, यह सवाल सबसे ज्यादा परेशान करता है।
प्रदूषित वातावरण में सहारनपुर की रचनात्मक सुगंध फैलाने के लिए संपादक विनोद भृंग साधुवाद के पात्र है। आशा की जानी चाहिए कि भविष्य में इस तरह के संग्रह प्रकाशित होते रहेंगे और सहाररपुर की साहित्यिक परंपरा निरंतर आगे बढ़ती रहेगी।
पुुस्तक: गंध तुम्हारी छंद तुम्हारे, संपादक: विनोद भृंग, प्रकाशक: समन्वय, सहारनपुर, मूल्य: 600 रुपये