कुटकी के पोषक तत्वों में शरीर के कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने की क्षमता होती है, यह बच्चों की वृद्धि के लिए अनुकूल है और शरीर को मजबूत बनाती है। इसका जटिल कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे पचता है, जो मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसमें 8.7 ग्राम प्रोटीन, 75 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5.3 ग्राम वसा, और 9.3 मिलीग्राम आयरन प्रति 100 ग्राम अनाज होता है। उच्च फाइबर होने के कारण यह वसा के जमाव को कम करने में मदद करता है। इसके न्यूट्रास्युटिकल तत्वों में फिनोल, टैनिन और फाइटेट्स शामिल हैं।
कुटकी एक कम अवधि वाली फसल है जो सूखे और जलभराव दोनों को सहन कर सकती है। इसे भोजन और चारे के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और यह भारत के पूर्वी घाटों में प्रचुर मात्रा में उगाई जाती है। इस फसल का विस्तार कई क्षेत्रों में फैला है, जिसमें आदिवासी लोग, श्रीलंका, नेपाल और म्यांमार शामिल हैं।
भारत में इसकी खेती मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में होती है, जबकि छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश में भी इसकी पैदावार की जाती है। यह हर आयु वर्ग के लिए लाभकारी है, कब्ज से राहत दिलाने में मदद करती है और पेट से संबंधित समस्याओं का समाधान करती है।
कुटकी के पोषक तत्वों में शरीर के कोलेस्ट्रॉल को नियंत्रित करने की क्षमता होती है, यह बच्चों की वृद्धि के लिए अनुकूल है और शरीर को मजबूत बनाती है। इसका जटिल कार्बोहाइड्रेट धीरे-धीरे पचता है, जो मधुमेह रोगियों के लिए लाभकारी होता है। इसमें 8.7 ग्राम प्रोटीन, 75 ग्राम कार्बोहाइड्रेट, 5.3 ग्राम वसा, और 9.3 मिलीग्राम आयरन प्रति 100 ग्राम अनाज होता है। उच्च फाइबर होने के कारण यह वसा के जमाव को कम करने में मदद करता है। इसके न्यूट्रास्युटिकल तत्वों में फिनोल, टैनिन और फाइटेट्स शामिल हैं।
कुटकी की खेती के लिए जलवायु
भारत में कुटकी की खेती बड़े पैमाने पर नहीं होती। यह फसल सूखे और पानी दोनों की परिस्थिति में सफलतापूर्वक उगाई जा सकती है और 2000 मीटर तक की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में भी उगाई जा सकती है। यह फसल 10 डिग्री सेल्सियस से कम तापमान सहन नहीं कर पाती और गर्मी के मौसम में उगाई जाती है।
कुटकी की खेती के लिए मिट्टी
कुटकी को विभिन्न प्रकार की मिट्टी में उगाया जा सकता है, जैसे रेतीली दोमट या काली कपास मिट्टी। हालांकि, उपजाऊ और कार्बनिक पदार्थों से भरपूर दोमट मिट्टी को प्राथमिकता दी जाती है। यह फसल लवणता और क्षारीयता सहन करने में सक्षम है।
कुटकी बुवाई का समय और तरीका
खरीफ सीजन में इसकी बुवाई जुलाई के पहले पखवाड़े में की जाती है, जो वर्षा पर आधारित होती है। रबी सीजन में तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सितंबर-अक्टूबर के बीच बुवाई होती है, जबकि गर्मी के समय मई में बिहार और उत्तर प्रदेश में बुवाई की जाती है। बुवाई के दौरान पंक्ति से पंक्ति की दूरी 25-30 से.मी. रखी जाती है और बीजों को 2-3 से.मी. गहराई तक बोया जाता है। पंक्ति बुवाई के लिए बीज की मात्रा 5-4 कि.ग्रा./एकड़ और प्रसारण बुवाई के लिए 8-10 कि.ग्रा./एकड़ होती है।
कुटकी की फसल में खाद और उर्वरक प्रबंधन
खाद और उर्वरक प्रबंधन के लिए प्रति एकड़ 4-5 टन कम्पोस्ट या गोबर की खाद का उपयोग किया जाता है। फसल में 20 किलोग्राम नाइट्रोजन, 12 किलोग्राम फॉस्फोरस और 8 किलोग्राम पोटाश का उपयोग किया जाता है। आधी नाइट्रोजन बुवाई के समय और शेष सिंचाई के समय दी जाती है।
खरपतवार नियंत्रण और सिंचाई
फसल में निराई और गुड़ाई के लिए, पंक्ति बुवाई वाली फसल में दो बार निराई की जाती है। पहली निराई अंकुर निकलने के 15-20 दिन बाद की जाती है और दूसरी 15-20 दिन बाद। खरीफ फसल को न्यूनतम सिंचाई की आवश्यकता होती है, जबकि ग्रीष्मकालीन फसल के लिए 2-5 सिंचाई की आवश्यकता होती है, जो मिट्टी और जलवायु पर निर्भर करती है।
कुटकी की कटाई
कटाई बुवाई के 65-75 दिन बाद की जाती है, जब बालियां परिपक्व हो जाती हैं। एक अच्छी फसल से प्रति एकड़ 8-10 क्विंटल अनाज और 15-18 क्विंटल पुआल की उपज प्राप्त होती है।
-आरपी सहगल