ज्ञान प्रकाश |
मेरठ: कोरोना के कहर और आॅक्सीजन की कमी से हो रही मौतों ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। आॅक्सीजन की कमी भले महसूस की जा रही हो, लेकिन सबसे बड़ी समस्या खाली सिलेंडरों की आ रही है। जानकारों का मानना है कि खाली सिलेंडरों की समस्या से निपटना फिलहाल संभव नहीं है।
प्रशासन ने भले ही आॅक्सीजन गोदाम चालू करा दिए हो, लेकिन लोगो के सामने खाली सिलेंडर बड़ी समस्या बन कर आ रही है। ऐसे क्या कारण है जिससे खाली सिलेंडर मिलना मुश्किल हो रहा है। जानकारों ने बताया कि पूरे देश मे खाली सिलेंडर गुजरात के भावनगर पोर्ट से आते हैं।
पानी के जहाजों में इन सिलेंडरों का प्रयोग होता है। जब शिप यहां आकर कटते हैं, तब उसमें से सिलेंडर निकलते हैं। कबाड़ी लोग यह सिलेंडर 8500 रुपये में लेकर आते हैं, जो यहां आकर 15 से 20 हजार में बेचते हैं। जानकारों ने बताया कि हाई क्वालिटी के इस सिलेंडरों को बनाने में कम से कम एक लाख रुपये लगते हैं। भावनगर से आ रहे सिलेंडर या तो फैक्ट्रियों में प्रयोग हो रहे या फिर अस्पतालों में।
इस वक़्त मेरठ में करीब चार हजार सिलेंडर है और इस वक़्त सिलेंडरों की कमी महसूस हो रही है। सिलेंडरों के कार्य से जुड़े संजय त्यागी ने बताया कि एक सिलेंडर बनाने की लागत बहुत अधिक आती है और कोई क्यों प्लांट लगाए? अभी महामारी है तो सिलेंडरों की जरूरत है, कुछ महीनों बाद यह प्लांट धूल फाकेंगे क्योंकि इस वक़्त जितने सिलेंडर है वो जरूरत पूरी कर रहे थे।
भावनगर से सिलेंडर लाने वाले मोहम्मद यामीन ने बताया कि विदेशी जहाज जो कटने के लिए आते हैं। उनमें काफी तादाद में आॅक्सीजन सिलेंडर आते हैं। अचानक आयी महामारी के कारण इन सिलेंडरों की मांग बढ़ गई। अगर हकीकत में पड़ताल की जाए तो एक सिलेंडर गैस 115 से 225 रुपये तक की बैठती है, लेकिन आपदा में 700 रुपये तक प्लांट बेच रहे हैं।
वहीं, मुनाफाखोर 10 से 15 हजार तक कमा रहे हैं। यही कारण है कि प्रशासन चाहकर भी सिलेंडरों की व्यवस्था नहीं कर सकता है। दरअसल, स्टील प्लांटों में ही आॅक्सीजन गैस की ज्यादा खपत है और देश में आॅक्सीजन की कमी भी नहीं है।
बस कमी सिलेंडरों की है। 2018 में भावनगर से 200 से अधिक सिलेंडर आये थे। यह सिलेंडर खास किस्म के लोहे फोर्जिंन स्टील ई 119 से बनते हैं, जो यहां उपलब्ध नहीं है। वक़्त ने इन कबाड़ के सिलेंडरों की किस्मत बदल दी है।