- शिकागो विवि के एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स में चौंकाने वाला खुलासा, प्रदूषण से घट रही जिंदगी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: प्रदूषण खत्म हो जाए तो मेरठ वालों की जिंदगी के औसतन आठ साल बढ़ सकते हैं। अमेरिका के शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा जारी एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स में बेहद चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदूषण लोगों की जीवन प्रत्याशा घटा रहा है। यूपी के गौतमबुद्धनगर में वायु प्रदूषण के कारण लोगों की जिंदगी करीब 11 साल घट गई है। दूसरे नंबर पर गाजियाबाद और तीसरे नंबर पर मथुरा है। मेरठ की स्थिति भी खतरनाक है।
उन्नाव, लखनऊ और कानपुर में भी लोगों की उम्र नौ से 10 साल घट रही है। ये स्थिति दिल्ली, हरियाणा, पंजाब सहित अन्य राज्यों की भी है। एयर क्वालिटी लाइफ इंडेक्स की मंगलवार को जारी ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वायु प्रदूषण के कारण औसत मानव जीवन घट रहा है। दूसरे शब्दों में कहें तो विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों पर वायु में पीएम 2.5 का स्तर ले आएं तो औसत मानव जीवन प्रत्याशा में वृद्धि हो जाएगी।
रिपोर्ट के मुताबिक शराब, सिगरेट और हादसों से कई गुना ज्यादा मौतें वायु प्रदूषण से हो रही हैं। देश के अन्य राज्यों की तुलना में यूपी की वायु गुणवत्ता दिल्ली के बाद सबसे खराब है। अगर पीएम 2.5 विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानक के बराबर आ जाए तो यूपी के लोगों की औसत आयु करीब 8.8 साल बढ़ जाएगी। अगर अगर पीएम 2.5 राष्ट्रीय मानक (60 एमजीसीएम) के बराबर ले आएं तो उम्र करीब पांच साल बढ़ जाएगी।
इन्हीं मानकों को यूपी के दस प्रमुख शहरों को रखने पर हालात और भयावह दिखते हैं। उत्तर प्रदेश की बात करें तो सबसे खराब स्थिति गौतम बुद्ध नगर की है। इससे सटे मेरठ, मथुरा और गाजियाबाद की हवा भी जहरीली है। बरेली और प्रयागराज की हवा अपेक्षाकृत साफ है। वायु प्रदूषण दिल्ली के निवासियों के जीवन को लगभग 11.9 वर्ष कम कर रहा है। ये इंडेक्स जीवन प्रत्याशा पर पार्टिकुलेट प्रदूषण के प्रभाव को मापता है।
प्रदूषण से हो रहीं गंभीर बीमारियां
चिकित्सकों का कहना है कि बढ़ते प्रदूषण से अस्थमा, कैंसर, फेफड़ों की बीमारियां, हृदय रोग पार्टिकल सांस की नली द्वारा शरीर के अंदर पहुंच जाते हैं और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित होते हैं। पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) 2.5 के बढ़ने के कारण धुंध छाने और साफ न दिखाई देने के साथ गंभीर बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है। पीएम वायु प्रदूषकों के साथ वायु प्रदूषण के स्तर को मापने का एक सही उपाय है।
दिल्ली और एनसीआर में बेतहाशा बढ़ते प्रदूषण (को कम करने का कोई ठोस उपाय सरकार के पास नहीं दिख रहा है। एनसीआर में पीएम-10 का स्तर 478 और पीएम-2.5 भी 154 तक रिकॉर्ड हो रहा है। जो खतरनाक हालात की ओर ईशारा कर रहे हैं। प्रदूषण की वजह से इन दिनों ये दो शब्द सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। दरअसल, पीएम-10 और पीएम 2.5 ही प्रदूषण फैलाने में सबसे बड़ा किरदार निभाते हैं। ये कण इतने छोटे होते हैं कि सांस के जरिए आसानी से हमारे फेफड़ों में पहुंच जाते हैं और सेहत के दुश्मन बन जाते हैं।
आमतौर पर लोग इन कणों के बारे में नहीं जानते, लेकिन इससे बचाव के लिए इसे जानना बेहद जरूरी है। पीएम-2.5 का कण कितना छोटा होता है। इसे जानने के लिए ऐसे समझिए कि एक आदमी का बाल लगभग 100 माइक्रोमीटर का होता है। इसकी चौड़ाई पर पीएम 2.5 के लगभग 40 कणों को रखा जा सकता है। आइए दोनों कणों के बारे में जानते हैं कि यह हमें कैसे नुकसान पहुंचाते हैं।
मेरठ दुनिया के प्रदूषित शहरों की सूची में
मार्च 2023 में स्विट्जरलैंड की फर्म आईक्यू एयर ने वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट के नाम रिपोर्ट जारी की थी। इस रिपोर्ट के अनुसार दुनिया के प्रदूषित शहरों में मेरठ का 31वां नंबर है, जबकि भारत के टॉप 39 शहरों में 23वें स्थान पर है। दिल्ली से मेरठ 70 किलोमीटर दूर है। दिल्ली, गाजियाबाद और मेरठ के एनसीआर में शामिल होने के कारण यहां की हवा लगातार खराब होती जा रही है।
दिल्ली का नंबर दुनिया में चौथा है। एनसीआर क्षेत्र में मेरठ में पीएम 2.5 का स्तर लगातार खराब हो रहा है। सामान्य दिनों में मेरठ का एयर क्वालिटी इंडेक्स (एक्यूआई)100 के आसपास होना चाहिए, लेकिन सामान्य दिनों में यह 200 से ऊपर रहता है। बढ़ता प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए पर्यावरण से जुड़ा सबसे बड़ा खतरा है।
आंख, गले और फेफड़े की बढ़ती है तकलीफ
सांस लेते वक्त इन कणों को रोकने का हमारे शरीर में कोई सिस्टम नहीं है। ऐसे में पीएम 2.5 हमारे फेफड़ों में काफी भीतर तक पहुंचता है। पीएम 2.5 बच्चों और बुजुर्गों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इससे आंख, गले और फेफड़े की तकलीफ बढ़ती है। खांसी और सांस लेने में भी तकलीफ होती है। लगातार संपर्क में रहने पर फेफड़ों का कैंसर भी हो सकता है।
गाजियाबाद से सटे क्षेत्रों में प्रदूषण ज्यादा
- पीएम 10: पीएम 10 को पर्टिकुलेट मैटर कहते हैं। इन कणों का साइज 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास होता है। इसमें धूल, गर्दा और धातु के सूक्ष्म कण शामिल होते हैं। पीएम 10 और 2.5 धूल, कंस्ट्रक्शन और कूड़ा व पराली जलाने से ज्यादा बढ़ता है।
- पीएम 2.5: पीएम 2.5 हवा में घुलने वाला छोटा पदार्थ है। इन कणों का व्यास 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम होता है। पीएम 2.5 का स्तर ज्यादा होने पर ही धुंध बढ़ती है। विजिबिलिटी का स्तर भी गिर जाता है।
कितना होना चाहिए पीएम 10 और 2.5 - पीएम 10 का सामान्य लेवल 100 माइक्रो ग्राम क्यूबिक मीटर (एमजीसीएम) होना चाहिए।
- पीएम 2.5 का नॉर्मल लेवल 60 एमजीसीएम होता है. इससे ज्यादा होने पर यह नुकसानदायक हो जाता है।
शहर पीएम 2.5 जीवन बढ़ जाएगा
लखनऊ 104 9.74
कानपुर 104 9.72
आगरा 104 9.79
प्रयागराज 94.77 8.8
मेरठ 88.82 8.21
गौतमबुद्धनगर 119 11.27
उन्नाव 106 9.91
बरेली 79 7.27
मथुरा 108 10.15
गाजियाबाद 113 10.65