जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: बाउंड्री रोड स्थित आवासीय बंगला 74 और 74-ए जिसमें गोविंद प्लाजा का अवैध निर्माण हुआ है, करीब 27 साल से पीपीई एक्ट का नोटिस देकर डीईओ आफिस आगे की कार्रवाई को भूलाए बैठा है। बंगले का सौदा होने से लेकर इसके बनने और नक्शा पास होने व बाद में नक्शा कैंसिल किए जाने का सारा घटनाक्रम डीईओ रहे एके श्रीवास्तव के कार्यकाल में हुआ था। साल 1997/98 में उन्हीं के कार्यकाल में डीईओ आफिस ने अवैध रूप से बनाए गए गोविंद प्लाजा पर अवैध काबिज दुकानदारों को पीपीई एक्ट का नोटिस भेजा था, लेकिन जैसे ही एके श्रीवास्तव का यहां से तबादला हुआ, डीईओ आफिस ने पीपीई एक्ट के नोटिस तथा आगे की जो ध्वस्तीकरण की कार्रवाई को भी भूला दिया। यह कार्रवाई क्यों भूला दी गयी, इतनी सी बात भी ना समझे तो आप खुद को अनाड़ी मानें।
बाउंड्री रोड स्थित जिस बंगले में गोविंद प्लाजा बनाया गया है, वो बंगला डीईओ का है। ओल्ड ग्रांट है और आवासीय है। चेंज आफ परपज जैसा यहां कुछ हो नहीं सकता और जीएलआर में आज भी एचएस सरकिस का नाम है, लेकिन साल एचएस सरकिस की फैमिली 1986/87 में यहां से इंग्लैंड चली गई थी। इंग्लैंड जाने के बाद भी बाउंड्री रोड स्थित यह बंगला जीएलआर में एचएस सरकिस के ही नाम चढ़ रहा और आज भी उनका ही नाम जीएलआर में चढ़ा हुआ है। बंगले के दो हिस्से हुआ करते थे। 74 व 74-ए, 74 ए आउट हाउस हुआ करता था। इस बंगले का नक्शा डीईओ एके श्रीवास्तव के कार्यकाल में पहले पास किया गया। नक्शा पास कराने वालों ने जो दुकानें बनायी गयी थी, उनको इस बंगले में रूम बताकर नक्शा पास करा लिया था, लेकिन बाद के डीईओ एके श्रीवास्तव ने अपनी तबादले से चंद रोज पहले जो नक्शा पास किया था उसको ना केवल कैंसिल कर दिया बल्कि पीपीई एक्ट का नोटिस भी थमा दिया। इस बात को करीब 27 साल हो गए बताए जाते हैं। इस बीच एके श्रीवास्तव का तबादला हो गया और जिन्होंने आने वाले अगले डीईओ को बंगला 74 व 74-ए में की गई कारगुजारी बतानी थी स्टाफ के उन लोगों ने चुप्पी साध ली।
कोर्ट का भी विकल्प नहीं, केवल ध्वस्तीकरण
74 व 74-ए पर जो अवैध रूप से काबिज हैं, उनके पास कोर्ट में जाने तक का भी विकल्प नहीं है। इसमें केवल एक ही विकल्प है वो इस आवासीय बंगले में ध्वस्तीकरण की कार्रवाई। जिन लोगों ने गोविंद प्लाजा में दुकानें खरीदी हैं उनके पास या जिन्होंने गोविंद प्लाजा बनाया यानि रमेश ढींगरा व गोविंद मेहता उनके पास भी कोई मालिकाना हक नहीं था, इसकी वजह जीएलआर में एचएस सरकिस का नाम होना जब बनाने वाले और खरीदने वाले के पास कोई मालिकाना हक ही नहीं है तो फिर डीईओ को ध्वस्तीकरण से कोई कैसे रोक सकता है। इस बंगले में चेंज आॅफ परपज, सब डिविजन आॅफ साइट और अवैध निर्माण कैंट एक्ट में सब कुछ गैर कानूनी माना जाने वाला कृत्य किया गया है। इसलिए इस अवैध इमारत को गिराने में डीईओ के पास समस्त शक्तियां व विकल्प मौजूद हैं। बशर्ते इच्छा शक्ति हो। इन दिनों गोविंद प्लाज के दुकानदारों के बीच इसको लेकर जो विवाद चल रहा है, उसमें एसएच सरकिस को नोटिस भी इसीलिए दिया गया है।
ऐसे बना गोविंद प्लाजा
इस बंगले में जो 350 अवैध दुकानें बनायी गयीं और इसको गोविंद प्लाजा कांप्लेक्स का नाम दिए जाने के पीछे भी कहानी है। दरअसल रमेश ढींगरा के परिचित तोपखाना निवासी गोविंद मेहता थे और रमेश ढींगरा के पिता का नाम गोविंद राम था। इसके चलते तय किया गया कि दोनों की बात भी रह जाएगी इसका नाम गोविंद प्लाजा रखा जाए। एक बात और रमेश ढींगरा व गोविंद मेहता के अलावा भी कुछ पार्टनर थे, लेकिन रमेश ढींगरा के आगे वो ज्यादा कुछ करने की स्थिति में नहीं थे।